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आज इसे झेलिये... पहला रिलीज़...

आज न तो कोई कविता न ही कोई लेख...
बल्कि एक गुज़ारिश... 
एक नया पत्ता खेला है...
नया हाँथ आज़माया है...

आपमें से कुछ को परेशान कर चुकी हूँ
कुछ को परेशान करना बाकी था..
कुछ को सुना दिया
कुछ के कान खाना बाकी था...
क्या है न, आज तक सिर्फ दिमाग खाती आयी हूँ सबका...
और बताया भी, की कुछ नया try किया है...
इसीलिए सोचा की अब कान खाऊँ...


पर प्लीज़ बताइयेगा ज़रूर...
की, लगा कैसा???

हाँ...
इसमें ऋषि, प्रतिभा और के.के. का बहुत बड़ा हाँथ है...
इसमी जो कुछ,
मिठास है...
वो सिर्फ ऋषि और प्रतिभा के कारण... 
और सुन्दरता के.के के कारण...
और जी...
Sonore Unison Music का भी...

THANK YOU SO MUCH FRIENDS... :)

टीम के बारे में आप सबकुछ इस विडियो में ही पढ़ लेंगें...

शायद उनके परिवार में किसी को Cancer नहीं हुआ...

जी... सही है... जो कुछ मैंने पिछले दो-तीन दिनों में पढ़ा, उससे तो यही लगता है की उनके परिवार में किसी को cancer जैसी घातक बीमारी का सामना नहीं करना पड़ा... और इसिये शायद वो इसका दर्द नहीं जानते...
वैसे तो मुझे लगता है कि, ये बीमारी कभी किसी को न हो... दुश्मन को भी नहीं... क्योंकि मैंने इस बीमारी को बहुत करीब से देखा है और अपने दिल के बहुत करीब तीन जन खोये हैं... बब्बा{दादा जी}, नानी और बड़की अम्मा... 

बहुत ही दर्द होता है जब आपका कोई अपना आपको छोड़ के चला जाता है... और खासतौर पर जब वो आपकी ज़िंदगी में बहुत ख़ास स्थान रखते हों... दादा-दादी या नाना-नानी का साथ, आशीर्वाद, प्यार-दुलार छोट जाए न, तो सिर्फ यादें और आंसूं रह जाते हैं... I love you all so much... miss you too...  :(
खैर... आप लोग सोच रहे होंगें कि आज अचानक ये बातें कहाँ से आ गईं... इतनी पोस्ट्स में मैंने कभी ये बातें नहीं कहीं, और आज अचानक...
जी, अचानक...
हुआ यूं कि, दो दिन नेट-कनेक्शन ख़राब होने के कारन मैं ऑनलाइन नहीं आ पाई, और जब कल आई तो gmail , facebook etc एक्सेस किया... ढेर सारे मेल्स और ढेर सारे notifications ,...  सब देख रही थी... तभी नज़र गई सोनिया गांधी जी के ऑपरेशन की खबर की details के बारे में... खासतौर पर "Times of India  और economic -times की रिपोर्टिंग पर, क्योंकि ऑपरेशन के लिए बाहर जाने की खबर तो T.V. पर मिल गई थी... जहाँ उन्होंने बताया था कि सोनिया गांधी जी को New York`s Memorial Sloan-Kettering Cancer Center, में एडमिट किया गया है, और एक बहुत ही अच्छे oncologist उनका इलाज करेंगें... इन सब का मतलब तो यही निकला कि उनके cancer -treatment दिया जा रहा है... पहली नज़र में तो यही समझ में आता है... और उसके नीचे ढेर सारे likes और कमेंट्स... न रहें होंगें तब भी करीबन 175 -200  तो पक्के थे... ख़ुशी हुई कि चलो कम-से कम हम अभी भी लोगों की केयर करना जानते हैं... मन हुआ कि पढ़ा जाए कि कैसी शुभकामनाएं दीं हैं लोगों ने, कभी-कभी ऐसे ही कमेंट्स में लोग कुछ बहुत अच्छी बातें सिखा देते हैं... और कमेंट्स पे क्लिक किया... और जो पढ़ा, वाह जी वाह... बहुत खूब... वाकई बहुत कुछ सीख लिया...
कमेंट्स देनेवालों में कुछ महानुभावों ने सोनिया जी के बाहर जाने के कयास लगे थे कि pregnant हैं, उन्हें AIDS हो गया है, कुछ ने शोक जताया था कि वो मर क्यों नहीं जातीं... हाँ कुछ लोगों ने जरूर कहा था "all the luck" "get well soon" पर ऐसे लोगों की संख्या सिर्फ चार या छः थी... बाकी तो सभी एक ही राग गा रहे थे... यहाँ तक कि लडकियां भी... और इनमें से कई लडकियां राहुल गांधी जी पे फ़िदा भी थीं, क्योंकि वो वहां उनके handsome होने के गुणगान कर रहीं थीं...
वाह... मानना पड़ेगा हमें... कितने महान हैं हम सब...
सच मानिये, मैंने सारे कमेंट्स पढ़े, और पढ़ते-पढ़ते रोई भी... हमारे यहाँ किसी को कैंसर होने की खबर भी आती है तो सभी के मुंह से एक ही बात निकलती है "भगवान ये बीमारी दुश्मन को भी न दे"... शायद इसीलिए, क्योंकि हमनें अपने खोये हैं... और न सिर्फ इसी बीमारी के लिए बल्कि कहीं की कोई भी बुरी खबर सुनते हैं तो यही कहते हैं... और माना कि उन्होनें किसी अपने को नहीं खोया,{ भगवान करे कि सभी के अपने सभी के पास रहें पर समय-चक्र का कुछ नहीं किया जा सकता परन्तु कोई इस तरह न जाए} पर क्या किसी के दर्द को समझने के लिए उस दर्द से गुजरना जरूरी है? या संवेदना, भावना नाम की चीज़ें हमारे अन्दर से ख़त्म हो गईं हैं? या हम अन्दूरनी तौर से पाषाण युग में पहुँच गए हैं?
सच... बहुत ही ज्यादा ख़राब लगा...
कुछ ही दिनों में हम अपना स्वतंत्रता-दिवस मानाने वाले हैं... यानी एक और साल आज़ादी के नाम...
वाकई हम कुछ ज्यादा ही आज़ाद हो गए हैं... किसी को कुछ भी बोलने की आज़ादी ही नहीं, बल्कि बुरा, गन्दा, ख़राब और घटिया बोलने में हम पीछे नहीं हटते... 
पर क्या हमारे अन्दर से आत्मीयता ख़त्म हो चुकी है? 
मन तो हो रहा था कि उन सब को सामने बिठा कर चिल्लाऊं और पूछूं कि क्या यही हमारे संस्कार हैं या यही तालीम मिली है हमें? इन्हीं सब लिए हमें गर्व होता है कि हम भारतीय हैं?
अच्छा चलिए एक बात मान भी लें कि सोनिया जी हमारे भारत की नहीं हैं, मेहमान है, विदेशी महिला हैं... और भी ऐसे ही मिलते-जुलते तथ्य... तो फिर "अथिति देवी भवः" भूल गए या आजकल हम भगवान को भी उल्टा-सीधा बोलने में भी नहीं चूकते... और यदि इस बात को किनारे भी कर दिया जाए, तब तो जिन विदेशी महिलाओं के साथ बलात्कार या ठगी की घटनाओं को अंजाम देने वालों को हमें राष्ट्रीय पुरस्कार देना चाहिए, ब्रवेरी अवार्ड से सम्मानित करना चाहिए, उनके सम्मान में उनके जन्मदिवसों में छुट्टियां घोषित होनी चाहिए...

क्या हो गया है हमें???
ये कहाँ आ गएँ है हम???
या शायद मेरे घरवालों की गलती है जिन्होंने हमें नए और मोडर्न ज़माने का नहीं बनाया... समय के साथ चलना तो सिखाया परन्तु यूं बे-ग़ैरत होना नहीं सिखाया... हमें उन्होंने हमेशा यही सिखाया कि "बेटा, जो तुमसे बड़ा है वो बड़ा है, उसे सम्मान देना ही तुम्हारा कर्तव्य है" कितने पुराने विचारों के हैं ये लोग... और हमें भी वही बना दिया... पर हम खुश हैं क्योंकि आज हमें खुद से नज़रें चुरानी पड़ती, और न ही कभी हमारे घरवालों को हमारी वजह से सर झुकाना पड़ता है... हम पुराने विचारों के ही सही, और दूसरों की तरह कूल" न सही पर सर उठा कर जीते हैं और खुश हैं...

हो सकता है कि आप लोगों में कई लोग मुझसे सहमत न हों... कोई बात नहीं... वो आपके अपने विचार हैं... आप अपनी असहमती बतलाने के लिए आज़ाद हैं... हो सकता है कि मैं कहीं गलत हूँ, सुधार की जरूरत हो तो जरूर बताएं...

वापस आ ही रही थी कि...

आज फ़िर से आ गई... ये नहीं कहूँगी कि आ पाई... क्योंकि ये तीन महीने बहुत से अनुभवों से गुज़री और बहुत कुछ सीख भी गई...
और वापस तो 3 दिन पहले ही आ जाती... मगर ये गूगल रूपी काली बिल्ली ने रास्ता काट दिया तो बस... हुआ ये कि इतने दिन बाद जब ब्लॉग लिखने पहुँची तो उससे हिंदी फ़ॉन्ट ही गायब... मुझे लगा कोई सेट्टिंग बदल गई... सब छाना-खंगाला, पर कुछ समझ नहीं आया... "help zone" भी ट्राई किया, मगर कोई फायदा नहीं... फ़िर मासूम अंकल को परेशान किया, तब उन्होंने बताया कि ये मेरे बस नहीं बल्कि सभी में यही दिक्कत आ रही है... और गूगल हिंदी टाईपिंग का रास्ता सुझाया... thank you so much uncle ... :)
हाँ अब अनुभवों की बात... और इन तीन महीनों की बात...
सीखना पड़ता ही, आज नहीं तो कल... बस कुछ हालत अलग होते... सबसे ज्यादा मेरी प्यारी-सी माँ खुश हैं... उनका कहना है कि "चलो अच्छा हुआ, भले ही मेरा हाँथ-पैर टूटा पर तुम इतना मैनेज करना सीख गई"... पर उन्हें या परिवार में बड़ी माँ, बुआ या चाचा लोगों को यकीन नहीं होता कि मैं ये सब मैनेज कर रही हूँ, क्योंकि उनकी नज़र में मैं आज भी वही छोटी सी पूजा हूँ... पर अब अचंभित और खुश... सबसे ज़्यादा माँ और मौसियाँ, क्योंकि उन्हें मैं नानी के यहाँ कि लड़कियों में एक लगती ही नहीं थी और दादा जी के घर में सब यही कह रहे हैं कि "हमें तो पता था कि जब भी वक़्त आएगा ये सब संभाल लेगी"...
खैर!!! ये हो गई घरवालों की बात, पर यदि अब मैं सच कहूं तो मैं खुद समझ नहीं पा रही कि ये सब मैंने कैसे संभाल लिया??? क्योंकि एक टाईम पे हमेशा एक ही मोर्चा संभाला है... पर इस बार तो बाबा रे बाबा... सब कुछ...
और हाँ एक सबसे जरूरी बात... वो सारी महिलायें जो "हाऊसवाईव्स" हैं, मेरा नतमस्तक प्रणाम स्वीकार करें...
मतलब, आप लोग कैसे सब कुछ इतने अच्छे से संभाल लेतीं हैं???
सच कितना मुश्किल होता है न... घर के फईनेंसस, खाना-पीना, मेन्यू, सबकी पसंद-नापसंद याद रखना, व्यवहार-रिश्तेदार, बच्चे... ये तो हो गए कुछ बड़े-बड़े काम... पर छोटे-छोटे काम जो दिखाई नहीं देते, जैसे किस कमरे में कौन-सी चादर, कैसे परदे... और भी पता नहीं क्या-क्या... सच में... तीन महीने में रोज़ मैं सारी हाऊसवाईव्स को सलाम करती थी... और मेरी माँ महान... जिनके कारण शायद मुझसे ये सब हैंडल हो गया... वर्ना पता नहीं मैं क्या करती और माँ की जमी-जमाई गृहस्थी का क्या होता???
पर सच कहूं... इन सारे उलझनों के बीच बस एक ही चीज़ अच्छी लगती थी, और वो थी माँ के चेहरे कि मुस्कराहट... जिसमें ज़रा-सी चिंता, ज़रा-सी मस्ती, ज़रा-सा भरोसा, ज़रा-सा चैन, ज़रा-सा आराम और ज़रा-सा गर्व होता है... और शायद में माँ के मन को ज़रा-सा समझ भी पाई हूँ... क्योंकि हमेशा मैं और मेरी बहन PAPA's Girls रहे... और लगता भी यही था कि माँ भाई को ज्यादा प्यार करती हैं, उसकी और माँ कि ज्यादा बनती है... पर नहीं... उनका असली ध्यान तो बेटियों के ऊपर रहता है... क्योंकि हम उनका गर्व होते हैं... ये बात माँ ने पहली बार मुझसे कही... कि माँ लड़कियों पे ज्यादा भरोसा कर सकती हैं और उन्ही पे ज्यादा डिपेंड भी हो सकती हैं... :)
और सच ये बात जानकर बहुत ही आश्चर्य हुआ... जो हम सोचते थे उससे बिल्कुल उल्टा... और बहुतhi सारी ख़ुशी...
आज के लिए इतना ही... बाकी ढेर सारी बातें धीरे-धीरे अलग-अलग पोस्ट्स में...

मिठाइयाँ... मिठाइयाँ... मिठाइयाँ... सधन्यवाद...


जैसा कि आप सब जानते ही हैं कि हमारे भाई जी, अरे अपने संजय भाई {संजय भास्कर}, ये बहुत ही प्यारी-सी भाभी ले आए हैं...भाई को तो आप जानते ही हैं... चलिए आपको अपनी भाभी से मिलवाते हैं...
प्रीती
भाभी... वो बिल्कुल अपने नाम कि तरह हैं... और उनकी आवा तो बस पूछि मत, बहुत ही मीठी... कहें तो प्यारी, मीठी बोली वाली, समझदार, अकल्मन्द, आल-इन-आल, सर्वगुण संपन्न...
ये खबर तो आप लोगों को मिल ही गई है... और बहुत खुशी हुई कि आप लोगों ने अपने ढेर सारे प्यार और आशीर्वाद से इस जोड़ी को नवाज़ा है... बहुत-बहुत धन्यवाद...
हाँ बस आप लोगों का मुंह मीठा करवाना बाकी रह गया था... तो लीजिये पेश है आप लोगों की खिदमत-ए-मिठाई...

सुस्वागतम...