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शायद उनके परिवार में किसी को Cancer नहीं हुआ...

जी... सही है... जो कुछ मैंने पिछले दो-तीन दिनों में पढ़ा, उससे तो यही लगता है की उनके परिवार में किसी को cancer जैसी घातक बीमारी का सामना नहीं करना पड़ा... और इसिये शायद वो इसका दर्द नहीं जानते...
वैसे तो मुझे लगता है कि, ये बीमारी कभी किसी को न हो... दुश्मन को भी नहीं... क्योंकि मैंने इस बीमारी को बहुत करीब से देखा है और अपने दिल के बहुत करीब तीन जन खोये हैं... बब्बा{दादा जी}, नानी और बड़की अम्मा... 

बहुत ही दर्द होता है जब आपका कोई अपना आपको छोड़ के चला जाता है... और खासतौर पर जब वो आपकी ज़िंदगी में बहुत ख़ास स्थान रखते हों... दादा-दादी या नाना-नानी का साथ, आशीर्वाद, प्यार-दुलार छोट जाए न, तो सिर्फ यादें और आंसूं रह जाते हैं... I love you all so much... miss you too...  :(
खैर... आप लोग सोच रहे होंगें कि आज अचानक ये बातें कहाँ से आ गईं... इतनी पोस्ट्स में मैंने कभी ये बातें नहीं कहीं, और आज अचानक...
जी, अचानक...
हुआ यूं कि, दो दिन नेट-कनेक्शन ख़राब होने के कारन मैं ऑनलाइन नहीं आ पाई, और जब कल आई तो gmail , facebook etc एक्सेस किया... ढेर सारे मेल्स और ढेर सारे notifications ,...  सब देख रही थी... तभी नज़र गई सोनिया गांधी जी के ऑपरेशन की खबर की details के बारे में... खासतौर पर "Times of India  और economic -times की रिपोर्टिंग पर, क्योंकि ऑपरेशन के लिए बाहर जाने की खबर तो T.V. पर मिल गई थी... जहाँ उन्होंने बताया था कि सोनिया गांधी जी को New York`s Memorial Sloan-Kettering Cancer Center, में एडमिट किया गया है, और एक बहुत ही अच्छे oncologist उनका इलाज करेंगें... इन सब का मतलब तो यही निकला कि उनके cancer -treatment दिया जा रहा है... पहली नज़र में तो यही समझ में आता है... और उसके नीचे ढेर सारे likes और कमेंट्स... न रहें होंगें तब भी करीबन 175 -200  तो पक्के थे... ख़ुशी हुई कि चलो कम-से कम हम अभी भी लोगों की केयर करना जानते हैं... मन हुआ कि पढ़ा जाए कि कैसी शुभकामनाएं दीं हैं लोगों ने, कभी-कभी ऐसे ही कमेंट्स में लोग कुछ बहुत अच्छी बातें सिखा देते हैं... और कमेंट्स पे क्लिक किया... और जो पढ़ा, वाह जी वाह... बहुत खूब... वाकई बहुत कुछ सीख लिया...
कमेंट्स देनेवालों में कुछ महानुभावों ने सोनिया जी के बाहर जाने के कयास लगे थे कि pregnant हैं, उन्हें AIDS हो गया है, कुछ ने शोक जताया था कि वो मर क्यों नहीं जातीं... हाँ कुछ लोगों ने जरूर कहा था "all the luck" "get well soon" पर ऐसे लोगों की संख्या सिर्फ चार या छः थी... बाकी तो सभी एक ही राग गा रहे थे... यहाँ तक कि लडकियां भी... और इनमें से कई लडकियां राहुल गांधी जी पे फ़िदा भी थीं, क्योंकि वो वहां उनके handsome होने के गुणगान कर रहीं थीं...
वाह... मानना पड़ेगा हमें... कितने महान हैं हम सब...
सच मानिये, मैंने सारे कमेंट्स पढ़े, और पढ़ते-पढ़ते रोई भी... हमारे यहाँ किसी को कैंसर होने की खबर भी आती है तो सभी के मुंह से एक ही बात निकलती है "भगवान ये बीमारी दुश्मन को भी न दे"... शायद इसीलिए, क्योंकि हमनें अपने खोये हैं... और न सिर्फ इसी बीमारी के लिए बल्कि कहीं की कोई भी बुरी खबर सुनते हैं तो यही कहते हैं... और माना कि उन्होनें किसी अपने को नहीं खोया,{ भगवान करे कि सभी के अपने सभी के पास रहें पर समय-चक्र का कुछ नहीं किया जा सकता परन्तु कोई इस तरह न जाए} पर क्या किसी के दर्द को समझने के लिए उस दर्द से गुजरना जरूरी है? या संवेदना, भावना नाम की चीज़ें हमारे अन्दर से ख़त्म हो गईं हैं? या हम अन्दूरनी तौर से पाषाण युग में पहुँच गए हैं?
सच... बहुत ही ज्यादा ख़राब लगा...
कुछ ही दिनों में हम अपना स्वतंत्रता-दिवस मानाने वाले हैं... यानी एक और साल आज़ादी के नाम...
वाकई हम कुछ ज्यादा ही आज़ाद हो गए हैं... किसी को कुछ भी बोलने की आज़ादी ही नहीं, बल्कि बुरा, गन्दा, ख़राब और घटिया बोलने में हम पीछे नहीं हटते... 
पर क्या हमारे अन्दर से आत्मीयता ख़त्म हो चुकी है? 
मन तो हो रहा था कि उन सब को सामने बिठा कर चिल्लाऊं और पूछूं कि क्या यही हमारे संस्कार हैं या यही तालीम मिली है हमें? इन्हीं सब लिए हमें गर्व होता है कि हम भारतीय हैं?
अच्छा चलिए एक बात मान भी लें कि सोनिया जी हमारे भारत की नहीं हैं, मेहमान है, विदेशी महिला हैं... और भी ऐसे ही मिलते-जुलते तथ्य... तो फिर "अथिति देवी भवः" भूल गए या आजकल हम भगवान को भी उल्टा-सीधा बोलने में भी नहीं चूकते... और यदि इस बात को किनारे भी कर दिया जाए, तब तो जिन विदेशी महिलाओं के साथ बलात्कार या ठगी की घटनाओं को अंजाम देने वालों को हमें राष्ट्रीय पुरस्कार देना चाहिए, ब्रवेरी अवार्ड से सम्मानित करना चाहिए, उनके सम्मान में उनके जन्मदिवसों में छुट्टियां घोषित होनी चाहिए...

क्या हो गया है हमें???
ये कहाँ आ गएँ है हम???
या शायद मेरे घरवालों की गलती है जिन्होंने हमें नए और मोडर्न ज़माने का नहीं बनाया... समय के साथ चलना तो सिखाया परन्तु यूं बे-ग़ैरत होना नहीं सिखाया... हमें उन्होंने हमेशा यही सिखाया कि "बेटा, जो तुमसे बड़ा है वो बड़ा है, उसे सम्मान देना ही तुम्हारा कर्तव्य है" कितने पुराने विचारों के हैं ये लोग... और हमें भी वही बना दिया... पर हम खुश हैं क्योंकि आज हमें खुद से नज़रें चुरानी पड़ती, और न ही कभी हमारे घरवालों को हमारी वजह से सर झुकाना पड़ता है... हम पुराने विचारों के ही सही, और दूसरों की तरह कूल" न सही पर सर उठा कर जीते हैं और खुश हैं...

हो सकता है कि आप लोगों में कई लोग मुझसे सहमत न हों... कोई बात नहीं... वो आपके अपने विचार हैं... आप अपनी असहमती बतलाने के लिए आज़ाद हैं... हो सकता है कि मैं कहीं गलत हूँ, सुधार की जरूरत हो तो जरूर बताएं...

सीध-साध हिंदी...

या ऊँ लिखिन दोहा
या फेर लिखिन चौपाई...
भक्तिरस मा लीन रहें
ता कईसन करतें बुराई?

अईसन डूबे देउता मा
रचि डारिन मानस...
कोऊ लिखिन रामायण
ते कोऊ महाभारत...

कोऊ अईसन लीन भा
के आपन घर-दुआर दीन्हिस छाँड़...
कोऊ बनीं दीवानी मूर्ति देख के
ते कोऊ चल दीन्हीहीं पूजै पहार...

बाह रे बड़े-बड़े रचियता
ते बाह रे ओन्खर गाथा...
सुन-सुन ओन्खर किस्सा कहानी
भैया चकराय लाग हमार माथा...

"अम्मा तैं दई दे हमहीं पूरी-तरकारी
जाहे मा पूर सार है"
हमसे बनत ही सीध-साध हिंदी
बाकी हमारे लाने सब बेकार है...


*ये हमारी क्षेत्रीय भाषा "बघेली" में मेरी पहली कोशिश थी... ये भाषा सरल एवं हिंदी से मिलती-जुलती है इसीलिए मैंने अर्थ नहीं लिखे, परन्तु यदि किसी को कहीं किसी शब्द का अर्थ समझने में दिक्कत हो तो कृपया बता दें... उम्मीद है की मेरी पहली कोशिश आपको पसंद आयेगी...
**मेरा किसी को कोई अघात पहुँचने का मकसद नहीं है... परन्तु यदि किसी को कोई बात ख़राब लगे तो क्षमा कीजियेगा...

मन छू लिया इस वीडियो ने... जरूर देखिये...

आप सभी को मेरा नमस्कार...
आज मैं कोई रचना या कोई और बात लेकर यहाँ लिखने नहीं आई हूँ... बल्कि आप सभी के साथ एक वीडियो शेयर करना चाहती हूँ... हो सकता है कई लोगों ने इसे देखा भी हो पर जिन्होंने नहीं देखा है, प्लीज़ देखिये और बताइए पसंद आया या नहीं...
पहले मन आप लोगों को इसके बारे में कुछ जानकारी दे दती हूँ... ये पाकिस्तान के एक T.V.Series से है... उस Series का नाम है "Coke Studio"... ये तीसरे सीजन का हिस्सा था... अब आप सोचेंगें कि ये कैसा प्रोग्राम है?
तो जैसा कि इसके नाम में studio है, ये लोग अलग-अलग जौनर के गायकों को बुलाते हैं, या फ़िर किसी एक गायक ने दूसरे को न्योता दिया साथ में गाने का, फ़िर कोई गाना डिसाइड होता है जिसका एक लाईव जैमिंग सेशन होता है...
इस वीडियो में जोश ग्रुप और शफ़क़त अमानत अली जी हैं... दोनों ही अपने जौनर में महारथी हैं...
एक और गुजारिश है कि आप बोल ध्यान से सुनें... बहुत ही प्यारे हैं...
हो सकता है कि कुछ लोगों को ये पसंद भी न आए... तो कृपया वो लोग भी बता दें... क्योंकिं जरूरी तो नहीं कि जो चीज़ मुझे पसंद हो वो हर किसी को पसंद हो...
हाँ एक और जरूरी बात... ये वीडियो मुझे मेरे भाई ने दिखाया था... पूरे भरोसे के साथ कि मुझे पसंद आएगा... क्योंकिं मेरी और उसकी पसंद में बहुत फर्क है...
तो आप वीडियो देखिये और एन्जॉय किजीये...


वीडियो के लिए प्लीज़ यहाँ पर क्लिक करें...

पिछले दिनों...

पिछले कुछ दिन बड़े अजीब बीते...
बहुत सारे परदे उठे,
बहुतों की सच्चाई सामने आई...
पहले तो यकीन नहीं हुआ,
कि ये वाकई सच है...
दिमाग ने मान भी लिया...
पर दिल को समझाना जरा मुश्किल था...
धीर-धीरे वो भी समझ गया

लगा जैसे किसी जोर का तमाचा मार
नींद से जगा दिया दिया हो मुझे...
और एक सुन्दर-सा ख्वाब
जो देख रही थी मैं
उसे तोड़ दिया हो
चकनाचूर कर दिया...
तिमिर से निकाल मुझे
अचानक
दोपहर कि चिचालती धुप में ला खड़ा किया हो...
आँखे भी मिलमिला गयीं थीं...

पर धीर-धीरे उन्होंने भी
साचा के उजाले को,
उसकी तपन को अपना लिया...

सबसे बड़े आश्चर्य की बात
न जाने कहाँ से मुझमें
ये सहनशक्ति आ गयी
कि मैं उन चेहरों को
देख मज़े ले रही थी
मुस्कुरा रही थी
मुझे खुद नहीं पता कि
मेरा comfort-zone
अचानक इतना बड़ा कैसे हो गया...

पर...
जो हुआ
बहुत खूब हुआ
अच्छा हुआ...
मुझे इस यथार्थ को जाने का संयोग प्राप्त हुआ...

उन सभी चेहरों को
उन मुखौटों को शुक्रिया...

बनारस...

ये है एक पावन धरती
यहाँ है गंगा, भोलेनाथ
और न जाने कितनी संस्कृतियों का मेल...
मत करो ये शोरगुल, ये धमाके
और ये लाश बिछाने का खेल...
कुछ और नहीं कर सकते
तो इतना ही कर दो
अपने नाम के आगे से ये "INDIAN" ही हटा दो...

आज की पोस्ट यहाँ नहीं है...

जी हाँ सही पढ़ा आपने, आज मेरी पोस्ट प्रकाशित तो हुई है, परन्तु यहाँ, मेरे ब्लॉग पर नहीं...
आज मेरी लिखी एक कविता प्रकाशित हुई है S.M.Masoom ji के ब्लॉग "अमन का पैगाम" में...
सच कहूँ तो जब मासूम जी ने मुझसे इस विषय पर लिखने को कहा, तब बुद्धि काम ही नहीं कर रही थी... समझ नहीं आया कि मैं क्या लिखूं इस परा क्योंकि बड़े-बड़े लोग इस विषय पर लिख रहे थे, और मासूम जी उनकी रचनाएँ पोस्ट भी कर रहे थे... और इस लोगों के सामने मैं तो एक विद्यार्थी हूँ... और मेरी बुद्धि, गज़ब है... हमेशा उल्टी ही चलेगी... उन्होंने लिखने को कहा था कुछ और मैं लिख रही थी कुछ... {आप पढियेगा, तो खुद ही समझ जाएगें} ...
खैर, डरते-डराते उन्हें अपनी रचना भेज दी... और साथ में ये भी लिख दिया कि, "आप पहले देख लें, ठीक लगे तभी प्रकाशित करें"... कल{1/dec} उनका मेल आया कि आज मेरी रचना को प्रकाशित किया जा रहा है... यकीन मानिये, लगा था कि हो गया बेटा पूजा जितनी भी image बनी है आज सबका कचरा होना है... लगा था कि लोग न जाने क्या सोचेंगें??? कहेंगें... "अच्छी उल्टी खोपड़ी की लडकी है"
पर आज जो हुआ... unbelievable... सच... यकीन नहीं हो रहा कि लोगो को पसंद आ रहा है... लोग तारीफ कर रहे हैं... शायद किस्मत है कि लोग और मेरी ऐसी उल्टी-पुलटी रचनाओं को भी पसंद कर रहे हैं...
सबसे पहले मासूम जी को धन्यवाद, जिन्होंने मुझे लिखने का अवसर प्रदान किया... और फ़िर उन सभी लोगों को धन्यवाद जिन्होंने यूं मुझपर अपना आशीष बनाया और मेरी ऐसी रचना को भी पसंद किया...
बहुत-बहुत शुक्रिया...
रचना यहाँ है...
कौन-सा पैगाम... और किसके नाम...???

चलो थोड़े स्वार्थी हो जांए...

आज की इस दुनिया और इस life style में इतने busy हो गए हैं की हमारे पास अपने लिए ही वक़्त नहीं रह गया है... जिसे देखो बस भाग रहा है या एक fixed life जी रहा है, सब कुछ time-table के हिसाब से... जिंदगी न होकर train हो गयी है, चढ़ा दिया पटरी पर, और फुरसत... बस चली जा रही है... हम सबका ख्याल रखते सिवाय खुद के... पर ऐसा क्यूँ? क्या वाकई अब हमें २४ घंटे भी कम पड़ने लगे हैं या जो भी हम करते है वो बस इस rat-race में बने रहने के लिए...
कितना मुश्किल है न आज की इस दुनिया में सफल होना... हर competition में अपने आप को prove करना , पहले school, फिर college, फिर job और फिर घर... सबसे पहले एक position बनाने की चिंता और फिर उसे maintain करने की... वाकई कितनी कठिन हो गयी है हमारी life... या कहे तो हमारी so called life...
और फिर जो भी वक़्त बचा इस rat-race से वो हम दे देते है अपनों को, वो जो हमारे करीब हैं... आख़िर उनका भी तो कुछ हक़ है हमारी ज़िन्दगी में... उनकी ख़ुशी, उनका दुःख... ये सब भी हमारी ही जिम्मेदारियों का ही एक हिस्सा है... और फिर ये keyboard, जहाँ हम web-pages में जहा हम कभी कोई रिश्ता निभा रहे होते है तो कभी ख़ुशी और शांति तलाश रहे होते हैं... पर इन सबके बीच हम कहाँ हैं? एक ऐसा पल जिसे हम पूरी तरह अपना कह सकें... क्या कभी यूँ ही बैठे-बैठे आप खुद miss नहीं करते, क्या कभी बस यूँ ही बिना बात के मुस्कुराना या यूँ ही खुश जाना या कोई अनजानी-सी या कोई भूली-बिसरी धुन गुनगुनाने का मन नहीं होता? होता है न... पर हम नहीं करते... क्यों??? क्योंकि उससे हम अपने लक्ष्य से भटक सकते हैं... हमारा time-waste हो सकता है...
क्या याद है की last-time आप कब खुश हुए थे, या क्या ऐसा किया था जिससे आपको ख़ुशी मिली हो? last-time कब किसी दोस्त को बिना काम के, बस यूँ ही हाल-चाल जानने के लिए phone किया था...
या कब e-mail forward करने की वजाय बस यूँ ही "hii" "how are you" . type करके भेजा था... कर सकते थे... पर नहीं किया... क्यों... time-waste... क्या वाकई अब हमारी खुशियाँ हमारे लिए सिर्फ time-wastage बन कर रह गयी है... यही रह गयी हमारी हमारी खुशियूं की पहचान...
नहीं न...
तो चलो एक शुरुआत करते हैं... थोड़े से selfish हो जाते हैं... हर दिन... यानी २४ घंटो से कुछ पल चुराते हैं... जो सिर्फ हमारे होंगे...

तो चलो ...
थोड़े स्वार्थी हो जाते हैं
कुछ पल चुराते हैं....
बहुत मुस्कुरा लिए औरों के लिए ,
चलो एक बार अपने लिए मुस्कुराते हैं...
बहुत हुआ दूसरों की धुन गुनगुनाना,
चलो अब अपनी एक धुन बनाते है...
चलो कुछ पल चुराते हैं...
थक गए ये हाथ कागज़ में sketch बनाते-बनाते,
चलो अब आसमाँ में उंगलिया चलाते हैं...
बहुत हुआ एक ही ढर्रे में चलना,
चलो अब कुछ नया आज़माते हैं...
चलो कुछ पल चुराते हैं...
जाने-पहचाने रास्तों पे चलना, बहुत हुआ,
चलो कुछ अनजान रातों की ओर कदम बढ़ाते हैं...
वही पुरानी recipes, वही पुराना स्वाद,
चलो कोई नया ज़ायका आज़माते हैं...
चलो कुछ पल चुराते हैं...
अपनों से अपनापन निभाते ज़माने हो गए,
चलो किसी अजनबी को अपना बनाते हैं...
थक कर चूर हो गए यूँ ही भागते-भागते...
चलो कुछ पल आराम के बिताते हैं...
चलो कुछ पल चुराते हैं...

P.S. :-
ये मेरी एक पुरानी पोस्ट है... न जाने क्यूं आज इसे पढ़कर फ़िर से आप लोगों के साथ बांटने का मन हुआ... सो पोस्ट कर दी...

लाली देखन मै भी चली...

"लाली मेरे लाल की, जित देखूं उत लाल...
लाली
देखन मै गयी, मैं भी हो गयी लाल..."


पंक्तियों को पढ़
सज-सँवर,

प्रेम-रस में डूब कर...
अपने नन्हें हाथों में
कुछ कोमल सपनों की पोटली ले
निकली थी

मैं भी अपने लाल को खोजने...

बाहर आकर देखा
तो मंज़र कुछ और ही था...

हर दरवाज़े पर एक लाल खोपड़ी टंगी थी...
और नीचे लिखा था... DANGER... खतरा...
प्यार के रास्ते में ख़तरा???

बात समझ के परे थी ...
मैं आगे चल पडी...


जो दिखा...
उसमें...
कहीं लडकी होने के कारण

बुरी नीयतों का खतरा...
कहीं जात-पात का खतरा
कहीं रिवाजों के टूट जाने का खतरा...
तो कहें ऊँच-नीच का खतरा

कहीं सह्गोत्री होने के कारण
ऑनर-किलिंग का खतरा...
तो कहीं नकास्ल्वाद,
आतंकवाद का खतरा...
या फ़िर,
प्रादेशिक अलगाव या भाषा अलग होने से
पहचाने जाने का खतरा...

कहीं धोखे-से किसी दरवाज़े को

छूने की कोशिश भी करती...
चरों ओर से खतरनाक आवाज़ गूंजती...
"खतरा... ख़तरा... खतरा..."
इतना सुन
ऐसा लगा मनो
फट पड़ेंगीं दिमाग की नसें...
पागल हो जाउंगी मै इस गर्जना से...
और टूट जायेंगे मेरे सपने सच होने से पहले...

इसी डर से समेट ली
अपनी पोटली अपने सीने में

और चीख पड़ी थी ज़ोर से...

पर ध्यान आया अचानक
अपने नन्हें सपनों का
फटाफट खोली वो पोटली...

पर...
तब तक...
वो त्याग चुके थे अपने प्राण
और मैं नहा रही थी उनके लहू से...


तब याद आया कि...
लाल रंग केवल प्रेम का नहीं
"खतरे" का सूचक भी है...
और अब उन पंक्तियों का मतलब मैं समझ भी गयी थी
और उन्हें आज के युग में चरितार्थ भी कर रही थी...

वाकई...

"लाली मेरे लाल की, जित देखूं उत लाल... लाली देखन मै गयी, मैं भी हो गयी लाल..."

3G एवरेस्ट तो पहुँच गया, परा ज़मीन में कब आएगा???

आज BBC में एक न्यूज़ आई कि एक मोबाइल सेवा कंपनी ने अपना नेटवर्क माऊंट एवरेस्ट तक पहुंचा दिया। पढ़कर अच्छा भी लगा और आश्चर्य भी हुआ, कि हम ज़मीन में रहने वालों को अभी यह सुविधा प्राप्त नहीं हुई और माऊंट एवरेस्ट पहुँच गयी।
Ncell नाम की एक नेपाली फर्म है जो की TeliaSonera नामक स्वीडिश कम्पनी की है, जिसने ये काम किया है।
अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए लिंक पर पूरी रिपोर्ट पढ़ सकते हैं।

http://www.bbc.co.uk/news/world-south-asia-11651509

एक डरपोक ब्लॉगर से सामना...

कल बड़ी ही मजेदार घटना हुई... और न जाने क्यूं रह-रह कर मुझे अभी तक हंसी भी आ रही है... अच्छा आप में से कोई भी मुझे एक बात बताइए, यदि आप मेरे ब्लॉग पढ़ते हैं, जब सही लगता है तो तारीफ़ करते हैं और जब गलत तब मुझे बताते भी हैं... और जहाँ तक मुझे याद है, मैंने यदि गलती की है तो स्वीकार भी है, और उसे सुधारने की पूरी कोशिश भी की है, यहाँ तक कि जिन भी ब्लॉग में गयी हूँ, वह भी यदि किसी न लिखने वाले को गलती बताई है तो उसने मानी है... पर कल एक ब्लॉग पर गयी, वह कुछ ऐसी बातें लिखी गयीं थीं मै जिनसे बिलकुल भी सहमत नहीं थी, सो मैंने ऐतराज़ जताया, तब लिखनेवाले व्यक्ती न मुझे बड़ी ही अभद्रता से जवाब दिया, और-तो-और अपनी बात को सही साबित करने हेतु उन्होंने अजीब-सी बातें सामने रखीं, जब मैंने उन्हें भी काट दिया, उन बातों को गलत ठहराया और साबित भी कर दिया, तब रचयिता न बड़ा ही अजीब-ओ-गरीब जवाब प्रस्तुत किया, जो मुझे नागवार लगा... मैंने उसपर भी कटाक्ष किया और दूसरे तथ्य सामने रखे... तब उन्होंने मुझे वापस उत्तर नहीं दिया... रात हो चुकी थी सो मुझे लगा कि शायद उन्होंने निद्रासन की और प्रस्थान कर लिया... पर आज सुबह जब मैंने उनके उत्तर हेतु उनका ब्लॉग विसिट किया... तो जवाब तो नहीं ही थे, मेरे कमेंट्स भी मिटा दिए गए थे...
अब मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि उन्होंने ऐसा क्यूं किया??? या तो डर, कि उन्होंने फ़िर कोई जवाब दिया और मै उसे भी गलत साबित कर दूंगी या फ़िर वो निरुत्तर होंगे... परन्तु मेरे कमेंट्स मिटने का अर्थ मुझे अभी-भी समझ नहीं आया...
जहाँ तक मैंने इस ब्लॉग की दुनिया को जाना है, सीधी-सी बात कि यहाँ आपसे भी होशियार लोग हैं, तो उनकी बातें सुननी चाहिए... और हो सकता है आप जो कर रहे हो गलत हो, तो मानना भी चाहिए... परन्तु अपने-आप को सही साबित कने के लिए कभी-भी अभद्रता का, या ऐसे किसी कार्य का सहारा नहीं लेना चाहिए जो आपके डर को, आपके अहम् को प्रस्तुत करे...
मैंने तो जो कुछ, थोडा-बहुत सीखा है यहीं आप लोगों से ही सीखा है, क्योकी मेरे पास कोई लेखकों का आधार नहीं है... सही मायनों में, मेरे घर पर सिर्फ लोग सिर्फ पढ़ते हैं या पढ़ा हुआ लिखते हैं... उन्हें लिखने में कोई रूचि नहीं है...
हो सकता है यहाँ कुछ लोग मेरी बातों से सहमत न हों, तो कृपया मुझे बताएं... आपके कमेंट्स का स्वागत है...
धन्यवाद...

एक ओर अजीब-सा फूल...

कुछ दिनों पहले मैंने यहाँ अपने एक पोस्ट धतूरे का एक अजीब फूल प्रस्तुत किया था, जिसमे एक के अन्दर तीन फूल थे... आज फ़िर से एक अजीब सा फूल प्रस्तुत कर रही हूँ... ये बिलकुल लेटेस्ट फोटो नहीं है। हुआ यूं कि आज मै अपना सिस्टम यूं ही देख रही थी, इसी सिलसिले में कुछ पुरानी फोटोस भी देखीं, और ये फोटो नज़र आ गयी तो सोचा क्यूं न इसे भी आप लोगों के साथ शेयर करूँ... ये बेला का फूल है ओर कुछ अजीब है... आप खुद ही देख लीजिये...

आत्मपरिचय... हरिवंश राय बच्चन {कुछ अंश}

आज मैं यहाँ अपनी कोई राचन लेकर नहीं बल्कि प्रसिद्द कवि, और जो प्रसिद्द रचनाकार भी हैं, जी, "हरिवंश राय बच्चन जी" की ही बात कर रही हूँ. शायद ही आज संपूर्ण भारतवर्ष में इनके नाम से कोई अछूता हो। खैर... पर आज मैं उनकी एक रचना "आत्मपरिचय" की कुछ अंश लेकर प्रस्तुत हुई हूँ, जिन्होंने मुझे बहुत अन्दर तक छुआ... और शायद हर लिखनेवाले की व्यथा यही है...

मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते हो, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!

मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का सन्देश लिए फिरता हूँ!

आशा करती हूँ आपको भी इन पंक्तियों न छुआ होगा... और इन्हें प्रस्तुत कर मै सफल हुई होंगी।
इन्हें पढ़ मेरे मन में जो आया वो कुछ इस प्रकार था...

"जो गीत तुमने गुनगुनाया, ऐसा लगा मनो
मेरा हाल-ऐ-दिल गा रहे हो
अभी जो तुमने राग सुनाया, ऐसा लगा मनो
मेरा ही तो रुदन सुना रहे हो
कैसे यूं समझ लेते हो, यूं लिख लेते हो तुम
मेरे ह्रदय की पीड़ा को
अभी जो तुमने करुण चित्र दिखाया, ऐसा लगा मनो
मुझे मेरा ही अक्स दिखा रहे हो..."

चोप्ता... गढ़वाल की अनछुई सुन्दरता...

गढ़वाल या उत्तराँचल/उत्तराखंड... जिसे भगवान ने खुद अपने हाथों से सजाया-संवारा है शायद... अप्रतिम सुन्दरता से परिपूर्ण...यहीं एक सुन्दर जगह है "चोप्ता"... जो अभी लोगों से अनजान है... पर अब कुछ लोग जाने लगे हैं... इसे गढ़वाली "मिनी स्विट्ज़रलैंड" भी कहते हैं... ये समुद्र तल से लगभग 2900 मीटर्स की ऊंचाई पर, गोपेश्वर-उखीमठ मार्ग पर स्थित है। गोपेश्वर से इसकी दूरी लगभग 40 कि.मी. है, और ऋषिकेश से लगभग 254 कि.मी. है। वैसे तो एक चोप्ता और है परन्तु वो सिक्किम में है और उसे लोग "चोप्ता वैली" के नाम से जानते हैं।
खैर... हमें इसके बारे में तब पता चला जब हम केदारनाथ जी" के दर्शन कर जोशीमठ की ओऊ बढ़ रहे थे, क्योंकी अगले दिन हमें बद्रीनाथ जी" के दर्शन के लिए जाना था। हमारे ड्राइवर ने कहा कि "आपको न तो इस जगह के बारे में कोई बातएगा और न ही ज्यादा सुनाने को मिलेगा, पर साहब जगह देखेंगे तो मन खुश हो जायेगा"। हमने भी सोचा कि देखें तो कि ऐसी कौन-सी जगह है? और हमें कौन-सा कोई नया रास्ता पकड़ना है, बस ज़रा-सा उधर से न जाकर इधर से चल देंगे। तो हमने हामी भर दी, पर ड्राइवर्स ने वहां जाने का 40 रु. अलग से माँगा, हमने कहा ले लेना पर जगह अच्छी होनी चाहिए। सो हम चल दिए चोप्ता" की तरफ। बीच में हम "नंदा देवी नैशनल पार्क" से भी गुज़रे... और जब चोप्ता पहुंचे...



वाह!!!!!!!!!!!!!!!...
बस यही कह कर रह गए थे हम सभी...
मैं नहीं जानती की उस अप्रतिम, अद्वितीय सौंदर्य को देखने का अनुभव किन शब्दों में बयाँ करना चाहिए, या कैसे लिखना चाहिए... पर जो देखा वो वाकई किसी प्रेमी के प्रेम या किसी कवी की खूबसूरत कविता से कम नहीं था... मै कभी स्विटज़रलैंड नहीं गयी, परन्तु जिस वहां का जो सौंदर्य-वर्णन सुना है, ये जगह उससे कहीं खूबसूरत थी। शायद काश्मीर में ऐसी ही किसी जगह को देखकर मशहूर शायर "अमीर खुसरो" ने फ़रमाया होगा...
"गर फिरदौस रू-ऐ-ज़मीं अस्त, हमी अस्त-ओ हमी अस्त-ओ हमी अस्त-ओ हमी अस्त..."

वो धतूरे का फूल...


ये पीले धतूरे का फूल है... मेरे घर में खिला था। एक्चुली ये आया तो था मामाजी के लिए, उन्हें भगवान से जुड़े फूल-पत्ती घर में लगाने का बड़ा शौक है, कहीं से कुछ पता चलता है वो मंगवा लेते हैं। चाहे वो पीला धतूरा हो या सफ़ेद पलाश। परन्तु किसी करणवश ये मामा के घर जा नहीं पाया था... हम पहुंचा ही नहीं पाए थे, और वो भी नहीं कि ले जाएँ। इसी बीच उसमें ये फूल खिला, जो थोड़ा अजीब-सा लगा था, क्योंकि इसमें एक कि जगह तीन फूल एक के अन्दर एक थे। ये बात पहले समझ नहीं आई थी, जब इसमें केवल कलियाँ थीं, परन्तु जब फूल खिला तब समझ में आया, और बिना देर किये मैंने इसे अपने कैमरे में कैद कर लिया। और आज इसे आप सबके सामने प्रस्तुत भी कर दिया... हो सकता है कि आपमें से कुछ ने ऐसा कुछ कहीं देखा हो, परन्तु मेरे और मेरे परिवार के लिए ये पहला अनुभव था, सो आप सभी के साथ बाँट रही हूँ...
मिलती हूँ अगली पोस्ट में...

उन पथराई आँखों को देखा...

ये बात कल की है, जब हम उस रास्ते से गुज़र रहे थे... तभी अचानक, उन आँखों पर नज़र गयी... मजबूर, लाचार, इंतज़ार करती हुईं, और ये सोचती हुई कि आज घर क्या लेकर जाना है?
ये सड़क किनारे किताब बेचनेवाले एक बूढ़े कि बात है... न जाने क्यूं अनायास ही उसने मेरा ध्यान आकर्षित किया और मैं बस उसकी आँखे देखती रह गयी, या शायद उसकी मजबूरी पढने और समझने की पूरी कोशिश कर रही थी... वो हर आने-जाने वाले को एक उम्मीद के साथ देखता और जब वो इंसान वहां से यूँही, बिना कुछ लिए गुज़र जाता तो उसकी आँखों को निराशा की परछाई घेर लेती... शायद वो कुछ पुरानी किताबे लिए था, कोई व्रत की थी तो कोई किसी भगवान की आरती, और कोई किसी भगवान का पूजन-संग्रह... वही पतली-पतली किताबों का ढेर, और एक दूकान के बाहर छोटा-सा कोना... अचानक से मौसम घिर आया, बादल छा गए, ऐसा लगा जैसे कितनी जोरों की बारिश होगी... तभी वो बुड्ढे बाबा ने उन साड़ी किताबों को एक बड़ी-सी पीली पोलिथीन में लपेटा और दुकानवाले को सहेज कर कहीं जाने लगे... जब देखा कि वो कहाँ जा रहे हैं, तो पता चला कि आगे एक चाय कि दूकान थी... चलो! किताबे नहीं बिकी, बदल घिर आये पर उन्हें चाय पीने का मौका तो मिल गया...
पर नहीं, वो वहां चाय पीने नहीं गए थे, बल्कि चाय के बर्तन धोने गए थे... हे! भगवान ये क्या हो रहा था?
जब मेरे ड्राइवर ने मुझे यूँ उन्हें घूरते देखा तो उसने पूरी कहानी बताई... कहा "दीदी जी, ये आदमी रोज़ यहीं किताबें बेचता है, और उसी चाय के ठेले में जाकर बर्तन भी साफ़ करता है... इसका ये रोज़ का नियम है... आप पहली आर देख रही हैं न, इसीलिए आपको अजीब लग रहा होगा..." मैंने उनसे कहा कि "क्यूं भैया, क्या इनके घर में और कोई नहीं जो काम करता हो?" उन्होंने कहा " हैं न, इनके दो लड़के हैं जिनकी शादी हो चुकी है, पर वो इन्हें अपने साथ नहीं रखते, बेटी भी थी पर उसे उसके ससुराल वालों ने दहेज़ के लिए मारडाला, और इनकी पत्नी तो बोहोत पहले ही ख़तम हो गयीं थीं"... मुझे बहुत ही जोर-से गुस्सा आया, कि कैसे बच्चे हैं, जिसने पला-पोसा, बड़ा किया , आज वही इन्हें अपने साथ नहीं रखते, बेचारे बाबा... मुझसे रहा नहीं गया और मैंने पूछा कि "इनके दोनों लड़के ऐसे हैं या उनकी पत्नियों ने नहे घर से निकलवा दिया?"... तब पता चला कि नहीं
, न तो लड़के ख़राब हैं और न ही उनकी पत्नियाँ, ख़राब यदि कुछ है तो वो नहीं नियति...
भैया ने बताया कि, "पहले इनके खुद के चाय-भजिया का एक होटल था, होटल बहुत बड़ा तो नहीं था, पर मशहूर बहुत था, पूरे शहर में नाम था और बड़े-बड़े घरों के लोग भी इनके यहाँ के पर्मानेंट कस्टमर भी थे... तीनो बच्चों कीशादी भी अच्छे घरों में हुई, पर न जाने अचानक कहाँ से काल ने आकर इन्हें घेर लिया... इनकी लड़की के ससुराल वालों की मांगे शुरू होने लगी, पहले तो साड़ी मांगे पूरी कर दी इन्होने पर जा मांगी जाने वाली चींजो की कीमते बढ़े लगीं तो इन्होने और इनकी लडकी ने विरोध किया, तो लडकी के साथ मार-पीट हुई, पहले तो उसने अपने मायके में कुछ नहीं बताया, पर एक दिन वो अपने मायके आई और भाभियों से उसने अपनी व्यथा सुनाई, सब परेशान हो गए थे... बहुओं ने कहा कि पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा देते हैं, पर बाप ने मन कर दिया कि कहीं आगे जाकर उनकी लड़की को कोई दिक्कत न हो, और उन्होंने लड़की के ससुरालवालों कि मांग पूरी कर दी, और लड़की को ससुराल भेज दिया, इस उम्मीद के साथ कि अब उनकी लड़की खुश रहेगी, पर एक हफ्ते बाद ही अचानक से खबर आई कि उनकी लड़की ने आत्महत्या कर ली... सभी के पैरों के नीचे-से जैसे ज़मीं ही खिसक गयी हो... लाख कोशिशि की ये साबित करने कि ये आत्महत्या नहीं क़त्ल है, पर कोई फायद नहीं हुआ... कुछ महीनों बाद पता चला कि लड़का बाहर किसी लड़की को पसंद करने लग गया था, और ये दहेज़-प्रताड़ना, मार-पीट सब सिर्फ बहाना था कि लड़की अपने पति को तलाख दे दे, और वो दूसरी शादी करने को आज़ाद हो जाये... और-तो-और उसके माँ-बाप भी इस कृत्य में शामिल थे क्योंकि वो दूसरी लड़की के घरवाले ज्यादा दहेज़ देने को बोल रहे थे... और तब से ये बाबा अपनी लड़की की मौत का ज़िम्मेदार खुद को मानते हैं... इन्होने उसकी मौत के बाद खुद घर भी छोड़ दिया, लड़के और बहुओं ने बहुत कोशिश की कि ये घर वापस चले जाएँ, पर ये नहीं गए... रोज़ यहीं किताबें बेचेंगे और उस दूकान में बर्तन, कभी-कभी तो कुछ दुकानों में झाड़ू-कटका भी करते हैं, जो पैसे मिलते हैं उनसे रात में कुछ भी खाते और शराब पीते हैं... और फ़िर यहीं-कहीं फुटपाथ में सो जाते हैं... बस ऐसे ही चल रही है इनकी ज़िन्दगी..."
ये सब सुनने के बाद समझ नहीं आया कि क्या कहूँ, या करूँ? आखिर इनके भी लड़के हैं, ये भी बहुएँ लेकर आये... लड़की कि मृत्यु के दुःख ने उन्हें तोड़ दिया... शायद, इन्हें लगता है कि यदि ये पुलिस में रिपोर्ट दज करा देते तो ठीक था, या शायद ये कि उन्होंने अपनी लड़की के लिए सही लड़का नहीं चुना? न जाने क्या... पर शराब का सहारा लेना क्या उचित हैं?
कभी-कभी कुछ बातों का निष्कर्ष निकालना कितना मुश्किल हो जाता है...?

आखिर, आज तुम आ ही गए...

"आखिर... आज... इतने दिनों का इंतज़ार ख़त्म हो ही गया...
आखिर... आज, तुम आ ही गए...
न जाने कितना इंतज़ार करना पड़ा था इस दिन का... लगता था कि न जाने तुम आओगे भी या नहीं...
रोज़ T.V. पर खबरें सुनते थे, और रोज़ तुम्हारे आने का इंतज़ार करते थे... तुम्हारे आने, न आने कि बातें करते थे... बस, सोचा करते थे कि जिस दिन तुम आओगे वो दिन कैसा होगा, उस दिन हम क्या करेंगे... भगवान् से प्रार्थना करते थे कि तुम जल्दी आ जाओ... पर आज सारा इंतज़ार ख़त्म हो गया, आज तुम आ गए...
पता है, ऐसा लगता था कि तुम्हारे इंतज़ार में आँखे भी पथरा जायेंगी, तन जल जायेगा, सब बंजर हो जायेगा...बीच में तुम आये तो थे, पर सिर्फ एक-दो दिनों के लिए बस... तब एक बार लगा तो था कि तुम आ गए, पर तब तुम जल्दी ही वापस भी चले गए... तब सब यही कहते थे, कि "अब यदि आना तो जाने के लिए मत आना..."
पर आज... आज फिर से सब तरफ ख़ुशी का माहौल है... तुम आये क्या, ऐसा लगा जैसे सभी की खुशियाँ लौट आयीं... बड़े-बूढ़े, जवान-किसान, यहाँ तक कि बच्चे भी... सब खुश हैं... तुम्हरी एक फुहार ने सबका इंतज़ार ख़त्म कर दिया... अब सबको यकीन हो गया कि तुम इस बार जाने के लिए नहीं आये... सभी ने भगवान को ढेर सारा धन्यवाद दिया..."
हाँ, आज हमारे शहर में बारिश हुई... बरसात के इस मौसम कि शुरुआत आखिर हो ही गयी... रोज़-रोज़ बस आसमान कि तरफ देख कर सभी इसका इंतज़ार कर रहे थे, गर्मी के कारण सब बस सुलझे ही जा रहे थे, परेशान थे कि न जाने इस साल कि बारिश कब आएगी... पर आखिरकार आज भगववान ने सभी की दुआएँ कबूल कर लीं... पर चलो देर से ही सही पर बारिश आई तो...

बड़ा अच्छा लगा जब मिट्टी की वो सौंधी खुशबू आई,
चारों तरफ के माहौल में ज़रा सी ठंडक लाई,
सड़कें धूलिं, पेड़-पत्ते धुले
सभी को छाते की ज़रुरत समझ आई...
सबके चेहरे खिल उठे, अचानक
तापमान नें भी कुछ कमी आई...
बारिश आई... देखो बारिश आई...

चलो थोड़े स्वार्थी हो जांए...

आज की इस दुनिया में और इस life style में इतने busy हो गए हैं की हमारे पास अपने लिए ही वक़्त नहीं रह गया है... जिसे देखो बस भाग रहा है या एक fixed life जी रहा है, सब कुछ time-table के हिसाब से... जिंदगी न होकर train हो गयी है, चढ़ा दिया पटरी पर, और फुरसत... बस चली जा रही है... हम सबका ख्याल रखते सिवाय खुद के... पर ऐसा क्यूँ? क्या वाकई अब हमें २४ घंटे भी कम पड़ने लगे हैं या जो भी हम करते है वो बस इस rat-race में बने रहने के लिए...
कितना मुश्किल है न आज की इस दुनिया में सफल होना... हर competition में अपने आप को prove करना , पहले school, फिर college, फिर job और फिर घर... सबसे पहले एक position बनाने की चिंता और फिर उसे maintain करने की... वाकई कितनी कठिन हो गयी है हमारी life... या कहे तो हमारी so called life...
और फिर जो भी वक़्त बचा इस rat-race से वो हम दे देते है अपनों को, वो जो हमारे करीब हैं... आख़िर उनका भी तो कुछ हक़ है हमारी ज़िन्दगी में... उनकी ख़ुशी, उनका दुःख... ये सब भी हमारी ही जिम्मेदारियों का ही एक हिस्सा है... और फिर ये keyboard, जहाँ हम web-pages में जहा हम कभी कोई रिश्ता निभा रहे होते है तो कभी ख़ुशी और शांति तलाश रहे होते हैं... पर इन सबके बीच हम कहाँ हैं? एक ऐसा पल जिसे हम पूरी तरह अपना कह सकें... क्या कभी यूँ ही बैठे-बैठे आप खुद miss नहीं करते, क्या कभी बस यूँ ही बिना बात के मुस्कुराना या यूँ ही खुश जाना या कोई अनजानी-सी या कोई भूली-बिसरी धुन गुनगुनाने का मन नहीं होता? होता है न... पर हम नहीं करते... क्यों??? क्योंकि उससे हम अपने लक्ष्य से भटक सकते हैं... हमारा time-waste हो सकता है...
क्या याद है की last-time आप कब खुश हुए थे, या क्या ऐसा किया था जिससे आपको ख़ुशी मिली हो? last-time कब किसी दोस्त को बिना काम के, बस यूँ ही हाल-चाल जानने के लिए phone किया था...
या कब e-mail forward करने की वजाय बस यूँ ही "hii" "how are you" . type करके भेजा था... कर सकते थे... पर नहीं किया... क्यों... time-waste... क्या वाकई अब हमारी खुशियाँ हमारे लिए सिर्फ time-wastage बन कर रह गयी है... यही रह गयी हमारी हमारी खुशियूं की पहचान...
नहीं न...
तो चलो एक शुरुआत करते हैं... थोड़े से selfish हो जाते हैं... हर दिन... यानी २४ घंटो से कुछ पल चुराते हैं... जो सिर्फ हमारे होंगे...

तो चलो ...
थोड़े स्वार्थी हो जाते हैं
कुछ पल चुराते हैं....
बहुत मुस्कुरा लिए औरों के लिए ,
चलो एक बार अपने लिए मुस्कुराते हैं...
बहुत हुआ दूसरों की धुन गुनगुनाना,
चलो अब अपनी एक धुन बनाते है...
चलो कुछ पल चुराते हैं...
थक गए ये हाथ कागज़ में sketch बनाते-बनाते,
चलो अब आसमाँ में उंगलिया चलाते हैं...
बहुत हुआ एक ही ढर्रे में चलना,
चलो अब कुछ नया आज़माते हैं...
चलो कुछ पल चुराते हैं...
जाने-पहचाने रास्तों पे चलना, बहुत हुआ,
चलो कुछ अनजान रातों की ओर कदम बढ़ाते हैं...
वही पुरानी recipes, वही पुराना स्वाद,
चलो कोई नया ज़ायका आज़माते हैं...
चलो कुछ पल चुराते हैं...
अपनों से अपनापन निभाते ज़माने हो गए,
चलो किसी अजनबी को अपना बनाते हैं...
थक कर चूर हो गए यूँ ही भागते-भागते...
चलो कुछ पल आराम के बिताते हैं...
चलो कुछ पल चुराते हैं...