शायद,
अब वक़्त आ गया...
मेरे जाने का
माँ भी चुप-चाप तय्यारियाँ करती है
कभी साड़ियाँ चुनती तो
कभी गहने बनवाती है
कभी मेंहदी लगे हाथों को देख ललचाती है
और कभी पापा के साथ बैठ
मेरे मंडप के सपने सजाती है
जिसके नीचे बैठ वो सौंप देगी
मुझे मेरा नया जीवन...
कभी कोई नया रंग चुनती है...
कुछ दिन बाद उसी रंग के लिए कहती
"अब ये पुराना हो गया"
पर सच्चाई है कि माँ ने वो रंग किसी दुल्हन को पहने देख लिया था...
जब भी कोई घर आता है
उसे एक नया लड़का बताता है
कोई इंजीनियर तो कोई डॉक्टर
कोई किसी बड़ी एम्.एन.सी. में
तो कोई सरकारी नौकरी के साथ...
किसी का घर अच्छा है
तो किसी के घरवाले
कोई बहुत संपन्न है
तो कोई संस्कारोंवाले...
पर ये सब वो मुझसे नहीं कहती है
बस अपने आप ही सब ताना-बना बुनती है...
हर बार हर सपना
एक नई सोच के साथ
नए रंग के साथ
नई साज-सज्जा के साथ
और
नए तौर-तरीकों के साथ...
सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteशीर्षक पढ़ते ही दिल धक् से कर गया -अरे ब्लागिंग से विदाई ,अभी अभी तो आये हैं .... :)
ReplyDeleteकविता तो उम्दा है ,सपने बुनती कविता ,उधेड़बुन और असमंजसों की कविता तनिक कटाक्ष लिए भी कविता !
....मेरी प्यारी बहना
ReplyDeleteयेही दुआ है तेरे लिए मेरी तरफ से
बहना तू सदा मुस्कुराती रहे
तू जिस आँगन में जाये वहाँ सदा रौशनी फैलाये
ReplyDelete..............all the best
Sheershak padhke pal bhar samajh nahee payi ki,kahan jane kaa waqt aa gaya!!
ReplyDeleteSundar,bhaav bheenee rachana hai...badahee bhavuk aur nazuk samay hota hai ye...kya bataun...yaad aatehee aanken bheeg jaatee hain!
@Firdaus ji, Arvind ji, Sanjay bhaiya, Kshama ji... bahut-bahut shukriya...
ReplyDelete@Arvind ji... ji abhi to safar shuru kiya hai, jab jana hoga tab aap sabhi se izaazat lekar yaha se jaungee... dhanyawaad...
@Sanjay Bhaiya... aapki duaaon kee hamesha jaroorat rahegee, aur jaantee hoon kee hamesha wo sada mere saath bhi rahegee...
@Kshama ji... jee didi aur bua logon kee shaadee ka hi soch aankhe nam ho jatee hai, par koshish karungee apni shaadee me na rou...
लडकी के लिये घर छोडने की व्यथाओं में, और भी न जाने कैसी कैसी नई व्यथाएँ जुडेगी।
ReplyDeleteचिंता की चिंतननीय अभिव्यक्ति!!
@Sugya ji... aane ke liye bahut-bahut dhanyawaad... parantu ye chinta ka vishay kyoo??? ye to ek satya hai, aur jeevan ka ek padaav bhi... ladkee ka ghar chhodna nahi hota, balki apne ghar jana hota hai, jaha uska swagat kiya jata hai nae sapno aur apno ke saath... jo ghar wo apne se sajaati-sawaatee hai...
ReplyDeleteho sakta hai ki is kavita dekhne ka aapka aur mera nazariyaa alag ho... aapni soch batane ke liye bahut-bahut dhanyawaad...
bahut badhiya...sundar abhivyakti..
ReplyDelete@Arvind ji... thank you so much...
ReplyDeletehello ji ....... kya apke jana ka waqt sach me aa gaya hai ?
ReplyDeletebahut sundar rachna ... ek naari ke man ki vyatha ko aapne bahut sundar dhang se prastoot kee hai ..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और भावमयी कविता।
ReplyDelete2/10
ReplyDeleteअति सामान्य पोस्ट
रचना में कुछ तो भाव लाईये
वाह-वाह पर न जाईये
एक बिटिया की नजर से मां की बात कही आपने। सहज और सरल तरीके से। अपनी यह सहजता बनाए रखें।
ReplyDeleteअच्छी लगी रचना , राजेश उत्साही जी से सहमत हूँ ! आप अपने सहजता बनाये रखें ..
ReplyDeletebehna meri duyae sda tere sath hai....
ReplyDeletejab bhi yaad karogi ....apne sanjay bhaiya ko bhagwan shri krishan ki tarah......apne kareeb paogi.........
kosish meri yahi rehegi.........
tumhara bhaiya
sanjay
ye to is duniya ki rasam hai jise her kisi ko pura karna padta hai. sunder rachna. achchhi lagi.
ReplyDeleteकविता अच्छी है पर परम्परागत-मन हावी है ! बढ़िया इस अर्थ में की एक माँ की संवेदना को स्पर्श कर रही है , इसलिए एक 'मेच्योर' की स्थिति की ओर जाती कविता है यह ! पर एक चुनौती तो बन सकती है की माँ भी तो खांटी परम्परागत ढंग से ही सोचती है ! क्या नयी स्थितियां नए बदलाव की मांग नहीं करती ? परम्परागत 'पैटर्न' से अलग नए प्रश्न की मांग नहीं करतीं ?
ReplyDeleteसुज्ञ जी को दिए गए आपके उत्तर पर एक नयी संभावना के संकेत और आवश्यकता के मद्देनजर निर्मला पुतुल की यह कविता देखें -
'' ब्याहना तो वहां ब्याहना
जहाँ सुबह जाकर
शाम को लौट सको पैदल
मैं कभी दुःख में रोऊँ इस घाट
तो उस घाट नदी में स्नान करते तुम
सुनकर आ सको मेरा करुण विलाप..... ''
bahut sundar.
ReplyDeleteप्यारॊ रचना.
ReplyDeleteबेटी का माँ के मन को भांप लेना......अच्छी रचना!
ReplyDeleteमाँ की आपनी लाडली के जीवन साथी को लेकर चिंता,शादी की तैयारिया, बेटी के मनह संघर्ष का सुंदर चित्रण है आपकी रचना खुबसूरत और भाव पूर्ण है बहुत खूब इसी तरह लिखते रहो ..............
ReplyDeletebahut bhavpurn kavita..har kisi ko ek dusare ghar jana hota hai aur ek maa ki sabse badi khwab yahi hoti hai ki beti ko ek badhiya ghar mile jahan usake sapne pure ho saken...bahut sundar rachana...badhai
ReplyDelete@आशीष, इन्द्रनील जी, प्रवीण जी, उस्ताद जी, राजेश जी, सतीश जी, भैया, एहसास जी, अमरेन्द्र जी, मृदुला जी, उड़न तश्तरी जी, वंदना जी, अमरजीत जी, विनोद जी... आप सभी बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete@आशीष... नहीं, पर माँ की तय्यारियाँ शुरू हो चुकी हैं...
@उस्ताद जी... धन्यवाद... आप उस्ताद के नज़रिए से दुःख रहे हैं, पर मैंने एक बेटी के नज़रिए से माँ के मन को पढ़कर लिखने की कोशिश की है... सुधार अवश्य लाऊँगी... धन्यवाद...
@राजेश जी, सतीश जी... आशीर्वाद बनाए रखिये, मै अनुदेशों को ध्यान रखूंगी, हमेशा... धन्यवाद...
@अमरेन्द्र जी... जी बिलकुल... धन्यवाद॥ और भगवान न करे कि कभी किसी लड़की के विवाहित जीवन में ऐसी घड़ी आए...
Bahut hee sundar aur dil ko chhu jane wali rachna hai ye :)..bhav vibhor kar diya aapne :(
ReplyDeleteयही तो माँ का दिल होता है……………बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमेरी छोटी बहन की शादी है जनवरी में...
ReplyDeleteसमझ सकता हूँ मैं ....:)
अच्छी कविता..
nice
ReplyDeleteक्षमा करें,पूजा जी,
ReplyDeleteमैं ही प्रस्तूत कविता के भावों से न जुड पाया, आपने स्पष्ठ किया तो आभास हुआ। विदाई की विह्वलता में बह गया,और इसे चिंता का चिंतन मान बैठा। मां के लिये भी और पुत्री के लिये भी।
पुनः खेद व्यक्त करता हूं, रचना को सही संदर्भ में न ले पाने के लिये।
माँ के सपनों को समझना इस वक़्त आसान नहीं होता
ReplyDeleteपर जैसे जैसे समय गुज़रता है
माँ के सपने समझ में आने लगते हैं
उसकी परेशानियां
उसकी दुआएं
उसकी ख्वाहिशें ......... सबकुछ !