"प्रोत्साहनम परम सुखम..."

बचपन से हमेशा सुनते आये कि "संतोषम परम सुखम"... और ये बात सही भी है। जब भी आप किसी भी चीज़ में अपने-आप को मना लेते हैं, संतोष कर लेते हैं... या किसी काम को करने में आपको आत्मिक या मानसिक संतोष प्राप्त होता है तो उससे अच्छा काम आपके लिए कुछ और हो ही नहीं सकता, फ़िर चाहे वो काम कितना भी बड़ा या कितना भी छोटा क्यूं न हो?
पर जब भी आप कोई काम करते हैं, अपने लिए, अपनों के लिए या फ़िर किसी और के लिए... और आपके काम को सराहा जाये, उसकी तारीफ की जाए... मतलब आपको प्रेत्साहित किया जाए तो कितनी खुशी होती है न... और इसके विपरीत यदि आपको उस काम के लिए डांटा जाए, फटकारा जाए या कह दिया जाए कि आप उस काम के लायक ही नहीं हैं, आपसे कोई उम्मीद ही नहीं की जा सकती है... आपको हतोत्साहित किया जाए तो मन टूट-सा जाता है, लगता है कि क्योंन हम ही बार-बार बलि का बकरा बने? कभी-कभी तो हम वापस उस समस्या से, उस हालात से लड़ने को तैयार हो जाते हैं, परन्तु कभी-कभी ऐसी फटकार मिलती है कि बस... लगता है हटाओ, नहीं करना हमें भी कुछ...

और बिलकुल यही होता है जब हम अपने-से छोटों को, या अपने-से नीचे ओहदे में काम करने वालों के साथ करते हैं। उनका भी तो मन टूट जाता होगा जब हम उन्हें अच्छी खासी फटकार लगा देते हैं किसी काम के लिए। पर हमें तो बात सिर्फ अपने लिए ही याद रहती है, दूसरों के साथ यही व्यवहार करते वक़्त हम भूल जाते हैं कि वो भी इंसान हैं, उनके पास भी दिल है, उन्हें भी बुरा लग सकता है। शायद ये मनुष्य का प्राकृतिक स्वभाव है... जो हर किसी में सामान होता है।
फटकार लगाते वक़्त लोग ये भूल जाते हैं कि वो जिसे डांट रहे हैं वो उन्ही का कोई ख़ास है, उन्ही के अपनों में से हैऔर इसी भूल में वो अपना नुक्सान करा लेते हैं... आख़िर आपके कुछ अपने आपसे रूठ जाएं, आपके उनके बीच कोई मन-मुटाव हो जाए या आपके लिए उनके दिल में कोई बैर जाए तो वो आपका नुकसान ही है ?
वैसे मैंने कहीं-कहीं देखा है कि, कुछ लोग आपकी गलतियों को भी बड़े प्यार से बताते हैं, समझाते हैं और आपको उसे कैसे सुधारना है ये भी समझाते हैं... तब बड़ा अच्छा लगता है। लगता है जैसे कोई हमारे पास भी है जो हमें सही राह कैसे पकडनी है ये समझा सकता है। हाँ, आजकल ऐसे लोग मिलते बड़े कम हैं...
मुझे भी गुस्सा आता था, मैंने भी कई बार अपने से छोटों को तरीके की फटकार लगाई है, पर ये बात शायद जल्द ही समझ आ गई और मेरा ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। इसीलिये मैंने यह तय किया कि अब मैन भी अपने आदत में सुधार लाऊँगी और डाटने-फटकारने की बजाय आराम-से, समझाउंगी... प्रोत्साहित करूंगी।
वैसे एक बात और है, हमेशा देखा गया है कि प्रोतसाहन पाने वाला इंसान ज्यादा जल्दी एवं ज्यादा अच्छी तरक्की करता है, और जिस बच्चे को प्रोतसाहन प्राप्त होता है वो हमेशा आगे ही होता है और सही दिशा की और अग्रसर रहता है। मतलब प्रोत्साहन में फायदा-ही-फायदा... आपका भी और आपके अपनों का भी...
और जब ये बातें मेरी समझ में आईं तो बस यही बात मेरे मन से निकली...
"प्रोतासाहनम परम सुखम"

3 comments:

  1. नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'


    इसीलिए तो मेरा निवेदन रहता है कि:

    कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

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  2. आपकी बात से सहमति है। इसीलिए बार बार आपको प्रोत्‍साहित करने आ जाते हैं। पर पूजा जी प्रोत्‍साहन केवल बच्‍चों को नहीं बूढ़ों को भी चाहिए होता है। इसलिए कभी हमारे आंगन में भी अपनी किलकारी गुंजाएं। शुभकामनाएं।

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  3. @Udan Tashtari ji and Rajesh ji... thank you so much
    @Udan Tashtari ji... Ji bilkul, aap mere comments kai Chhithhakaron ke chhithoon mei dekh sakte hain...
    @Rajesh ji... aapke naam mein hi itna utsaah hai ki aapko protsaahan ki jaroorat kya hai, aur rahi baat meri to mai aapko protaasahan dene layak abhi nahi hui, mujhe to aapse aashirwaad chahiye... and kisne kaha ki aap boodhe hain? Ji bilkul... ab aap hamesha apne posts pe comments karte peeyenge... Asha karti hu ki aapki shikaytein ab nahi aayengee... Dhanyawaad

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