सुबह आँख मीचते हुए
नींद में ही करवट बदली जब,
किसी नन्हे उजाले ने
मेरा हाँथ थामा था...
न जाने क्या...
किसी सफ़र में चलने को कह रहा था शायद...
बस मैं भी चल पड़ी थी
उसके पीछे-पीछे
एक अंजान रस्ते में...
पर यकीन था कि
रास्ता सही चुना है मैंने
आख़िर वो ख्वाब था मेरा
यकीन करना तो लाज़मी था...
जब चल रही थी उस रास्ते पर
कुछ नर्म-सी घांस और ओस का
अहसास हुआ था पैरों को,
ठंडी-सी हवा न छुआ था मुझे,
कुछ पत्तों की सरसराहट भी पड़ी थी
कानों में मेरे,
बहते पानी का शोर भी
समझ आया था,
जैसे कहीं दूर कोई नदी हो,
चिड़ियों की चहचहाहट भी सुनाई दी थी
जैसे उड़ा हो कोई झुण्ड आसमाँ में
एक पेड़ से दूसरे में जा बैठने के लिए....
फ़िर धीरे से करवट बदली जब दुबारा...
और आँखे हल्की-सी खोलीं थीं...
दरवाज़े से एक धुंधली-सी परछाईं
झाँक रही थी,
खिड़की से पर्दा हटाया
लगा जैसे कोई यूँही निकला हो वहां से
जिज्ञासा बढ़ी
बिस्तर छोड़ा
दरवाज़ा खोला
बाहर झाँका
जिसे पाया
वो
हल्की धुंध में लिपटी
गुलाबी ठण्ड थी
ठण्ड के आगमन की खबर के साथ...
बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
ReplyDeleteआखिरी पंक्तियों ने मन मोह लिया।
ReplyDeleteप्रिय पूजा
ReplyDeleteनमस्कार !
कुछ तो है इस कविता में, ........जो मन को छू गयी।
आप स्वस्थ,सुखी,प्रसन्न और दीर्घायु हों,हार्दिक शुभकामनाएं हैं …
आपका भाई
संजय भास्कर
@भैया, वंदना जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete@भैया... बहुत-बहुत धन्यवाद भैया, आशा करती हूँ की आगे भी मेरी रचनाएँ आपको ऐसे ही पसंद आयें...
अति प्रशंसनीय एवं मनमोहक कविता
ReplyDeletedabirnews.blogspot.com
@तौसीफ जी... धन्यवाद...
ReplyDeleteपूजा जी,
ReplyDeleteकविता मन को छू गयी।
सर्दी के आगमन का अहसास जिस तरह से इस कविता ने कराया
उसका जवाब नही
सुन्दर कविता के लिए बधाई
@दीपक जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete4.5/10
ReplyDeleteहर मौसम की तरह सर्दी का भी स्वागत है.
@उस्ताद जी... रेटिंग का धन्यवाद...
ReplyDeleteपरन्तु इस ठण्ड की बात अलग है क्योंकि इस बार मैं आप लोगों जुड़ गयी हूँ...
शीत ऋतु का स्वागत आपने अपनी कविता में बहुत ही सुंदर तरीके से किया है।...शुभकामनाएं।
ReplyDeletegreat poem dear
ReplyDeleteso, winter arrived there? save yourself from cold.
sabse pahle to aapke comment ka dhanywaad jo aapne mere blog par diya hai ..
ReplyDeletedusri baat ki maine aaj aapke blog ko dekha , mujhe bahut pasand aaya , aapki lekhni ki style bahut alaga hai ...
teesri baat , is kavita ke baare me kuch kahna chahunga .. this is an amazing poem .. it is full of youth and dreams of youth... kudos..
next , ye bataye ki kya aap ujain se ho , main har do-teen mahine me waha aata hoon , mahakaal ke darshan ke liye..
aapko shubhkaamnaye..
vijay
बेहद सुन्दर रचना.
ReplyDeleteठण्ड की भूमिका अच्छी बनायी आपने.
ReplyDeletelast में पता चला की दरवाजे के बाहर ठण्ड थी.
इसी को climax कहते हैं.
बहुत सुन्दर कोमल भाव ली हुई कविता ...
ReplyDeleteवाह पूजा जी जबरदस्त सस्पेंस है आपकी कविता में,कविता पढ़ते पढ़ते बहुत से भाव मन में उमड़े परन्तु अंत में गुलाबी ठंडक................ क्या विदाई की आपने पिछले मौसम की और क्या धांसू इंट्री हुई है गुलाबी ठंडक की!आपको गुलाबी ठंडक के आगमन की बधाई हो!
ReplyDeleteब्लाग जगत की पहली ठंड मुबारक हो।
ReplyDeleteप्यारा अंदाज़ गुलाबी ठण्ड का. लेकिन मुंबई बाप रे बाप वही पसीना
ReplyDeleteजी हाँ ..ठंड का आगमन हो चुका है...बढ़िया प्रस्तुति ठंड के आगमन के खबर के साथ....धन्यवाद
ReplyDeleteशीत ऋतू की फिर से होगी शुरुआत
ReplyDeleteफिर से होगी माघ और पूस की रात
कुल्फी ठंडई अब कीसी को न भाएगी
गरमा गर्म चाय पकौरे सब का जी ललचाएगी
अब सीलिंग फैन और AC को करो गुड बाई
ReplyDeleteओढो दुशाला और अपना लो रजाई
हीटर चलाओ ,अंगीठी जलाओ
आग तापकर ठंड को भगाओ
The beginning has been wonderful so far...let's hope for the best. The suspense hasn't finished with the arrival of just winter...it will probably continue further after your recent prelim..I suppose!
ReplyDeleteek achchhi rachna se swagat kiya hai aapne gulabi thand ka.
ReplyDeletebahut sundar laga.
@महेंद्र जी, अर्चिता, विजय जी, सुब्रमनियम जी, कुंवर जी, इन्द्रनील जी, अमरजीत जी, राजेश जी, एस.एम्.जी, विनोद जी, भैया, अश्विनी जी, सुरेन्द्र जी... आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete@विजय जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... जी नहीं मैं उज्जैन से नहीं हूँ, परन्तु इंदौर जाना होता रहता है, और मेरे पापा भी मंदसौर में पोस्टेड थे, तो मैं भी "बाबा" से जुड़ गयी हूँ...
@भैया... धन्यवाद इस तरह से मेरी किता को प्रेरित करने के लिए...
@अश्विनी जी... please clarify, cause I didn't got properly what you wanna say... thank you so much...
इस ठंड में स्वयं को बचा कर रखिये। सुन्दर कविता।
ReplyDeleteNihayat sundar rachana!Gulabi thand kaa ehsaas yahan tak pahunch gaya...jabki hamaree taraf khoob garami hai!
ReplyDeletethand ek nazm si.... siharti aahten , chhu gai mujhe
ReplyDelete@प्रवीण जी, क्षमा जी... धन्यवाद
ReplyDelete@प्रवीण जी... जी जरूर... शुक्रिया
@क्षमा जी... आप बास पता दे दीजिये, हमसे हुआ तो कुछ ठण्ड तो भेज ही देंगें... धन्यवाद...
@रश्मी मैम... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteBahut khoob. Ek ek pankti man ko chhoo gayi.
ReplyDeleteThat was a beautiful poem. Nice work, keep blogging.
ReplyDeleteDear pooja,
ReplyDeletereally nice and soothing effect giving poem.Imagination is wonderful.
@Nish ji, zephyr and Rajiv ji... Thank you so much...
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