मेरा सब तेरा ही तो था...

मेरी रूह तो तेरी थी
साँसे भी तेरी ही थीं
मेरा हर लम्हा तेरे लिए थे
मेरी हर घड़ी भी तेरी थी...

मेरी हर याद में तेरा ही साया था
मेरी धडकनों में भी सिर्फ तू ही समाया था
मेरे कानों में आवाज़ तेरी ही थी
मेरी आँखों में तस्वीर तेरी ही समाई थी...

मेरे अहसासों में तू था
मैं महसूस भी बस तुझे ही करती थी
बात किसी की भी हो
मैं बात तेरी ही करती थी...

मेरी मंज़िल भी तू ही था
और था तू ही मेरा साहिल भी...
बस इन पन्नों की सफेदी में
उकेरे कुछ शब्द ही बस मेरे थे...

आज ये भी तुझमें शामिल हो गए...

44 comments:

  1. gajab..... bahut achcha likha hai aapne...

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  2. @महाबीर जी... धन्यवाद...

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  3. अच्छी अभिव्यक्ति

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  4. @सुज्ञ जी... धन्यवाद...

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  5. शब्द भी तेरे हुए ....बहुत खूब ...अच्छी अभिव्यक्ति

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  6. @संगीत जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...

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  7. प्रेमकूप में सब घुल जाये,
    न तेरा मेरा रह पाये।

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  8. प्रेमपरक काव्यात्मक सुन्दर अभिव्यक्ति.

    समय हो तो मेरी नई पोस्ट भी देखें,पूजा जी

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  9. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (29/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  10. अच्छी भावपूर्ण रचना .प्रेम से ओत प्रोत किसी को अपना बनाने और उसी में समां जाने की प्रदर्शित करती रचना ...................

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  11. @प्रवीण जी, कुंवर जी, वंदना जी, अरुण जी, अमरजीत जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
    @प्रवीण जी... सही कहा आपने... पर क्या करू, मुझे मेरा कुछ दिखता ही नहीं है, सब उसीका लगता है...
    @वनादाना जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... जी जरूर, मेरी उपस्थिति वहां जरूर दर्ज होगी...

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  12. हमारे मन्त्रों में भी तो आता है. "इदं न ममा, अग्निये स्वाहा"
    सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  13. @सुब्रमनियम जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...

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  14. बहुत ही सुन्‍दर बात कह दी आपने ....बेहतरीन
    सुंदर भाव है..

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  15. @अरुण जी... धन्यवाद... फ़िर से...
    @दीपक जी... धन्यवाद...

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  16. आज ये सब भी तुझमे शामिल हो गए ...
    तेरा तुझको अर्पण !

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  17. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ... पूर्ण समर्पण के भाव लिए हुए !

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  18. khubsurat,,,bhaavpurn...sundar rachna...

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  19. @वाणी गीत, इन्द्रनील जी, अरविन्द जी, अनुपमा जी.... आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद...

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  20. dear pooja, really excellent! many-many congratulations!

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  21. @Dr. Vasha ji... thank you so much Mam...

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  22. @Jayhrishna ji... thank you so much...
    my pleasure...

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  23. सुन्दर भावपूर्ण कविता..बधाई

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  24. @कैल्श जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...

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  25. क्या बात है बहुत खूब....बहुत तराशी हुई रचना है,
    बहुत ही सुन्‍दरता से व्‍यक्‍त बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।
    ......आनंद आगया.

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  26. Pooja, bahot achchi panktiyan hai...Meri har Yaad me tera hi saya hai ...meri har dhadkan me thi samay hai ......lajwaab likh hai

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  27. @भैया... बहुत-बहुत धन्यवाद... बस एक छोटी-सी कोशिश की है...

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  28. क्या बात है मीठी, बहुत अच्छे बिटिया
    चलो कोई बात नहीं, मैं उसे बता दूंगा
    आशीर्वाद

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  29. wow sweethrt, grt yaar
    hmm hmm, love
    ?????????????????
    maine kuchh nahi kaha
    bt seriously awesome

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  30. and yah, Baba ne sahi kaha, wo usey bata denge :))

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  31. sab kuch uska hai to aap bhi usi me samahit ho gayi...... vaah yeh hriday ke udgar hain

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  32. बहुत ही सुन्दर रचना. शुभकामनाएं

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  33. बढिया भाव प्रस्तुति. किन्तु ये पति/प्रेमी को समर्पित है या पुत्र को ? क्षमा चाहूँगा, लेकिन मेरे दिमाग में स्पष्ट नहीं हुआ ।

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  34. वाह पूजा
    मेरी मंजिल भी तू ही था
    और था ही तू ही मेरा साहिल
    .........वह क्या कहने बहुत ही बेहतरीन
    पांच बार पढ़ चूका हूँ पर मन ही नहीं भरता

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  35. अंतिम तीन पंक्तियों में कविता अपनी चरम पर पहुँच कर भाव विह्वल कर देती है - उत्कृष्ट रचना के लिए हार्दिक बधाई

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  36. नमस्कार जी! बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...

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  37. @बाबा, आर्ची, संध्या जी, ज़मीर जी, सुशील जी, भैया, राकेश जी, विजय जी... बहुत-बहुत धन्यवाद..
    @सुशीलजी... जी जरूर, स्पष्टता बहुत जरूरी है...
    ये सिर्फ वो निश्छल प्रेम है जिसमें सिर्फ समर्पण की भावना है...
    अब ये आपके ऊपर है कि आप इसे किसके प्रति समर्पित देखते हैं... पति/प्रेमी/पुत्र या ईश्वर...
    मेरा समर्पण सिर्फ प्रेम को है... और यदि आप मेरे भौतिक जीवन के बारे में पूछ रहे हैं तो, न ही मैं विवाहित हूँ कि पति/पुत्र की बात करूँ, और ऐसी खुशकिस्मती भी नहीं कि कोई "ख़ास" हो... रही बात ईश्वर की तो मै सिर्फ उनकी साधना में यकीन रखती हूँ वो भी मन से...

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  38. बहुत ही अच्छी रचना,जैसे कोई नदी कल कल बहती जा रही हो समर्पण का भाव लिए !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  39. @ज्ञानचंद जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...

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