वो आज भी वैसा ही है...


जैसे वो पहले मुझे सताता था
आज भी सताता है...
जैसे वो पहले मुझे रुलाता था,
आज भी रुलाता है
न जाने क्यूं और कैसे वो इतनी मोहब्बत कर लेता है मुझसे?
"वो हमेह्सा मेरे साथ ही रहेगा"
पहले क्या, आज भी यही जताता है मुझे...

पहले अपनी बदमाशियों से,
तो आज अपनी मजबूर बातों से सताता है
पहले अपने गुस्से से
तो आज अपनी यादों से रुलाता है
"न जाने क्या होगा हम दोनों का एक-दूसरे के बिना?"
मैं पूछती हूँ उससे...
पर ऐसा दिन कभी नहीं आने देगा...
यही कहकर हर बार खुद को मेरा बताता है मुझे...

16 comments:

  1. वाह ……………और क्या चाहिये जीने के लिये।

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  2. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  3. आदत कहाँ जाती है भला ....

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  4. बहुत बढ़िया रचना है जी , very nice post

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  5. बहुत बढ़िया...

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  6. kya bat hai behad khood

    dil ki aawaj nikal di aap ne to is bar

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  7. आपकी कविता से आपकी सम्वेदना और सम्वेदशीलता का पता मिलता है...उम्दा रचना
    टिप्पणीयों के मामले मे निर्धन के ब्लाग यदि आती रहेंगी तो मुझे खुशी और मनोबल दोनो मिलेंगे..

    सादर
    डा.अजीत

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  8. बहुत ही सुंदर कविता मैं आपने अपने मनोभाव व्यक्त किए हैं !

    बहुत सुंदर रचना !

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  9. Aap sab ka bhaut-bahut shukriya...

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  10. kitna acha lagta hai na bhavnao ko shabado me piro dena....nice rachana....thanks archana

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