"लाली मेरे लाल की, जित देखूं उत लाल...
लाली देखन मै गयी, मैं भी हो गयी लाल..."
इन पंक्तियों को पढ़
सज-सँवर,
प्रेम-रस में डूब कर...
अपने नन्हें हाथों में
कुछ कोमल सपनों की पोटली ले
निकली थी
मैं भी अपने लाल को खोजने...
बाहर आकर देखा
तो मंज़र कुछ और ही था...
हर दरवाज़े पर एक लाल खोपड़ी टंगी थी...
और नीचे लिखा था... DANGER... खतरा...
प्यार के रास्ते में ख़तरा???
बात समझ के परे थी ...
मैं आगे चल पडी...
जो दिखा...
उसमें...
कहीं लडकी होने के कारण
बुरी नीयतों का खतरा...
कहीं जात-पात का खतरा
कहीं रिवाजों के टूट जाने का खतरा...
तो कहें ऊँच-नीच का खतरा
कहीं सह्गोत्री होने के कारण
ऑनर-किलिंग का खतरा...
तो कहीं नकास्ल्वाद,
आतंकवाद का खतरा...
या फ़िर,
प्रादेशिक अलगाव या भाषा अलग होने से
पहचाने जाने का खतरा...
कहीं धोखे-से किसी दरवाज़े को
छूने की कोशिश भी करती...
चरों ओर से खतरनाक आवाज़ गूंजती...
"खतरा... ख़तरा... खतरा..."
इतना सुन
ऐसा लगा मनो
फट पड़ेंगीं दिमाग की नसें...
पागल हो जाउंगी मै इस गर्जना से...
और टूट जायेंगे मेरे सपने सच होने से पहले...
इसी डर से समेट ली
अपनी पोटली अपने सीने में
और चीख पड़ी थी ज़ोर से...
पर ध्यान आया अचानक
अपने नन्हें सपनों का
फटाफट खोली वो पोटली...
पर...
तब तक...
वो त्याग चुके थे अपने प्राण
और मैं नहा रही थी उनके लहू से...
तब याद आया कि...
लाल रंग केवल प्रेम का नहीं
"खतरे" का सूचक भी है...
और अब उन पंक्तियों का मतलब मैं समझ भी गयी थी
और उन्हें आज के युग में चरितार्थ भी कर रही थी...
वाकई...
"लाली मेरे लाल की, जित देखूं उत लाल... लाली देखन मै गयी, मैं भी हो गयी लाल..."
रचना पढ कर शब्दहीन हो गया हूँ,
ReplyDeleteइस से बेहतर क्या हो सकता है?
बधाई
@दीपक जी... बहुत-बहुत शुक्रिया...
ReplyDeleteहर तरफ खतरा ही खतरा है
ReplyDeleteबस एक एक छोटा सा निर्भीक दिल चाहिए
लाजवाब.....प्रशंशा के लिए उपयुक्त कद्दावर शब्द कहीं से मिल गए तो दुबारा आता हूँ...अभी
ReplyDeleteमेरी डिक्शनरी के सारे शब्द तो बौने लग रहे हैं...
@अभिषेक जी, भैया... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete@अभिषेक जी... वही दिल लेकर तो निकली थी
@भैया... ज्यादा तारीफ नहीं हो गयी??? सिर्फ कोशिश की है...
इस प्यार के नाम से मैं भी सिहरी थी
ReplyDeleteहवा से हल्की हो गई थी
आकाश को छू लेना चाहा था
पर उदासी की दस्तकों में
ईश्वर ने रुंधे गले से कहा था
'कहा था मैंने प्यार कलयुग में होगा नहीं
जो करेगा ....
तुम तो निस्तेज हो ही गई ...'
@मैम... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteपरन्तु आपके इस कमेन्ट के लिए मैं कुछ कह सकूं.... शब्द ही नहीं हैं...
समाज पर बेतरीन कटाक्ष किया है आपने ,
ReplyDeleteसमाज को सबक लेना चाहिए इस से
ajabgazab.blogspot.com
dabirnews.blogspot.com
पूजा जी
ReplyDeleteऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती.....
सोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना !
Behatreen Rachna. Apna Khyal rakhiyega.
ReplyDelete@तौसीफ जी, भैया, तारकेश्वर जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete@भैया... आपने फ़िर से "जी" कहा???
@तारकेश्वर जी... जी जरूर... धन्यवाद...
प्रेम और खतरा - इस तो अब कोई विवाद रहा ही नहीं कि दोनों समानार्थी हैं।
ReplyDeleteनिशब्द कर दिया……बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDelete5/10
ReplyDeleteकविता के रूप में तो नहीं लेकिन भावनाओं के रूप में पोस्ट बहुत अच्छी लगी.
खतरे तो हर जगह हैं ... हममें ही कमियां हैं, कमजोरियां हैं जो जूझने का जज्बा और हौसला नहीं दिखा पाते.
प्यार की अनुभूतियों में समाज के लहुलूहान हालात और उसका दर्द बहुत ही खूबसूरती से प्रतिबिंबित किया है!
ReplyDeleteधन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
पूजा,
ReplyDeleteसमाज ने रिश्तों से प्रथा को हमेशा बड़ा दिखाना चाहा है और जो भी इसमें बाधक बना उसका अस्तित्व मिटाने तक से भी परहेज नहीं किया है .आज भी कमोबेश ऐसा ही है.लेकिन बदलाव की आंधी में प्रथाएं पत्तों की तरह उड़ती नजर आ रही हैं.पेड़ों में नयी-नयी कोंपलें आने लगी है..बेहद संजीदगी-भरी रचना.
मार्मिक अभिव्यक्ति।
ReplyDelete..श्याम की लाली को वक्त की लाली अपने ही रंग में रंग देती है...कटु सत्य।
..बधाई।
पूजा जी बहुत अच्छी रचना वक्त और हालातो का अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया आपने !
ReplyDeleteलाली मेरे लाल की जीत देखू उत लाल
लाली देखन मै गयी मै भी हो गयी लाल
इन लाइनों को इस तरह वक्त और हालातो से जोड़कर भी प्रस्तुत किया जा सकता है सोचा नहीं था !
थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ गया... क्या लिखूं... शब्दों को आपकी भावनाओं ने छोटा साबित कर दिया है ....
ReplyDeleteawesome....
समाज पर बेतरीन कटाक्ष....इस से बेहतर क्या हो सकता है|
ReplyDelete... bahut badhiyaa ... behatreen !!!
ReplyDeleteदोहे के 'लाल' शब्द की ऐसी व्याख्या और उस पर कविता भी,क्या बात है.
ReplyDeleteकाफी दिनों से मेरा ब्लॉग आपने नहीं देखा,पूजा जी
@प्रवीण जी, वंदना जी, उस्ताद जी,ज्ञानचंद जी, राजीव जी, देवेन्द्र जी, अमरजीत जी, शेखर जी, पाताली जी, नया सवेरा जी, कुंवर जी... आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया...
ReplyDelete@उस्ताद जी... मैं आपकी बातों से सहमत हूँ पर पूर्णतया नहीं... क्या बताएँगे कि कल रात दिल्ली में जो हुआ उसमें किसका साहस कितना काम आया... या जिन्होंने दुस्साहस दिखाया उन्हें साहसी कहा जाए... खैर, बातें ही तो हैं होती रहती हैं... है न!... कुछ गलत कहा हो तो क्षमा चाहती हूँ...
@कुंवर जी... अनुपस्थिति के लिए क्षमा मांगती हूँ... अभी पहुँचती हूँ वहां... धन्यवाद...
aap ke lal ki lali ne kamal kar diya .
ReplyDeletekamal ki soch.
@पूर्विया जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... बस लाल ही तो हैं, कमाल ही करेंगे जब भी करेंगें...
ReplyDeleteमेरी पोस्ट पर कमेन्ट के लिए धन्यवाद. आपकी शालीनता ने आपको अलग पहचान दे रक्खी है पूजा जी, आप जैसे लोगों की मैं क़द्र करता हूँ.
ReplyDeleteमेरी पोस्ट पर कमेन्ट के लिए धन्यवाद. आपकी शालीनता ने आपको अलग पहचान दे रक्खी है पूजा जी, आप जैसे लोगों की मैं क़द्र करता हूँ.
ReplyDelete@कुंवर जी... आप मुझसे उम्र, ओहदे और तजुर्बे में बहुत बड़े हैं... मैं तो आपकी बिटिया सामान हूँ...
ReplyDeleteयदि आप मानतें हैं कि मैं ऐसी हूँ तो बस आशीर्वाद बनायें रखियेगा कि सदैव ऐसी ही रहूँ... धन्यवाद...
जी बिलकुल, ये भी कोई कहने की बात है.
ReplyDeleteअंतर्मन को प्रभावित करती पंक्तियाँ ....सुंदर पोस्ट
ReplyDeletekunwar kusumesh ji ne achi vyakhya ki hai pooja
ReplyDelete@भैया... धन्यवाद बहुत-बहुत... कुंवर जी की आभारी हूँ...
ReplyDeleteसबसे पहले तो ब्लाग के इस सुंदर टैम्पलेट के लिए बधाई। और फिर इस कुछ हकीकत और कुछ फंतासी से भरी रचना के लिए साधुवाद। निश्चित ही इसमें कुछ तुम्हारे अनुभव भी होंगे। पर अपने अनुभवों को विस्तार देकर सबको प्रभावित करने वाली अभिव्यक्ति देना ही सच में लेखन है। चाहे फिर वह कविता हो,कहानी हो या कुछ और। मुझे लगता है इस कविता में तुमने इसे छूने का एक सफल प्रयास किया है। (मैं यहां तुम्हें या खुद को किसी रिश्ते मैं नहीं बांधना चाहता हूं। पर इतना जरूर कहूंगा कि तुम्हें तुम से संबोधित करना ही ज्यादा अच्छा लग रहा है बजाय आप के। आशा है इस के लिए अनुमति होगी।) शुभकामनाएं।
ReplyDelete@राजेश जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... जी, मैं हमेशा से ही जो देखती हूँ, महसूस करती हूँ, उसी पर लिखती हूँ...
ReplyDeleteरही बात आपका मुझे "तुम " बोलने की, तो आप एकदम सही हैं...
बस यूँही प्रेरित करते रहें...
oye hoye shoneyo, kee kitta re..........
ReplyDeleteawesome, beautiful, great, too good, lovely......... bilkul teri tarah
tu baat maan le meethi warna ham apne naam se publish karwa lenge, samjhi
and yah this butterfly is just sooting you....... muaah..........
all the luck and success baby
@archi... thank you so much sweety... baaki baatein hm phn par karen??? mujhe aapko pyaar se thank you bolna hai...
ReplyDeleteक्या कहूं ? निःशब्द !
ReplyDeleteसंभवतः आप के ब्लॉग पर हमारी प्रथम उपस्थिति है. आपने स्तंभित कर दिया.!
ReplyDelete@अरविन्द जी, सुब्रमनियम जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete@सुब्रमनियम जी... मेरे लिए आपका नाम पहचाना-सा हूँ... शायद प्रोफाइल फोटो और टेम्पलेट में बदलाव के कारण आपको ऐसा लग रहा है...
bahut badhiya pooja ji..itni achchi rachna..aap aise hee likhti rahein..hamrai shubhkaamnaye aapke sath hain :)
ReplyDeleteबेहद प्रभावशाली लिखा है ...बहुत ही अच्छा.
ReplyDeleteआज के माहौल को देख कर एक सशक्त अभिव्यक्ति दी है ...सुन्दर और भाव प्रधान रचना .
ReplyDeleteअपने आस पास के परिवेश से उपजे मन को मथते और उद्वेलित करते अनुत्तरित प्रश्नों से उपजी पीड़ा को बेहद ही खूबसूरती और मर्मस्पर्शी ढंग से उकेरा गया है. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
dil ko chhu gaya
ReplyDeleteपूजा जी ,
ReplyDelete९.५० / १०
सुन्दर कविता और भावना प्रधान कविता के लिए इससे कम नंबर देना बचपना है !
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी वास्तव में अत्यधिक दुबले पतले मरियल से दिखते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी अपने असली ब्लॉग में बिजनेसमैन बने हुए हैं ?
क्या आप जानते है कि उस्ताद जी के सच्चे नाम से लाईट का क्या सम्बन्ध है ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी के असली ब्लॉग में उनका साइड पोज वाला फोटो लगा है ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी कानों के ऊपर बालों वाला फोटो बहुत पसंद करते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी मोहल्ला होशियारपुर ग्राम लखनऊ में रहते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी बोध कथाओं को हास्य कथा मानते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी अपने फर्जी ब्लॉग में माडरेशन लगाये हुए हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी का गोविन्द से क्या सम्बन्ध है ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी पहेलियाँ किस नाम से बूझते हैं ?
क्या आप जानते हैं कि उस्ताद जी फर्जी आई डी क्यों बनाये हुए हैं ?
बहुत दिनों बाद ऐसा कुछ पढने को मिला , जिसे बार बार पढ़ा. शुक्रिया पूजा जी
ReplyDelete
ReplyDeleteपारँपरिक दोहे के निर्गुण भाव का
वर्तमान परिदृश्य में दुर्गुणता के सँदर्भों का सोदाहरण उपयोग !
आपकी कल्पनापूर्ण चतुराई की दाद देता हूँ ।
बहुत सटीक...प्रशंसनीय अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteभावों के तूफ़ान से भरी हुई एक बहुत ही बेहतरीन रचना है..... बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया.... बहुत खूब!
ReplyDeleteप्रेमरस.कॉम
@शैलेश, शिखा जी, संगीता जी, डोरोथी जी, संध्या जी, उस्ताद बाल जी, मासूम जी, डॉ. अमर जी, समीर जी, शाह नवाज़ जी.... आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया...
ReplyDelete@उस्ताद बाल गोविद जी... आप यहाँ मेरी रचना की तारीफ ही करने आये थे न??? या बाकी आपका signature है... परन्तु, बहुत-बहुत धन्यवाद...
पूजा जी लगता है कालजयी कृ्तियाँ आज फिर से अपनी व्याख्या माँगती हैं। ये दोहा आज भी उतना ही प्रासांगिक है लेकिन आपकी व्याख्या ने इसे आज के संदर्भ मे कालजयी बना दिया। बहुत ही गहरे भाव लिये सुन्दर रचना। बधाई आपको।
ReplyDelete@निर्मला जी... आपका बहुत-बहुत धन्यवाद... मैं तो बस कोशिश करती हूँ अपनी तरफ से...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावमय प्रस्तुति ।
ReplyDelete@सदा... बहुत-बहुत शुक्रिया...
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteचलते -चलते पर आपका स्वागत है ....!
@केवल जी... धन्यवाद... दोनों के लिए...
ReplyDeleteआपने विषय की मूलभूत अंतर्वस्तु को उसकी समूची विलक्षणता के साथ बोधगम्य बना दिया है। यह रचना व्यंग्य नहीं, व्यंग्य की पीड़ा है। पीड़ा मन में ज़ल्दी धंसती है।
ReplyDelete@मनोज जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... परन्तु मैंने कहीं भी इसे व्यंग कहा ही नहीं... ये तो मेरे आस-पास के अनुभव थे जो मैंने कागज़ में उकेर दिए...
ReplyDeleteखतरे बहुत डराते हैं
ReplyDeleteपर बहुत सारे तो
तर जाते हैं खतरे से।
कैनन का एस एक्स 210 : खरीद लूं क्या (अविनाश वाचस्पति गोवा में)
विश्व सिनेमा में स्त्रियों का नया अवतार : गोवा से अजित राय
अमिताभ बच्चन ने ट्रैक्टर चलाया और ट्विटर पर बतलाया
सिनेमा का बाजार और बाजार में सिनेमा : गोवा से
बहुत दिनों बाद ऐसा कुछ पढने को मिला , जिसे बार बार पढ़ा. शुक्रिया पूजा जी
ReplyDeleteशाबाश लड़की !
ReplyDelete@अविनाश जी, अमृतवाणी, सतीश जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteउस्ताद जी ने सही ही तो कहा है, वास्तव में हां जी हां जी से बात थोडे ही बनती है-जहां तक कविता की बात है-कलापक्ष कमजोर है परन्तु कोई बात नहीं भावपक्ष सुद्रड है, प्रस्तुतीकरण, भाव संप्रेषण व विषय-विचार शानदार है।
ReplyDelete-----परन्तु सपनों को कभी डर कर छोडना नहीं है, यह नकारात्मक भाव छोडना चाहिये.....
Sundar vartman pradrashya ko ingit karti bhavpurn rachna..aabhar
ReplyDeleteसमाज का कटु सत्य बताती पोस्ट है पूजा.... मार्मिक भावाभिव्यक्ति
ReplyDelete@डॉ. श्याम जी, कविता जी, डॉ.मोनिका जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteAtiutam*****
ReplyDelete@आदित्य जी... बहुत-बहुत शुक्रिया...
ReplyDeleteMujhe samajh nahi aata ki aapki abhivyakti ko kis vibhusan se alankrit karun. Bahut hi sundar prastuti. Plz. visit my blog.
ReplyDelete@प्रेम सरोवर जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeletekahan se kahan pahuch gaye...:)
ReplyDeletelal ki lali ko kahan se kahan le gaye.........itna sach me kavi man hi kar sakta hai...badhai...
Now i follow ur blog....ab barabar aana parega..:)
ReplyDelete@मुकेश जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete........सशक्त अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह ..... पूजा गज़ब का लिखतीं हैं आप .......!!
bahut khoob pooja ...........me to fan ho gaya apka
ReplyDelete@bhaiya... thank you so much
ReplyDeletebut please ye "aap" bolna band kar dijiye aap...
kavita ke madhyam se sahi vishay ko uthhaya hai
ReplyDeleteHi Pooja.
ReplyDeleteBahut he achche rachna he, aapke bhav and unki abhivayakati bahut is uttam and ucchya koti ke he
@सुनील जी, अंकुर.. बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteअरे यह पोस्ट तो मैंने पढ़ी ही नहीं थी, बहुत ही सारगर्भित रचना..... एक तरह का नया प्रयोग लगा.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete@वंदना... पहले क्यों नहीं पढी :(
ReplyDeleteकोई बात नहीं अब तो पढ़ ली न... :)
बहुत-बहुत धन्यवाद...
मुझे इस कविता के विषय में तो कोई टिप्पणी नहीं करनी है परन्तु इतना अवश्य कहना चाहता हूँ कि जिन गुणी-जनों ने भी इसकी प्रशंसा में अपने उदगार व्यक्त किये हैं वह भ्रामक प्रतीत होते हैं. कबीर जी के इस दोहे में लाल शब्द का सम्बन्ध लाल रंग से कतई नहीं है. इस दोहे में ईश्वर (मेरे लाल) की रचना (लाली) को सर्वोत्तम बताते हुए कबीर जी ने कहा था कि वह भी इस रचना में ढल कर वैसे (लाल) हो गए हैं. लगता है आप इस दोहे के सन्दर्भ से जुड नहीं पाई और इसको अपने ढंग से सोच कर ऐसी व्याख्या कर दी है. अतः इस कविता को दोहे से जोड़ कर प्रस्तुत करना उचित नहीं होगा ऐसा मेरा विश्वास है.
ReplyDelete@anonymous... सर्वप्रथम, आप यदि अपना नाम बताते तो हमें ज्यादा आसानी होती आपको समझाने में... दूसरी बात शायद आपने कविता को सिर्फ यूँही देख और कमेंट्स पढ़कर अपना विचार प्रस्तुत कर दिया... यदि आप कविता को ठीक से, शुरू से पढ़ते तो इसमें पता चलता कि शुरू में इसमें लाल रंग की व्याख्या की गयी है... ऐसे ही तो है कि मेरी कविता के मायने मेरे लिए अलग और आपके लिए अलग हैं... रही बात कबीर जी के दोहे की तो आप शायद इस बात से अज्ञान हैं कि ऐसे महान संत की वाणी लोग यूँही समझ जाते थे, उसके लिए कोई भी पोथी पढने की जरूरत नहीं थी... आने के लिए धन्यवाद... अगली बार नाम एवं पहचान के साथ आयें, ख़ुशी होगी...
ReplyDeleteसमाज का लड़की के प्रति नजरिये को पूजा जी आपने बहुत ही गहरे भाव उकेरे हें,मैं दाद देता हूँ आपके लेखन को, इन पक्तियों के साथ
ReplyDelete"तुम्हारी गली से उठ कर हम तो रोज़ सिहर जाते है,
लेकिन हमको याद है तुमसे मिलने में दीवार बहुत,!"
@राज जी... बहुत-बहुत शुक्रिया...
ReplyDeleteयूं पंक्तियों के साथ कमेन्ट के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...
रक्तिम होता है
ReplyDeleteखून भी खतरा भी
खेल के रंग नहीं होते
मेल के ढंग नहीं होते
दुख के बीज बोते नहीं हैं हम
सुख के बीज तो होते ही नहीं है
खतरा ख्याली है
पुलावी है
पर लाल रंग डराता है
पर भाता भी लाल रंग ही है
लालिमा भी इसी से आती है
।
Bahut khooob laal rang 'payaar' ka aur laal rang 'khatre' ki tarah 'rukne' ka bhi to hai. In pehli do bhawnaon me jaane se pehle teesri bhawana ko yaad karna chahiye taanki fir kabhi dhokha na uthana pade. good poem . keep interacting .
ReplyDeletenice creation.. mja aa gya....
ReplyDeleteBimal Raturi