शब्दों से दोस्ती...

न जाने क्यूं,
शब्दों से मेरी दोस्ती नहीं हैं...
इसीलिये शायद
कह पाने में असमर्थ होती हूँ
अपनी बात
हर बार...
और यही असमर्थता
खींच लाती है मुझे,
इस कागज़ की ओर...
और अपनी कलम उठा आ जाती हूँ
हर वो बात कहने
अपनी उँगलियों से
जो मेरी जुबां कह नहीं पाती...

10 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

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  2. goodness me...
    awesome piece of writing....
    keep it up yaar....

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  3. Beautiful as always.
    It is pleasure reading your poems.

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  4. Pooja ji

    Bilkul Pareshan na hon kyoki

    कविता कोई
    चातुर्य नहीं है
    शब्दों का.

    वह दिल से
    निःसृत एक
    आवाज है,
    एक स्पंदन है;
    अभिव्यक्ति है.

    यह साज की
    मर्जी साथ दे,
    या न दे ;

    वह साज की
    रही नहीं कभी
    मोहताज है.


    Aaap ki aawaj dekhiye kahan-kahan tk pahuch gayi.

    Thanks. Good artcle.

    क्योकि साज को
    कानों तक पहुचने
    के लिए ध्वनि का
    सतत साथ चाहिए

    परन्तु कविता तो
    संकेतो- प्रतीकों से
    भी पहुचती है -
    गंतव्य तक.

    मौन में भी
    पहुचाती है
    मन के
    कोने कोने
    तक अपनी
    सुमधुर आवाज.

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  5. bahut hi badhiyaa...
    rasprabha@gmail.com per bhejen apni rachna 'vatvriksh ' ke liye
    parichat, tasweer ke saath

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  6. wahhh bahut khoob likha aapne !!

    आज हर इन्सां छुपाए है एक चोर
    जलता है तन मेरा जब लुटे कोई और
    क्या मैंने पाया जो मै हू खोता
    कि काश कभी मुझमे ये मेरा मै नही होता ...जय हो मंगलमय हो !

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  7. सही है .... बहुत बढ़िया !!

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  8. If the pen brings best out of you then keep writing. Words spoken will reach to few, words penned will reach to millions.

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  9. sundar manobhav...
    bahut achha laga aapka blog aur rachnayne...
    Haardik shubhkamnayne

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  10. पूजा जी
    नमस्कार !

    बहुत भाव पूर्ण कविता लिखी है …
    बधाई !

    वो बात
    ……… जो ज़ुबां कह नहीं पाती


    उंगलियों के आभारी हैं !

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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