क्या प्रेम का अर्थ
केवल आलिंगन है???
या प्रेम और गहराया तो चुम्बन है???
बस यूंही तन की करीबी बढ़ती जाती है
और प्रेम गहराता जाता है...
क्या ह्रदय में उमड़ती प्रेम-भावनाओं का कोई मोल नहीं???
जहाँ छुअन का उतना महत्व नहीं
जितना एक-दूसरे की चिंता
जहाँ चुम्बन का उतना महत्व नहीं
जितना एक-दूसरे को समझना
जहाँ बदन की ज्व्लंतता का उतना महत्व नहीं
जितना एक-दूसरे के बिना बोले शब्दों को सुनना
या...
एक-दूसरे का अहसास साथ होना...
पर...
तुम ऐसे क्यूं नहीं हो???
तुम्हारे लिए मेरे करीब आना जरूरी क्यूं नहीं???
क्यों तम्हारे लिए मेरे बदन पर तुम्हारे हाथों के निशाँ
से ज्यादा जरूरी
मेरे होठों पे मुस्कान का होना है???
क्यों नाराज़ होने के बाद भी...
तुम हमेशा मेरे साथ खड़े होते हो???
और आसुओं को मेरी आँखों से कोसों दूर रखते हो...
क्यों तुम मेरा चुम्बन नहीं लेते???
वरन... हर बहाने से मुझे खुशियाँ ही देते हो...
क्यों तुम मेरे करीब नहीं आते???
क्यों दूर से ही देख मुस्कुराते हो???
क्यों कोई वादा नहीं करते???
या वादा न तोड़ने की कसम मुझसे लेते हो???
क्या तुम इस दुनिया से अलग हो...
या...
मुझसे प्रेम नहीं करते...
एहसास के उमड़ते-घुमड़ते प्रश्नों को सुन्दर तरतीब दिया है
ReplyDeleteThank you so much Verma ji...
ReplyDeletebahut hi gahan abhivyakti hai
ReplyDeleteThank you so much Rashmi Mam...
ReplyDeleteStriking a balance between love and overflowing emotions is a tough job. Those who are able to do so are truly praiseworthy.
ReplyDeleteTrue Sanjeev ji... Thank you for your appreciation...
ReplyDeleteप्रेम के कई रूप होते हैं, हर कोई अपने अपने तरह से प्रेम दिखता है, प्रेम का लेकिन निश्चल रूप ही सबसे ज्यादा प्रिय और सुहाना लगता है...
ReplyDeleteआपने प्रेम के उन तत्वों को अपने शब्दों में अभिव्यक्त किया है जो की किसी भी व्यक्ति के मन को कुछ पल के लिए प्रेममयी बना सकते है..
ReplyDeleteधन्यवाद____
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..अच्छा बांधा है.
ReplyDelete@Abhi ji... ji sahi kaha... us roop ka apna aanand hai
ReplyDelete@Mohan ji... thank you so much
@Udan Tashtari ji... thank you so much sir...
@ धन्यवाद पूजा जी
ReplyDeleteरचना के माध्यम से प्रेम के कई रूपों से अवगत करवाया
क्या तुम इस दुनिया से अलग हो
या मुझसे प्रेम नहीं करते
बहुत ही भावपूर्ण...... उम्दा रचना..बधाई.
आप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं
@sanjay ji... thank you so much... mai sirf koshish kartee hu, baaki aap logo kee blessings rahi to ana kaam yunhi jaari rakhungi... par aap taareef bahut karte hai... mai itne ke kaabil nahi hu abhi... koshish karungi ki jald hi apne aapko aapki taareefon k kaabil bana saku... Dhanyawaad...
ReplyDeleteप्रेम एक खूबसूरत एहसास , अनोखी अनुभूति ...
ReplyDeleteमगर सबके इसे प्रकट करने के तरीके अलग ...
सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...!
@Vani ji... thank you so much...
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeletejisne kabhi kisi se piyar kiya hai wahi piyar ko aachi tarah se samajh sakta hai...is rachna ke bare me kuch bhi bolna atishyokti hogi....
ReplyDelete@Rajeev ji... aapka abhut-bahut dhanyawaad... ji per kabhi-kabhi jo dekhtee hu wo bhi likhti hu... so jo dekha, jaisa paya likh diya...
ReplyDeleteAwesome miththoo, You always do a great work while writing poems. Keep it up.
ReplyDeletebahut sundar rachna...
ReplyDeleteMere blog par bhi sawaagat hai aapka.....
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प्रेम की बहुत ही खूबसूरत परिभाषा गढी है……………इसी आस मे तो उम्र गुजर जाती है…………भावो को मजबूती से पकडा है।
ReplyDeleteक्या बात है पूजा जी बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबधाई !
Prem.. Ek kaanta hai jo chubh ke toot jata hai, bas itni si daataan hai mohabbat ki...!!
ReplyDeletePrasansaniya hai aapki rachna..!!
"Satya"
बहुत ही सुन्दरता से शब्दों को पिरोया है आपने इस रचना में, बहुत ही सुन्दर एवं भावमय प्रस्तुति ।
ReplyDeleteखूबसूरत एहसासों की भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
ReplyDeletewell panned, pooja ji, well defined and segregate the true love.
ReplyDeletecongrate
@Archi, Sonal ji, Vandana ji, santosh ji, ???, Sada ji, Sikha ji, Alok ji... thank you so much...
ReplyDeleteशायद आप हकीकत को समझ रही हैं।
ReplyDelete@Rajey ji... bas jo dekhtee hoon samjhati hun likhe kee koshish kartee hoon... thank you so much for ur appreciation
ReplyDeleteBahut he achche rachna and bhavnao ki abhiwayakati :-)
ReplyDeleteprem to har ke pass hai pr use sub ta pahuch shayd kam loga ko hoti hai. prem is sundar rachna se dil ko sukun huwa. kafi fursar ke chhan me likhi gayi bhwna hai.
ReplyDeleteआपकी इस कविता और उमड़ते घुमड़ते सवालो पर एक शेर अर्ज़ है
ReplyDeleteजैसे खुदा को देखा है.. वैसे तुझको देखा है..
मेरी नज़रें पाक- बेगुनाह हैं..तुझे कभी छुआ नहीं पर चूमा है ..
Itne taarif aap ko miltihain to main kya taarif karoon, kyun ki main to naacheez hoon lekin itna kehe sakhu ki aap bahat hi dil ko chune wali ho!!!!!!!!!!
ReplyDeleteसुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति ......
ReplyDelete@Ankur, ???, Anand ji, Siba, Virendra ji... thank you so much...
ReplyDelete@Anand ji... bahut khoob...
प्यार बदन की छुअन नही
ReplyDeleteप्यार है इक मीठी चुभन
जिसे बुझाने को ना जी चाहे
ये होती है वो अगन
जहाँ दूरी का अस्तितव
बेमानी सा हो जाता है
आँखों का आँखो से ही
हो जाता है सम्पूण मिलन
आपने प्यार को जिस तरीके से सरलता से व्यक्त किया , बहुत प्रशंसनीय है
प्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति का एक सुंदर दृश्य आपने प्रस्तुत किया है! प्रेम में उमड़ते मन के भावो जिसमे मन कभी बहुत कुछ पाना चाहता है और कभी बहुत कुछ देना अर्पण करना चाहता है की सुंदर प्रस्तुती है आपकी रचना!
ReplyDelete@Palaash n Amarjeet ji... thank you so much...
ReplyDelete.........have no words to comment over it....to comment over it is like giving it a value and my dear ur thoughts are invaluable.............
ReplyDelete@Shweta... Thank you so much for ur invaluable appreciation... thank you so much...
ReplyDeleteपूजा...तुम्हारी इस कविता को किसने किस रूप में देखा होगा पता नहीं...मगर यह कविता स्त्री-मन के कोमलतम भावों की मनोभिव्यक्ति है,जिसे कम-से-कम उस पुरुष के लिए तो ठीक उसी अर्थ में देख-समझ-महसूस कर पाना अत्यंत दुरूह है,जो अपने परिवार की सदस्याओं के सिवा किसी अन्य स्त्री को स्वस्थ तरीके से नहीं देख सकते,और वो प्रेमी भी,जिन्हें अपनी कामेच्छा और प्रेम में अंतर का भी भान नहीं.....है ना....!!??
ReplyDeletebadhiya...
ReplyDelete@RAJEEV JI, Dankiya... thank you so much ane hetu...
ReplyDelete@Rajeev ji... jee mujhe nahi pata kisne is kavita ko kis roop mei dekha? aur na hi aise kisi purush se aaj tak mera pala pada... haan hote hain kuchh shrapit log is samaj mei jinhe sirf kukarmo ke liye hi janm milta hai... parantu maine prem ke jin rupon ko dekha aur jana hai wo bade hi swakshh aur nirmal hai, so likh leti hu unhee ko... dhanyawaad padharne ke liye...