वो कलम...
काश ऐसी कलम ईज़ाद हुई होती
जो बस यूँही
चलती रहती बिना रुके
और मन की हर बात
लिख जाती
बिना चुप हुए बीच में...
जिसे सोचना न पड़ता
कि, किस बात को लिखना है किस तरह???
वो तो बस
चलती मदमस्त पवन की तरह
और उड़ा ले जाती
इस गम और ख़ामोशी के बादलों को कहीं दूर...
या बहती उस चंचल नदिया की तरह
जो सारे कलरव खुद में समेटती
अग्रसर होती है अपनी मंज़िल की ओर...
और एक दिन,
शांत हो जाती है मिलकर
उस अथाह समुद्र से
जो न जाने
कितनों का दुःख,
कितना शोर समेटे हुए है
अपने-आप में...
परन्तु तब भी शांत है...
पर कभी-कभी वो भी उछाल मारता है
लांघ कर अपनी सीमा
जताता है शायद,
कि,
अब उसका भण्डार भर गया है
या
उसकी कलम भी कहीं खो गयी है...
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वाह /
ReplyDeleteअद्भुत कल्पना ...पूजा जी /
काश ऐसी कलम हो
@बब्बन जी, बस उसी की तलाश में हूँ...
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद...
@अख्तर जी... इस घोटाले का मेरी कविता से कोई लेना-देना नहीं है... और न ही मैं इस घोटाले में शामिल हूँ...
ReplyDeleteक़लम एक क़लमकार के लिए महत्वपूर्ण अस्त्र है.वो अपनी क़लम के ज़रिये वो चमत्कार कर दिखाता हैं जो अस्त्र-शस्त्र नहीं कर पाते .
ReplyDeleteक़लम पर कविता के माध्यम से जो सन्देश पूजा ने दिया है वो एक समर्थ रचनाकार ही दे सकता है.
समन्दर के दर्द पर मुझे किसी का एक शेर याद आ रहा है:-
कह रहा है मौजे-दरिया से समन्दर का सुकूं,
जिसमें जितना दर्द है उतना ही वो खामोश है
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी ..
ReplyDeleteकाहें कलम को कोस रही हैं वह तो बेचारी कनीज है भावनाओं की .
बहुत खूब .सुंदर रचना
ReplyDelete@कुंवर जी, अरविन्द जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete@कुंवर जी... शेर के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया...
पर आपसे फ़िर से विनती है, इतनी तारीफ मत किया करिए... मैं इस काबिल नहीं हुई हूँ अभी...
@अरविन्द जी... मैं उसे कोसूं तो कोसूं कैसे... वो ही तो मुझे बाहर ले आती है...
और नहीं कुछ करती... एक गुज़ारिश के सिवा...
@मासूम जी... जी शुक्रिया...
ReplyDeleteभाव समझने वाली कलम होती तो प्रारम्भ करने के बाद स्वयं ही लिखती रहती।
ReplyDelete@प्रवीण जी... वही तो मांग रही हूँ...
ReplyDeleteशुक्रिया...
बहुत सुंदर रचना !बधाई।
ReplyDeleteआपके पास ऐसी कलम है, तभी तो आप इतना अच्छा लिख पाती हैं।...आपकी कलम को सलाम।
ReplyDeleteआत्मा को शस्त्र नहीं काट सकता
ReplyDeleteअग्नि नहीं जला सकती
पानी नहीं गला सकता
हवा नहीं सुखा सकती
आत्मा अमर है ... आत्मा एक कलम है , जिसकी नोक भावनाओं की धार पर होती है , कलम ,जो ---
शस्त्र को काट सकता है
अग्नि को शांत कर सकता है
निर्मल पानी का स्रोत हो सकता है
हवा को संगीतमय कर सकता है
kalam hamari bhavnaon ko samajh leta hai aur uske chalte hi kagaj rupi sakhi sab kuch aatmsat kar leti hai
ReplyDelete@परमजीत जी, महेंद्र जी, बड़ी माँ, संध्या जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete@बड़ी माँ... पंक्तियों के बहुत-बहुत शुक्रिया...
Aisi mahachamatkari qalam mile to ek mere liye bhi bhijva dena! Aajkal dimag ke darwaze band pade hain!
ReplyDeletebhut khoob kalpana......kavi ko ho gaya lekhni se pyaar......read my poem "kavi ka pyaar"....on kaavya kalpna
ReplyDeletebahut anokhaa vichaar hai.aisee kalam ho bhee to unhee hathon se chalegee ek nirlipt dimaag ke ishaaron par chaltee ho.
ReplyDeletemere blog par aane kaa shukriyaa.
कभी कभी मन में इतना ज्वार होता है कि पन्नों पर उतर नहीं पाता ...उसी समय ऐसी बेबसी महसूस होती है ....बहुत अच्छी रचना ...
ReplyDeleteकाश!ऐसी कलम बनजाये .... बहुत सुन्दर रचना |
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर....
ReplyDeleteबहुत सार्थक ...विचारणीय कविता शुक्रिया
ReplyDeleteमन की कलम है ना.. सुन्दर कविता..
ReplyDeleteदिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
ReplyDeleteसादर
कलम तो माध्यम भर है। असली बात तो हमारी भावनाओं,विचारों और आत्मा की है। वह तुम्हारे पास है बस उसकी स्याही मत सूखने दो। अगर उसमें कुछ भी न हो तो कलम क्या करेगी।
ReplyDeleteDil ko chhu gayi yeh rachna, sahi kaha aapne aatma ek kalam hai!
ReplyDeletepooja mujhe bhi aisi kalam chahiye...
ReplyDeletejo hamesh chalti rahe
bahut pasand aai kavita ...bhaiya khush huye.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत - बहुत शुभकामना
@क्षमा जी, सत्यम जी, उन्कवि जी, संगीता जी, पाताली, महफूज़ जी, केवल जी, अरुण जी, यशवंत जी, राजेश जी, सुनील जी, भैया, दीप जी.. आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete@क्षमा जी... जी जरूर...
@भैया... मतलब विचार मिलते हैं...
पूजा जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है ... कलम तो मदमस्त पवन की तरह ही चलना चाहिए ...
पूजा जी ,
ReplyDeleteकलम के माध्यम से आपने जिस अभिव्यक्ति को मुखरित करने की कोशिश की है मैं उसे नमन करता हूँ !
बहुत बहुत बधाई !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
Sunder kavita ke liye ek bar fir se .....dhanyawaad
ReplyDelete........dher sari subhkaamnaye
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteकलम के माध्यम से भावों का सुन्दर चित्रण्।
ReplyDeleteजैसी भी हो आपकी कलम(लेखनी) कमाल की है . सुन्दर बिम्ब प्रयुक्त किया है. आभार
ReplyDelete@इन्द्रनील जी, ज्ञानचंद जी, भैया, शेखर जी, वंदना जी, आशीष जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeletewonderful poem...
ReplyDeletegud work.....
ReplyDeleteu r welcome in my blog...
http://www.kawyasagrwithneal.blogspot.com
@Kumar ji and Nilotpal... thank you so much...
ReplyDeletesunder chintan...
ReplyDeleteachchhi rachna..
@Surendra ji... shukriya...
ReplyDeletewaah ye aapki kalam ko kahun ki aapko? behad sundar likha hai tumne.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
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