मेरी रूह तो तेरी थी
साँसे भी तेरी ही थीं
मेरा हर लम्हा तेरे लिए थे
मेरी हर घड़ी भी तेरी थी...
मेरी हर याद में तेरा ही साया था
मेरी धडकनों में भी सिर्फ तू ही समाया था
मेरे कानों में आवाज़ तेरी ही थी
मेरी आँखों में तस्वीर तेरी ही समाई थी...
मेरे अहसासों में तू था
मैं महसूस भी बस तुझे ही करती थी
बात किसी की भी हो
मैं बात तेरी ही करती थी...
मेरी मंज़िल भी तू ही था
और था तू ही मेरा साहिल भी...
बस इन पन्नों की सफेदी में
उकेरे कुछ शब्द ही बस मेरे थे...
आज ये भी तुझमें शामिल हो गए...
gajab..... bahut achcha likha hai aapne...
ReplyDelete@महाबीर जी... धन्यवाद...
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDelete@सुज्ञ जी... धन्यवाद...
ReplyDeleteशब्द भी तेरे हुए ....बहुत खूब ...अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDelete@संगीत जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteप्रेमकूप में सब घुल जाये,
ReplyDeleteन तेरा मेरा रह पाये।
प्रेमपरक काव्यात्मक सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसमय हो तो मेरी नई पोस्ट भी देखें,पूजा जी
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (29/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
SUNDR KAVITA
ReplyDeleteअच्छी भावपूर्ण रचना .प्रेम से ओत प्रोत किसी को अपना बनाने और उसी में समां जाने की प्रदर्शित करती रचना ...................
ReplyDelete@प्रवीण जी, कुंवर जी, वंदना जी, अरुण जी, अमरजीत जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete@प्रवीण जी... सही कहा आपने... पर क्या करू, मुझे मेरा कुछ दिखता ही नहीं है, सब उसीका लगता है...
@वनादाना जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... जी जरूर, मेरी उपस्थिति वहां जरूर दर्ज होगी...
हमारे मन्त्रों में भी तो आता है. "इदं न ममा, अग्निये स्वाहा"
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.
@सुब्रमनियम जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर बात कह दी आपने ....बेहतरीन
ReplyDeleteसुंदर भाव है..
@अरुण जी... धन्यवाद... फ़िर से...
ReplyDelete@दीपक जी... धन्यवाद...
आज ये सब भी तुझमे शामिल हो गए ...
ReplyDeleteतेरा तुझको अर्पण !
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ... पूर्ण समर्पण के भाव लिए हुए !
ReplyDeletekhubsurat,,,bhaavpurn...sundar rachna...
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
ReplyDelete@वाणी गीत, इन्द्रनील जी, अरविन्द जी, अनुपमा जी.... आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeletedear pooja, really excellent! many-many congratulations!
ReplyDelete@Dr. Vasha ji... thank you so much Mam...
ReplyDeletebahut sunda kavita badhai poojaji
ReplyDeletesundar comments ke liye aabhar
ReplyDelete@Jayhrishna ji... thank you so much...
ReplyDeletemy pleasure...
सुन्दर भावपूर्ण कविता..बधाई
ReplyDelete@कैल्श जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteक्या बात है बहुत खूब....बहुत तराशी हुई रचना है,
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दरता से व्यक्त बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
......आनंद आगया.
Pooja, bahot achchi panktiyan hai...Meri har Yaad me tera hi saya hai ...meri har dhadkan me thi samay hai ......lajwaab likh hai
ReplyDelete@भैया... बहुत-बहुत धन्यवाद... बस एक छोटी-सी कोशिश की है...
ReplyDeleteक्या बात है मीठी, बहुत अच्छे बिटिया
ReplyDeleteचलो कोई बात नहीं, मैं उसे बता दूंगा
आशीर्वाद
wow sweethrt, grt yaar
ReplyDeletehmm hmm, love
?????????????????
maine kuchh nahi kaha
bt seriously awesome
and yah, Baba ne sahi kaha, wo usey bata denge :))
ReplyDeletesab kuch uska hai to aap bhi usi me samahit ho gayi...... vaah yeh hriday ke udgar hain
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना. शुभकामनाएं
ReplyDeleteबढिया भाव प्रस्तुति. किन्तु ये पति/प्रेमी को समर्पित है या पुत्र को ? क्षमा चाहूँगा, लेकिन मेरे दिमाग में स्पष्ट नहीं हुआ ।
ReplyDeleteवाह पूजा
ReplyDeleteमेरी मंजिल भी तू ही था
और था ही तू ही मेरा साहिल
.........वह क्या कहने बहुत ही बेहतरीन
पांच बार पढ़ चूका हूँ पर मन ही नहीं भरता
अंतिम तीन पंक्तियों में कविता अपनी चरम पर पहुँच कर भाव विह्वल कर देती है - उत्कृष्ट रचना के लिए हार्दिक बधाई
ReplyDeleteनमस्कार जी! बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDelete@बाबा, आर्ची, संध्या जी, ज़मीर जी, सुशील जी, भैया, राकेश जी, विजय जी... बहुत-बहुत धन्यवाद..
ReplyDelete@सुशीलजी... जी जरूर, स्पष्टता बहुत जरूरी है...
ये सिर्फ वो निश्छल प्रेम है जिसमें सिर्फ समर्पण की भावना है...
अब ये आपके ऊपर है कि आप इसे किसके प्रति समर्पित देखते हैं... पति/प्रेमी/पुत्र या ईश्वर...
मेरा समर्पण सिर्फ प्रेम को है... और यदि आप मेरे भौतिक जीवन के बारे में पूछ रहे हैं तो, न ही मैं विवाहित हूँ कि पति/पुत्र की बात करूँ, और ऐसी खुशकिस्मती भी नहीं कि कोई "ख़ास" हो... रही बात ईश्वर की तो मै सिर्फ उनकी साधना में यकीन रखती हूँ वो भी मन से...
बहुत ही अच्छी रचना,जैसे कोई नदी कल कल बहती जा रही हो समर्पण का भाव लिए !
ReplyDelete-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
@ज्ञानचंद जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
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