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मेरे शब्दों कि रूह... अनकहे अलफ़ाज़

यूँ ही एक बात कही थी
तुमने कल
बातों ही बातों में...
कुछ दबे भाव थे
उनमें... जो शब्द सीचें थे
लेकर हाँथ मेरा अपने हाथों में...
न जाने क्या था उन छिपी छिपी सी बातों में
बहुत था फर्क बड़ा...
लफ़्ज़ों और ज़ज्बातों में
पर कुछ तो था
जो कहना चाहते थे तुम...
या चाहते थे समझाना मुझे...
कुछ भी कहे बिना...
जानते हो न कि समझ जाउंगी उन धडकनों को मैं...
और समझूँ भी क्यों न...
मैं ही तो हूँ वहां...
पर इस बार ज़रा-सा फेर है
या समझ में हो रही देर है
तुम जो कहते हो मैं सुन नहीं पाती
और इसीलिए शायद कुछ कह नहीं पाती
क्योंकि
मेरे शब्दों कि रूह तो तुम्हारे अनकहे अलफ़ाज़ ही है न...
और शिकायत तुम्हारी कि "मैं कुछ कहती नहीं"...  

माना कि ये मेरा बचपना है...

अपनी हर अच्छी-बुरी, ख़राब-नायब बात लेकर यहाँ आ जाती हूँ... इसीलिए आज भी आ गई... 
सब कहते हैं कि अभी भी मुझमें बचपना है...
जब tiger ख़तम हुआ तब मैं छोटी थी तो मान लिया, कि रोना जायज़ था... kity के ख़तम होने में भी सभी ने मान लिया क्योंकि उसे मेरी best-friend {शिखा} ने gift किया था... पर जब tony ख़तम हुआ तब जरूर सभी ने ज़रा-सा कहा... पर सिर्फ ज़रा-सा... क्योंकि उसे भी शिखा ने ही गिफ्ट किया था... पर अब... अब जब वो गई... और मेरा उदास चेहरा सबने देखा तो कुछ मुझे समझाने लगे और कुछ ने मज़ाक भी उड़ाया कि "अभी भी बच्ची है... बड़ी हो जा... तुझे और दिला देंगें... अब तो खुद ही खरीद सकती है..." और भी न जाने कितनी बातें और कितने तरह की बातें... यहाँ तक कि ये भी कहा कि चिंता मत करो, तुम्हारी शादी में तुम्हें कुछ और नहीं देंगे, वही गिफ्ट कर देंगें"...
माना कि मैं खुद भी खरीद सकती हूँ, या कोई नई और भी ज्यादा अच्छी आ जायेगी, पर क्या वो सारी यादें आयेंगीं जो उसके साथ जुडी हैं... कहते हैं teen-age सबसे ख़ास और बड़ी ही अजीब age होती है... उसमें सब-कुछ अच्छा ही लगता है, और मेरी उस उम्र की सबसे ख़ास और करीबी वही तो थी... मेरे सारे राज़, घूमना-फिरना, बदमाशियां-शैतानियाँ... all-in-all सबकुछ वो जानती थी... यहाँ तक कि मेरे कई ख्वाब जो मैंने कभी किसी के साथ नहीं share किये वो भी उसे पता थे...
अरे sorry sorry ... पूरी राम-कथा पढ़ दी मगर वो है कौन ये तो बताया ही नहीं... वो है मेरी प्यारी-सी kinetic honda... zx... white colour... MP20 JA 7513... मेरे सारे दोस्त उसे मेरी उड़न-खटोला कहते थे... मेरे भाई का नाम भी लिखा था उसमें... PRINCE
sorry... है नहीं थी... :(
कहीं उसकी एक फोटोग्राफ भी है... मिली तो पोस्ट जरूर करूंगी...
सच ऐसा लग रहा है जैसे ज़िंदगी का एक हिस्सा चला गया...  :(
पता है... आप लोग भी पढ़ कर यही कहेंगें कि ये मेरा बचपना है...
मेरी और मेरे भाई की दोस्ती बढ़ने में भी उसने बहुत मदद की... हमारे घूमने का राज़ भी वही जानती थी... कई गोल और गोल-गप्पे की कहानियाँ, ice-cream, पेस्ट्री, और भी न जाने क्या-क्या... सब जानती थी वो...
और जबलपुर की सड़कों में कहाँ कितने चक्कर मारे हैं... सदर, गोरखपुर, जलपरी से लेकर घंटाघर, कमनीय गेट तक की सड़कें नापी हैं मैंने उससे... उसने सबसे ज्यादा साथ निभाया था जब हम जबलपुर में ही थे, मम्मी को अटैक आया था, और तभी पापा का ट्रान्सफर हो गया था... और सरकारी नौकरी की हालत तो बस... यदी आपकी जगह में आनेवाला अधिकारी अच्छा है तब तो ठीक वर्ना फ़िर न तो वो खुद support करता है और न ही किसी को करने देता है... तभी शैली; मेरी छोटी बहन, अरे हाँ कल {8 सितम्बर} उसका जन्मदिन भी है,; उसे स्कूल ले जाना-ले आना पड़ता था... भाई के लिए बस थी... उसने बहुत support किया था... और उसी समय था जब मुझे अपने दोस्तों की पहचान हुई थी... और एक बात, उस समय मेरी प्रिंसिपल "प्रकाशम मैडम" मेरे teachers ने बहुत support किया था... सब कहते थे, तुम मम्मी को देख लो, यहाँ कि चिंता मत करो... ये सब मेरे 10th क्लास की बात है... स्कूल से पूरी permission थी, क्योंकि CBSE बोर्ड था तो टेस्ट वगैरा की झंझट नहीं थी... और ये भी था कि मैं कभी भी झूठ नहीं बोलती थी अपने teachers से... और वो सब मुझपे भरोसा भी करते करते और मानते बहुत थे...  Thank you so much all... :)
पर सच उसका जाना बहुत अखरा... जब तक नहीं गई थी, तब एक उम्मीद थी, पर कहते हैं न कि कभी किसी से कोई उम्मीद मत करो वर्ना तकलीफ होती है...जब वो जा रही थी तब मैं उसे जाते भी नहीं देख पाई... अन्दर आके अपने रूम में जाकर खूब रोई... लगा कि जाऊं, जो ले गए हैं उनके सामने विनती करके उनसे मांग लूं... पर फ़िर लगा कि नहीं, पापा लोगों ने उन्हें दे दी है... उनकी बात का मान ज्यादा है... इसीलिए ये भी नहीं कर पाई... शायद इस बात का भी दुःख उस दुःख को बढ़ा रहा था कि पहली बार मैं उसके लिए कुछ नहीं कर पाई...
MISS YOU SO MUCH DARLING... :(

ये एक साल...

21 फरवरी 2010...
1st post... :- DESIRES FROM THE ONE YOU LOVE...
जब मैनें इस ब्लोगिंग की दुनिया में कदम रखा...
न रास्ते पता, न मंज़िल...
न ही यहाँ के तौर-तरीके...
न लोगों से पहचान...
न ही कोई बैकग्राउंड...
न लिखना आता था, न ही कोई बतानेवाला की कैसे लिखा जाता है...
बस एक पेन, कुछ सपने और
लिखने का शौक लेकर आई थी...

एक डर था की कैसे लोग होंगें...
अपनायेंगें या नहीं???
मुझे इस दुनिया में अपनी जगह बनाने देंगें या नहीं???
पर दोस्त थे...
एक आदित्य और एक शैलेश...
वो इस दुनिया में कदम रख चुके थे...
आदित्य जी ने तो मुकाम भी बना लिया था...
यहाँ आकर लिखने की सलाह भी कुछ दोस्तों ने ही दी थी...
सो मैं अपना बोरिया-बिस्तर उठा चली आई...

जब यहाँ पहुँची...
जितना सोचा था उससे कहीं बड़ी थी ये दुनिया...
सोच थी की लिखनेवाले तो सभी अच्छे ही होते हैं...
पर वो भ्रम भी टूटा...
पर...
उसकी एवज मैं बहुत से अच्छे और अच्छे लोग मिले...
जिनसे साथ माँगा...
उन्होंने पूरा साथ दिया
जिनसे समय माँगा...
दिन-रात दे दिए...
कुछ अन्जाने से लोग मेरे अपने हो गए...
एक अलग ही रिश्ता कायम हो गया इस दुनिया से...
यहाँ एक छोटा सा आशियाना मेरा भी हो गया...

आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया, जिन्होंने मुझे ये सफ़र यहाँ तक तय करने में हमेशा ही सहयोग प्रदान किया...
इस आशीर्वाद की हमेशा जरूरत रहेगी...
और बहुत ज्यादा रहेगी... :)












जानती हूँ मुझे ये पोस्ट 21 तारिख को ही लिखनी चाहिए थी... पर सीढियों से गिरजाने के कारण असमर्थ थी...
इसीलिए... आज कुछ ठीक लगा... हिम्मत जुटा कर लिख दी...

सफ़ेद आसमाँ...

जब भी परेशान होती हूँ
और कुछ सूझता नहीं...
तब आ जाती हूँ
इस सफ़ेद दुनिया में
और भरने लग जाती हूँ
अपना पसंदीदा रंग इसमें...


जिधर दिल कहता है
उसी दिशा में चलती हूँ...
जो मन में आता है
वही चित्र बनाती हूँ...
और तब तक अपना paint-brush चलाती हूँ
जब तक
दिल-दिमाग़ शांत न हो जाए
और वो बोझ न हट जाए,
भीतर से निकल न जाए...

जो लेकर मैं
इस सफ़ेद आसमाँ के पास आई थी...

लम्हें...

कभी रूमानी
कभी बेईमानी
कभी धोखा
कभी ज़िन्दगानी...

कभी हँसते-गाते
कभी खाते-पीते
कभी पन्ने पलटाते
कभी कलम घिसते

कभी तेरी बाँहों में
कभी तेरी आँखों में
कभी तुझसे बतियाते
कभी तेरी यादों में

कभी खूबसूरत
कभी दर्द
कभी गुजारते-गुजारते थक गए
और कभी वो लम्हों में ही गुज़र गए...

काश मुहब्बत कुछ आसाँ होती... तो...


काश मोहब्बत को पढ़ पाना
इतना आसाँ होता... तो...
एक-आध लाईब्रेरी हम भी बना लेते...

काश मोहब्बत को समझ पाना
इतना आसाँ होता... तो...
दो-चार गुरुओं को ख़ास हम भी बना लेते...

काश मोहब्बत को देख पाना
इतना आसाँ होता... तो...
टेलिस्कोप/माईक्रोस्कोप हम अपनी आँखों में लगवा लेते...

काश मोहब्बत को लिख पाना
इतना आसाँ होता... तो...
दो-चार महफ़िलें हम अकेले ही सजा लेते...

मेरा सब तेरा ही तो था...

मेरी रूह तो तेरी थी
साँसे भी तेरी ही थीं
मेरा हर लम्हा तेरे लिए थे
मेरी हर घड़ी भी तेरी थी...

मेरी हर याद में तेरा ही साया था
मेरी धडकनों में भी सिर्फ तू ही समाया था
मेरे कानों में आवाज़ तेरी ही थी
मेरी आँखों में तस्वीर तेरी ही समाई थी...

मेरे अहसासों में तू था
मैं महसूस भी बस तुझे ही करती थी
बात किसी की भी हो
मैं बात तेरी ही करती थी...

मेरी मंज़िल भी तू ही था
और था तू ही मेरा साहिल भी...
बस इन पन्नों की सफेदी में
उकेरे कुछ शब्द ही बस मेरे थे...

आज ये भी तुझमें शामिल हो गए...

इन्ही पन्नों पर...

अपनी हर मुलकात की,
हर बात,
अपनी हर रात का,
हर अहसास,
यूंही कैद कर लेना चाहती हूँ...
इन्हीं पन्नों पर...

हर वो खुशी,
जब भी आई हंसी,
हर वो गम,
जब आँखें हुईं नाम,
यूंही लिख देना चाहती हूँ कलम से...
इन्हीं पन्नों पर...

हर वो सदा,
जो याद आ गयी,
हर वो अदा,
जो इस मन को भा गयी,
यूंही सरे पल समेट लेना चाहती हूँ...
इन्हीं पन्नों पर...

हमेशा के लिए...

आज फ़िर तुम्हें जाना है...

आज फ़िर से तुम्हें जाना है...
और मुझे याद आ रहा एक गाना है...
"मुझसे जुदा होकर तुम्हें दूर जाना है... पल भर की जुदाई, फ़िर लौट आना है.........."

अरे अरे!!!
ये क्या कर रही हूँ मैं...???
जो कुछ भी सोचा था,
उससे तो बिलकुल ही उल्टा कर रही हूँ मैं...

सोचा था...
न तो गाना गाऊँगी...
न तुम्हें रुकने को मानाउँगी...
और न ही किन्ही अदाओं से तुम्हें रिझाउँगी...
all-in-all, किसी फ़िल्मी अदाकारा जैसा कोई किरदार नहीं निभाउँगी...

पर न जाने क्यूँ...
किरदार निभाने का मन हो रहा है...
तुम्हें रिझाने का मन हो रहा है...
तुम्हें रोक लूँ कुछ भी कर के... बस...
गाना भी गाने का मन हो रहा है...
"आज जाने की जिद करो............
या...
" जाओ सैंयाँ... छुड़ा के बैंयां, कसम तुम्हारी मैं रो पडूँगी...........

शायद ये problem हम सभी भारतींयों के साथ है...
जो बड़े ही ऐसी फ़िल्में और किरदार देखकर होते हैं...
जब हीरो कहीं दूर जाता है... तब
उसकी माँ, बहन और प्रेयसी की आँखों में आँसू होते हैं...
कभी अकेले छिप-छिपकर, तो कभी सब साथ मिलकर रोते हैं...
और रातों को भूखे पेट, करवटें बदलते हुए सोते हैं...
उसके ख़त, फ़ोन के इंतज़ार में,
दिन-रात का चैन खोते हैं...
"वो खुश रहें जहाँ भी रहे!"
बस, यही लफ्ज़ हमारी जुबाँ पे होते हैं...

ख़ैर!!!
फ़िल्में, फ़िल्मों के किरदार, या फ़िर कोई गाना...
कोई अदा, या अपना कोई फ़साना...
ये सब किसी काम के नहीं।
क्योंकि आख़िरकार...
आज तुम्हें जाना है
और मुझे
तुम्हारी यादों के साथ तन्हा रह जाना है...

बड़ा अच्छा लगता है... धन्यवाद...

आज, हमेशा की ही तरह, अपनी एक नई रचना को आप सभी के सामने प्रस्तुत करने आई थी।
पर आज ज़रा-सी उल्टी गिनती गिन ली। आमतौर पर पहले अपने ब्लॉग पे आती, या अपना डैशबोर्ड देखती, या फ़िर जिन ब्लोग्स पर कमेन्ट करना होता वहां जाती और फ़िर आख़िरी में अपने ई-मेल्स चेक करती... पर आज, न जाने क्यूं ई-मेल अकाउंट पहले चेक करने पहुँच और जो देखा उसपर मुझे तो यकीन न के बराबर हुआ... और फ़िर क्या, पूरा मेल पढ़ा, जो लिखा था उसे जाकर सही होने की पुष्टि की और फ़िर तो बस पूछिए मत... ख़ुशी इतनी की बस चली आई आप सभी के साथ यहाँ बाँटने... रहा नहीं गया मान लीजिये...
क्या है, हम जैसे नवजात ब्लोग्गर्स को इतनी खुशी भी बहुत बड़ी लगती है... हो सकता है आप लोगों के लिए ऐंवे-टाईप बात हो... पर मेरे लिए तो बड़ी है... और सबसे बड़ी बात... मै खुश हूँ...
धत तेरे की॥ बात तो बताई ही नहीं... हाँ जी तो बात यह है की मेरी कविता... "एक शुरुआत... अंत के बाद..." जागरण-जंक्शन के फीचर्ड ब्लोग्स में सेलेक्ट हुई है....
मेरा हौसला बढाने, मुझे हमेशा प्रेरित करने एवं मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद... इसी साथ एवं मार्गदर्शन की आशा हमेशा रहेगी...

ये रही लिंक...

http://jagranjunction.com/

शायद मेरे जाने का वक़्त आ गया...

शायद,
अब वक़्त आ गया...
मेरे जाने का

माँ भी चुप-चाप तय्यारियाँ करती है
कभी साड़ियाँ चुनती तो
कभी गहने बनवाती है
कभी मेंहदी लगे हाथों को देख ललचाती है
और कभी पापा के साथ बैठ
मेरे मंडप के सपने सजाती है
जिसके नीचे बैठ वो सौंप देगी
मुझे मेरा नया जीवन...

कभी कोई नया रंग चुनती है...
कुछ दिन बाद उसी रंग के लिए कहती
"अब ये पुराना हो गया"
पर सच्चाई है कि माँ ने वो रंग किसी दुल्हन को पहने देख लिया था...

जब भी कोई घर आता है
उसे एक नया लड़का बताता है
कोई इंजीनियर तो कोई डॉक्टर
कोई किसी बड़ी एम्.एन.सी. में
तो कोई सरकारी नौकरी के साथ...
किसी का घर अच्छा है
तो किसी के घरवाले
कोई बहुत संपन्न है
तो कोई संस्कारोंवाले...

पर ये सब वो मुझसे नहीं कहती है
बस अपने आप ही सब ताना-बना बुनती है...

हर बार हर सपना
एक नई सोच के साथ
नए रंग के साथ
नई साज-सज्जा के साथ
और
नए तौर-तरीकों के साथ...

तुम्हारे प्रेम का अर्थ...

क्या प्रेम का अर्थ
केवल आलिंगन है???
या प्रेम और गहराया तो चुम्बन है???
बस यूंही तन की करीबी बढ़ती जाती है
और प्रेम गहराता जाता है...

क्या ह्रदय में उमड़ती प्रेम-भावनाओं का कोई मोल नहीं???
जहाँ छुअन का उतना महत्व नहीं
जितना एक-दूसरे की चिंता
जहाँ चुम्बन का उतना महत्व नहीं
जितना एक-दूसरे को समझना
जहाँ बदन की ज्व्लंतता का उतना महत्व नहीं
जितना एक-दूसरे के बिना बोले शब्दों को सुनना
या...
एक-दूसरे का अहसास साथ होना...

पर...
तुम ऐसे क्यूं नहीं हो???
तुम्हारे लिए मेरे करीब आना जरूरी क्यूं नहीं???
क्यों तम्हारे लिए मेरे बदन पर तुम्हारे हाथों के निशाँ
से ज्यादा जरूरी
मेरे होठों पे मुस्कान का होना है???
क्यों नाराज़ होने के बाद भी...
तुम हमेशा मेरे साथ खड़े होते हो???
और आसुओं को मेरी आँखों से कोसों दूर रखते हो...
क्यों तुम मेरा चुम्बन नहीं लेते???
वरन... हर बहाने से मुझे खुशियाँ ही देते हो...
क्यों तुम मेरे करीब नहीं आते???
क्यों दूर से ही देख मुस्कुराते हो???
क्यों कोई वादा नहीं करते???
या वादा न तोड़ने की कसम मुझसे लेते हो???

क्या तुम इस दुनिया से अलग हो...
या...
मुझसे प्रेम नहीं करते...

वजह...

मुझसे मेरी बेचैनियों
मेरे आसुओं की वजह न पूछ...

मैं लूं हर बार उसका नाम
ये, उसे गवारा नहीं...

मुझे जानना चाहते हो???

यदि जानना चाहते हो मुझे...
तो कभी फुरसत से,
तन्हाई में
शांत मन से
पढ़ना उन अधूरी लाइनों को
उन अधूरे पन्नों को
जो अभी भी उस डायरी में मौजूद हैं...
जो मेरे सिराहने कही रखी है...

वो आज भी वैसा ही है...


जैसे वो पहले मुझे सताता था
आज भी सताता है...
जैसे वो पहले मुझे रुलाता था,
आज भी रुलाता है
न जाने क्यूं और कैसे वो इतनी मोहब्बत कर लेता है मुझसे?
"वो हमेह्सा मेरे साथ ही रहेगा"
पहले क्या, आज भी यही जताता है मुझे...

पहले अपनी बदमाशियों से,
तो आज अपनी मजबूर बातों से सताता है
पहले अपने गुस्से से
तो आज अपनी यादों से रुलाता है
"न जाने क्या होगा हम दोनों का एक-दूसरे के बिना?"
मैं पूछती हूँ उससे...
पर ऐसा दिन कभी नहीं आने देगा...
यही कहकर हर बार खुद को मेरा बताता है मुझे...

जाने क्यूं???

न जाने आज तेरा इतना इंतज़ार क्यूं है?
न जाने आज तुझे देखने को दिल इतना बेकरार क्यूं है?
कभी-कभी तो सोचती हूँ...
न जाने तेरी हर बात पे मुझे, मेरे दिल को
इतना ऐतबार क्यूं है???
...

आज की बारिश... और यादें


आज बारिश में बच्चों को को भीगता देख,
मन फ़िर से यादों के गलियारों में भटकने चला गया...

वो स्कूल से घर आते में,
जानबूझ कर भीग जाना,
वो रेन-कोट न होने का बहाना बनाना...
ड्रेस गीली हो जाने पर,
मम्मी की भारी भरकम डांट खाना...
और,
यदि धोखे से बीमार पड़े तो,
सारे रिश्तेदारों, दोस्त-यारों के वो अजीबो-गरीब नुस्खे बताना...
और दुबारा ये बचपना न करूँ, ये भी समझाना...

ऐसा नहीं है कि अब भीग नहीं सकती,
या बहाने नहीं बनाऊँगी...
भीगूँगी, बहाने बनाऊँगी...
और मम्मी की ढेर सारी डांट खाऊँगी
रिश्तेदारों, दोस्त-यारों के भी फ़ोन आयेंगे,
फ़िर से सब अपने-अपने तरीकों से समझायेंगे...
पर...
अब बात ड्रेस गीली होने की नहीं,
बात होगी कि मै बड़ी हो गई हूँ...
बात मेरे बचपने की नहीं,
बात होगी की अब इतनी तो समझदार हो ही गई हूँ...

हाँ सही ही तो है...बड़ी तो सिर्फ मै हुई हूँ,
बाकी सब का यौवन तो वैसा ही है...
सावन तो सिर्फ मेरे लिए बदला है,
बाकी सब के लिए तो मौसम वैसा ही है...
खैर...
हाँ तो हम कहाँ थे...
उन बच्चों को देख,
उनके बीच खुद को खोज रही थी...
अपने भविष्य को, यूँही
भीगते, मस्ती करते सोच रही थी...
तभी अचानक, मम्मी की आवाज़ का कानों में आना...
"खिड़की बंद करो वरना पाने अन्दर आयेगा"
और हमेशा की तरह मेरी एक और सोच, एक और सपने का टूट जाना...

इतनी तेज़ बारिश और ये मन...

उफ़ ये बारिश... वो भी इतनी तेज़...
ये सर्द हवाएँऔर उस पर पानी की फुहार
न जाने क्यों है इतनी गर्जन
शायद हमसे कुछ कहना चाहता है ये मौसम
ये मौसम,
बढाताहै मेरी तन्हाई
कातिल उसकी याद, फ़िर खंजर ये जुदाई
पिघलना चाहती हूँ उसकी बांहों में
पढ़ना चाहती हूँ अपनी चाहत को उसकी आँखों में...

क्या होगा वो भी यूँ ही मेरे इंतज़ार में
"हम मिलेंगे कभी" इसी ऐतबार में...
न जाने कैसा होगा वो, कहाँ होगा?
कैसी होंगी उसकी आँखें, उसकी बाँहें?

ये सपना सच होगा या रहेगा सिर्फ धोखा
न जाने कब एक होंगी हमारी जुदा रांहें...

ये कैसा अहसास है...

दिन-रात महसूस होता है जो...
ये कैसा अहसास है???
है तो मुझसे दूर... पर...
फ़िर भी मेरे सबसे पास है...

मेरी मंजिल, मेरा साहिल और मेरी जीने की जुस्तज़ू
जानती हूँ मुश्किल है ये सोचना...
पर फ़िर भी हर आरज़ू के पूरे होने की आस है...