शायद मेरे जाने का वक़्त आ गया...

शायद,
अब वक़्त आ गया...
मेरे जाने का

माँ भी चुप-चाप तय्यारियाँ करती है
कभी साड़ियाँ चुनती तो
कभी गहने बनवाती है
कभी मेंहदी लगे हाथों को देख ललचाती है
और कभी पापा के साथ बैठ
मेरे मंडप के सपने सजाती है
जिसके नीचे बैठ वो सौंप देगी
मुझे मेरा नया जीवन...

कभी कोई नया रंग चुनती है...
कुछ दिन बाद उसी रंग के लिए कहती
"अब ये पुराना हो गया"
पर सच्चाई है कि माँ ने वो रंग किसी दुल्हन को पहने देख लिया था...

जब भी कोई घर आता है
उसे एक नया लड़का बताता है
कोई इंजीनियर तो कोई डॉक्टर
कोई किसी बड़ी एम्.एन.सी. में
तो कोई सरकारी नौकरी के साथ...
किसी का घर अच्छा है
तो किसी के घरवाले
कोई बहुत संपन्न है
तो कोई संस्कारोंवाले...

पर ये सब वो मुझसे नहीं कहती है
बस अपने आप ही सब ताना-बना बुनती है...

हर बार हर सपना
एक नई सोच के साथ
नए रंग के साथ
नई साज-सज्जा के साथ
और
नए तौर-तरीकों के साथ...

31 comments:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  2. शीर्षक पढ़ते ही दिल धक् से कर गया -अरे ब्लागिंग से विदाई ,अभी अभी तो आये हैं .... :)
    कविता तो उम्दा है ,सपने बुनती कविता ,उधेड़बुन और असमंजसों की कविता तनिक कटाक्ष लिए भी कविता !

    ReplyDelete
  3. ....मेरी प्यारी बहना
    येही दुआ है तेरे लिए मेरी तरफ से
    बहना तू सदा मुस्कुराती रहे

    ReplyDelete
  4. तू जिस आँगन में जाये वहाँ सदा रौशनी फैलाये
    ..............all the best

    ReplyDelete
  5. Sheershak padhke pal bhar samajh nahee payi ki,kahan jane kaa waqt aa gaya!!

    Sundar,bhaav bheenee rachana hai...badahee bhavuk aur nazuk samay hota hai ye...kya bataun...yaad aatehee aanken bheeg jaatee hain!

    ReplyDelete
  6. @Firdaus ji, Arvind ji, Sanjay bhaiya, Kshama ji... bahut-bahut shukriya...

    @Arvind ji... ji abhi to safar shuru kiya hai, jab jana hoga tab aap sabhi se izaazat lekar yaha se jaungee... dhanyawaad...

    @Sanjay Bhaiya... aapki duaaon kee hamesha jaroorat rahegee, aur jaantee hoon kee hamesha wo sada mere saath bhi rahegee...

    @Kshama ji... jee didi aur bua logon kee shaadee ka hi soch aankhe nam ho jatee hai, par koshish karungee apni shaadee me na rou...

    ReplyDelete
  7. लडकी के लिये घर छोडने की व्यथाओं में, और भी न जाने कैसी कैसी नई व्यथाएँ जुडेगी।

    चिंता की चिंतननीय अभिव्यक्ति!!

    ReplyDelete
  8. @Sugya ji... aane ke liye bahut-bahut dhanyawaad... parantu ye chinta ka vishay kyoo??? ye to ek satya hai, aur jeevan ka ek padaav bhi... ladkee ka ghar chhodna nahi hota, balki apne ghar jana hota hai, jaha uska swagat kiya jata hai nae sapno aur apno ke saath... jo ghar wo apne se sajaati-sawaatee hai...
    ho sakta hai ki is kavita dekhne ka aapka aur mera nazariyaa alag ho... aapni soch batane ke liye bahut-bahut dhanyawaad...

    ReplyDelete
  9. bahut badhiya...sundar abhivyakti..

    ReplyDelete
  10. @Arvind ji... thank you so much...

    ReplyDelete
  11. hello ji ....... kya apke jana ka waqt sach me aa gaya hai ?

    ReplyDelete
  12. bahut sundar rachna ... ek naari ke man ki vyatha ko aapne bahut sundar dhang se prastoot kee hai ..

    ReplyDelete
  13. बहुत ही सुन्दर और भावमयी कविता।

    ReplyDelete
  14. 2/10

    अति सामान्य पोस्ट
    रचना में कुछ तो भाव लाईये
    वाह-वाह पर न जाईये

    ReplyDelete
  15. एक बिटिया की नजर से मां की बात कही आपने। सहज और सरल तरीके से। अपनी यह सहजता बनाए रखें।

    ReplyDelete
  16. अच्छी लगी रचना , राजेश उत्साही जी से सहमत हूँ ! आप अपने सहजता बनाये रखें ..

    ReplyDelete
  17. behna meri duyae sda tere sath hai....
    jab bhi yaad karogi ....apne sanjay bhaiya ko bhagwan shri krishan ki tarah......apne kareeb paogi.........

    kosish meri yahi rehegi.........

    tumhara bhaiya
    sanjay

    ReplyDelete
  18. ye to is duniya ki rasam hai jise her kisi ko pura karna padta hai. sunder rachna. achchhi lagi.

    ReplyDelete
  19. कविता अच्छी है पर परम्परागत-मन हावी है ! बढ़िया इस अर्थ में की एक माँ की संवेदना को स्पर्श कर रही है , इसलिए एक 'मेच्योर' की स्थिति की ओर जाती कविता है यह ! पर एक चुनौती तो बन सकती है की माँ भी तो खांटी परम्परागत ढंग से ही सोचती है ! क्या नयी स्थितियां नए बदलाव की मांग नहीं करती ? परम्परागत 'पैटर्न' से अलग नए प्रश्न की मांग नहीं करतीं ?

    सुज्ञ जी को दिए गए आपके उत्तर पर एक नयी संभावना के संकेत और आवश्यकता के मद्देनजर निर्मला पुतुल की यह कविता देखें -
    '' ब्याहना तो वहां ब्याहना
    जहाँ सुबह जाकर
    शाम को लौट सको पैदल

    मैं कभी दुःख में रोऊँ इस घाट
    तो उस घाट नदी में स्नान करते तुम
    सुनकर आ सको मेरा करुण विलाप..... ''

    ReplyDelete
  20. प्यारॊ रचना.

    ReplyDelete
  21. बेटी का माँ के मन को भांप लेना......अच्छी रचना!

    ReplyDelete
  22. माँ की आपनी लाडली के जीवन साथी को लेकर चिंता,शादी की तैयारिया, बेटी के मनह संघर्ष का सुंदर चित्रण है आपकी रचना खुबसूरत और भाव पूर्ण है बहुत खूब इसी तरह लिखते रहो ..............

    ReplyDelete
  23. bahut bhavpurn kavita..har kisi ko ek dusare ghar jana hota hai aur ek maa ki sabse badi khwab yahi hoti hai ki beti ko ek badhiya ghar mile jahan usake sapne pure ho saken...bahut sundar rachana...badhai

    ReplyDelete
  24. @आशीष, इन्द्रनील जी, प्रवीण जी, उस्ताद जी, राजेश जी, सतीश जी, भैया, एहसास जी, अमरेन्द्र जी, मृदुला जी, उड़न तश्तरी जी, वंदना जी, अमरजीत जी, विनोद जी... आप सभी बहुत-बहुत धन्यवाद...

    @आशीष... नहीं, पर माँ की तय्यारियाँ शुरू हो चुकी हैं...

    @उस्ताद जी... धन्यवाद... आप उस्ताद के नज़रिए से दुःख रहे हैं, पर मैंने एक बेटी के नज़रिए से माँ के मन को पढ़कर लिखने की कोशिश की है... सुधार अवश्य लाऊँगी... धन्यवाद...

    @राजेश जी, सतीश जी... आशीर्वाद बनाए रखिये, मै अनुदेशों को ध्यान रखूंगी, हमेशा... धन्यवाद...

    @अमरेन्द्र जी... जी बिलकुल... धन्यवाद॥ और भगवान न करे कि कभी किसी लड़की के विवाहित जीवन में ऐसी घड़ी आए...

    ReplyDelete
  25. Bahut hee sundar aur dil ko chhu jane wali rachna hai ye :)..bhav vibhor kar diya aapne :(

    ReplyDelete
  26. यही तो माँ का दिल होता है……………बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  27. मेरी छोटी बहन की शादी है जनवरी में...
    समझ सकता हूँ मैं ....:)

    अच्छी कविता..

    ReplyDelete
  28. क्षमा करें,पूजा जी,

    मैं ही प्रस्तूत कविता के भावों से न जुड पाया, आपने स्पष्ठ किया तो आभास हुआ। विदाई की विह्वलता में बह गया,और इसे चिंता का चिंतन मान बैठा। मां के लिये भी और पुत्री के लिये भी।

    पुनः खेद व्यक्त करता हूं, रचना को सही संदर्भ में न ले पाने के लिये।

    ReplyDelete
  29. माँ के सपनों को समझना इस वक़्त आसान नहीं होता
    पर जैसे जैसे समय गुज़रता है
    माँ के सपने समझ में आने लगते हैं
    उसकी परेशानियां
    उसकी दुआएं
    उसकी ख्वाहिशें ......... सबकुछ !

    ReplyDelete