अपनी हर मुलकात की,
हर बात,
अपनी हर रात का,
हर अहसास,
यूंही कैद कर लेना चाहती हूँ...
इन्हीं पन्नों पर...
हर वो खुशी,
जब भी आई हंसी,
हर वो गम,
जब आँखें हुईं नाम,
यूंही लिख देना चाहती हूँ कलम से...
इन्हीं पन्नों पर...
हर वो सदा,
जो याद आ गयी,
हर वो अदा,
जो इस मन को भा गयी,
यूंही सरे पल समेट लेना चाहती हूँ...
इन्हीं पन्नों पर...
हमेशा के लिए...
और उन तमाम पन्नों को मैं समेट लेना चाहती हूँ अपनी आँखों से जेहन तक
ReplyDelete@रश्मि मैम... बहुत-बहुत धन्यवाद... ये कमेन्ट मुझे ताउम्र याद रहेगा...
ReplyDeleteYou just made my day...
वह ख़ुशी जब आँखें हुई नम.....................बहुत सुन्दर अहसास , बधाई
ReplyDelete@सुनील जी... धन्यवाद...
ReplyDeleteप्रिय पूजा जी
ReplyDeleteनमस्कार !
आपकी कविता पढ़कर मन अभिभूत हो गया ,
शब्द नहीं हैं इनकी तारीफ के लिए मेरे पास......बहुत सुन्दर
इतने सारे खूबसूरत एहसास एक साथ ...
ReplyDeleteकैसे समेटे इन्हें एक टिप्पणी में
बहुत ख़ूबसूरत हमेशा की तरह ...!
@भैया... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteयूंही आशीर्वाद बनायें रखें...
Bahut khoobsoorat ahsaas samete hain...! Ek baat kahun to bura na mane...wartani kee or adhik dhyan dengee to rachana auy zyada nikhar jayegi!
ReplyDelete@क्षमा जी... धन्यवाद...
ReplyDeleteजी जरूर, आपकी ये बात जरूर ध्यान में रखूंगी...
लिखो,लिखो। पर लिखना इसी तरह की केवल आप ही पढ़ सकें।
ReplyDeleteयही पन्ने स्मृतियों के वाहक बन खड़े रहेंगे, जीवन के हर मोड़ पर।
ReplyDeleteyuhin kaid kr lena chahti hun inhi panno pr....
ReplyDeletesunder abhvyakti....
abhaar............
पूजा जी
ReplyDeleteयादों के गुजरते पल को आँखों के रास्ते दिल में बसा लेने की ख्वाहिस खुबसूरत होने के साथ-साथ हृदयस्पर्शी भी है.
सुन्दर अहसास... हृदयस्पर्शी ...
ReplyDelete@राजेश जी, प्रवीण जी, भाकुनी जी, राजीव जी, अरुण जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteसुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteकाश कि हर बात पन्नों पर ला पाता ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
@वंदना जी, इन्द्रनील जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete@इन्द्रनील जी... कभी-कभी तो पहाड़ तोड़ने जितना मुश्किल लगता है ये काम... पर तब भी पूरा नहीं होता...
किसी की याद के कुछ रंग
ReplyDeleteयक-ब-यक
बिखर जाते हैं
ज़ेह्न के कैनवास पर।
और मैं
ठहर कर
निहारने लगता हूँ
उस कलाकृति की ख़ूबसूरती को…
बूझने लगता हूँ
अतीत के स्ट्रोक्स की पहेलियाँ।
…आज तक समझ नहीं पाया हूँ मैं
कि ये ऍब्स्ट्रेक्ट
बना तो बना कैसे!
@चिराग जी... इतनी प्यारी रचना के साथ कमेन्ट के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया...
ReplyDeletelike it.yadein sanjonaa....its good.
ReplyDelete