इन्ही पन्नों पर...

अपनी हर मुलकात की,
हर बात,
अपनी हर रात का,
हर अहसास,
यूंही कैद कर लेना चाहती हूँ...
इन्हीं पन्नों पर...

हर वो खुशी,
जब भी आई हंसी,
हर वो गम,
जब आँखें हुईं नाम,
यूंही लिख देना चाहती हूँ कलम से...
इन्हीं पन्नों पर...

हर वो सदा,
जो याद आ गयी,
हर वो अदा,
जो इस मन को भा गयी,
यूंही सरे पल समेट लेना चाहती हूँ...
इन्हीं पन्नों पर...

हमेशा के लिए...

21 comments:

  1. और उन तमाम पन्नों को मैं समेट लेना चाहती हूँ अपनी आँखों से जेहन तक

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  2. @रश्मि मैम... बहुत-बहुत धन्यवाद... ये कमेन्ट मुझे ताउम्र याद रहेगा...
    You just made my day...

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  3. वह ख़ुशी जब आँखें हुई नम.....................बहुत सुन्दर अहसास , बधाई

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  4. @सुनील जी... धन्यवाद...

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  5. प्रिय पूजा जी
    नमस्कार !
    आपकी कविता पढ़कर मन अभिभूत हो गया ,
    शब्द नहीं हैं इनकी तारीफ के लिए मेरे पास......बहुत सुन्दर

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  6. इतने सारे खूबसूरत एहसास एक साथ ...
    कैसे समेटे इन्हें एक टिप्पणी में
    बहुत ख़ूबसूरत हमेशा की तरह ...!

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  7. @भैया... बहुत-बहुत धन्यवाद...
    यूंही आशीर्वाद बनायें रखें...

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  8. Bahut khoobsoorat ahsaas samete hain...! Ek baat kahun to bura na mane...wartani kee or adhik dhyan dengee to rachana auy zyada nikhar jayegi!

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  9. @क्षमा जी... धन्यवाद...
    जी जरूर, आपकी ये बात जरूर ध्यान में रखूंगी...

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  10. लिखो,लिखो। पर लिखना इसी तरह की केवल आप ही पढ़ सकें।

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  11. यही पन्ने स्मृतियों के वाहक बन खड़े रहेंगे, जीवन के हर मोड़ पर।

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  12. yuhin kaid kr lena chahti hun inhi panno pr....
    sunder abhvyakti....
    abhaar............

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  13. पूजा जी
    यादों के गुजरते पल को आँखों के रास्ते दिल में बसा लेने की ख्वाहिस खुबसूरत होने के साथ-साथ हृदयस्पर्शी भी है.

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  14. सुन्दर अहसास... हृदयस्पर्शी ...

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  15. @राजेश जी, प्रवीण जी, भाकुनी जी, राजीव जी, अरुण जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...

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  16. सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  17. काश कि हर बात पन्नों पर ला पाता ...
    बहुत सुन्दर !

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  18. @वंदना जी, इन्द्रनील जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
    @इन्द्रनील जी... कभी-कभी तो पहाड़ तोड़ने जितना मुश्किल लगता है ये काम... पर तब भी पूरा नहीं होता...

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  19. किसी की याद के कुछ रंग
    यक-ब-यक
    बिखर जाते हैं
    ज़ेह्न के कैनवास पर।
    और मैं
    ठहर कर
    निहारने लगता हूँ
    उस कलाकृति की ख़ूबसूरती को…
    बूझने लगता हूँ
    अतीत के स्ट्रोक्स की पहेलियाँ।

    …आज तक समझ नहीं पाया हूँ मैं
    कि ये ऍब्स्ट्रेक्ट
    बना तो बना कैसे!

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  20. @चिराग जी... इतनी प्यारी रचना के साथ कमेन्ट के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया...

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