ये है एक पावन धरती यहाँ है गंगा, भोलेनाथ और न जाने कितनी संस्कृतियों का मेल... मत करो ये शोरगुल, ये धमाके और ये लाश बिछाने का खेल... कुछ और नहीं कर सकते तो इतना ही कर दो अपने नाम के आगे से ये "INDIAN" ही हटा दो...
ज्वलंत और सामयिक विषय पर लिखकर एक क़लमकार की ज़िम्मेदारी का निर्वाह किया है आपने. प्रतिक्रिया स्वरुप अपनी निम्न पंक्तियाँ भी :- ये दुष्ट हमारे देश में रहकर सबसे घुलते मिलते हैं जैसे ही मौका पाते हैं ये हम सबको ही छलते हैं
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है कल (9/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा। http://charchamanch.blogspot.com
बेहतर बात ! और ,, ज्वलंत मुद्दों पर विचार को कलात्मक रूप देना चुनौतीपूर्ण होता है , संभव हो तो केदार नाथ सिंह जी की कविता 'बनारस' देखिये http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B8_/_%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9
@अमरेन्द्र जी, मासूम जी... बहुत-बहुत धन्यवाद @अमरेन्द्र जी... मैंने भी बनारस को ऐसे ही देखा है... यादें ताज़ा करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.. परन्तु कल जो हुआ, उसके लिए कलम रुक नहीं पाई... @जी, बस उसी दिन के इंतज़ार में हैं...
सही कहा पूजा जी / जब तक हमलोग भारतीय थे / तक तक ठीक थे / जब से इंडियन बने है / हम /आप /पूरा सिस्टम ही बदल गया है / मेरे भी ब्लॉग पर आये / http://babanpandey.blogspot.com
@संगीता जी, आना जी, बबन जी... आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद... @संगीता जी... जी... @बबन जी... INDIAN से मेरा मतलब Indian Mujahideen से था, क्योंकि हम चाहे भारतीय हो जाएँ या INDIAN हमारी भावनाएं अपने देश के लिए वही रहेंगी...
पूजा जी बहुत अच्छी लाइने लिखी! आपने इससे प्रेरित होकर मैंने भी कुछ लाइने लिखी है .... गंगा की पवित्रता को ये क्या समझेंगे, आपसी भाईचारे को ये क्या जानेंगे, सिर्फ जेहाद के नाम पर धमाके करते है, मौत के सौदागर है ,इंसानी जिन्दगी को ये क्या समझेंगे !! मेरे ब्लॉग में ...SMS की दुनिया
पूजा जी, बहुत ही सामयिक एवं मार्मिक रचना. कुछ सिर-फिरे लोगो द्वारा अपने ही लोगों का लहू बहाना अत्यंत दुखद है.अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मरना और अपनी मातृभूमि के नाम को आतंक का पर्याय बनाने की चेष्टा घृणित ही नहीं निंदनीय भी है. सुंदर सन्देश देती रचना.के लिए बधाई.
@अमरजीत जी, राजीव जी, मुकेश जी, भारती जी, सत्यम जी, अक्षिता, दानिश जी, शुशील जी, मनोज जी, वीणा जी, राजेश जी, उस्ताद जी, वंदना जी, बड़ी माँ, काजल जी...आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया... @अमरजीत जी... पंक्तियों के लिए शुक्रिया... @मुकेश जी... indians मैनें IM के लिए लिखा है, न कि भारतवासियों के लिए... धन्यवाद... @राजेश जी... मेरी गलतियाँ मुझे आप लोग नहीं बतायेंगें तो कौन बताएगा??? बहुत-बहुत धन्यवाद...
Indian तो इन हत्यारों ने धोखा देने के लिये लगाया है। ऐसे दानवों का एकमेव उद्देश्य भय और हत्या का अन्तर-राष्ट्रीय मध्य-युगीन साम्राज्य स्थापित करना है।
ReplyDeleteबहुत गंभीर प्रश्न उठती आपकी छोटी कविता..
ReplyDelete.....वर्तमान हालात पर सटीक व्यंग्य
ReplyDeleteज्वलंत और सामयिक विषय पर लिखकर एक क़लमकार की ज़िम्मेदारी का निर्वाह किया है आपने.
ReplyDeleteप्रतिक्रिया स्वरुप अपनी निम्न पंक्तियाँ भी :-
ये दुष्ट हमारे देश में रहकर सबसे घुलते मिलते हैं
जैसे ही मौका पाते हैं ये हम सबको ही छलते हैं
आपकी लेखनी में गजब की धार है।
ReplyDeleteधारदार लेखन्।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (9/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
धिक्कार है।
ReplyDeleteप्रभावशाली कविता .....शुक्रिया
ReplyDelete@स्मार्ट इंडियन, अरुण जी, भैया, कुंवर जी, वंदना जी... बहुत-बहुत शुक्रिया...
ReplyDelete@कुंवर जी... पंक्तियों के लिए धन्यवाद...
@वंदना जी... शुक्रिया... जरूर, मेरी उपस्थिति जरूर दर्ज होगी...
@प्रवीण जी... किस पर??? Please clear...
ReplyDelete@केवल जी... शुक्रिया...
बहुत ही सटीक चोट उग्रवादियों पर..बहुत प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति..आभार
ReplyDelete@कैलाश जी... शुक्रिया...
ReplyDeleteछोटी और प्रभावशाली कविता
ReplyDeleteआतंकियो पर करारा प्रहार
@दीपक जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteसिर्फ कोशिश की है...
बेहतर बात ! और ,, ज्वलंत मुद्दों पर विचार को कलात्मक रूप देना चुनौतीपूर्ण होता है , संभव हो तो केदार नाथ सिंह जी की कविता 'बनारस' देखिये http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%B8_/_%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति , ना जाने कब बंद होगा बेगुनाहों की जान लेना..
ReplyDelete@अमरेन्द्र जी, मासूम जी... बहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDelete@अमरेन्द्र जी... मैंने भी बनारस को ऐसे ही देखा है...
यादें ताज़ा करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया..
परन्तु कल जो हुआ, उसके लिए कलम रुक नहीं पाई...
@जी, बस उसी दिन के इंतज़ार में हैं...
जो धमाके करते हैं उन पर सद् वचन का असर कहाँ होता है ?
ReplyDeleteमुझे लगता है प्रवीण जी का धिक्कार उन लोगों के लिए है जो धमाके करते हैं ...
bahut dukh hua ......khabar hi aisi thi.....pata nahi kab tak nirdosho ko aise kuchla jayega.........sundar bhav
ReplyDeleteसही कहा पूजा जी /
ReplyDeleteजब तक हमलोग भारतीय थे /
तक तक ठीक थे /
जब से इंडियन बने है /
हम /आप /पूरा सिस्टम ही बदल गया है /
मेरे भी ब्लॉग पर आये /
http://babanpandey.blogspot.com
@संगीता जी, आना जी, बबन जी... आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete@संगीता जी... जी...
@बबन जी... INDIAN से मेरा मतलब Indian Mujahideen से था, क्योंकि हम चाहे भारतीय हो जाएँ या INDIAN हमारी भावनाएं अपने देश के लिए वही रहेंगी...
पूजा जी.....
ReplyDeleteदर्द महसूस करे जो, दूरों का, वही तो इंसान है. आदमी तो हर जगह है....इंसान की कमी है.
यूनान , मिस्र, रोमाँ, सब मिट गए जहाँ से,
कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी....
बधाई...
पूजा जी बहुत अच्छी लाइने लिखी! आपने इससे प्रेरित होकर मैंने भी कुछ लाइने लिखी है ....
ReplyDeleteगंगा की पवित्रता को ये क्या समझेंगे,
आपसी भाईचारे को ये क्या जानेंगे,
सिर्फ जेहाद के नाम पर धमाके करते है,
मौत के सौदागर है ,इंसानी जिन्दगी को ये क्या समझेंगे !!
मेरे ब्लॉग में ...SMS की दुनिया
पूजा जी,
ReplyDeleteबहुत ही सामयिक एवं मार्मिक रचना.
कुछ सिर-फिरे लोगो द्वारा अपने ही लोगों का लहू बहाना अत्यंत दुखद है.अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मरना और अपनी मातृभूमि के नाम को
आतंक का पर्याय बनाने की चेष्टा घृणित ही नहीं निंदनीय भी है.
सुंदर सन्देश देती रचना.के लिए बधाई.
koshish achchhi hai......
ReplyDeletekuchh panktiyon me hi aapne apnee baat
sahi tarike se rakhi....
kash ham sabhi TRUE INDIANS ban saken
Bahut hi sunder abhibyakti
ReplyDeleteHardik Badhai
bhut hi sahi kha aapne......kya bhaw hai kavita ke bilkul sajiv
ReplyDeleteआप तो बहुत सुन्दर लिखती हैं...बधाई.
ReplyDelete'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.
काव्य में प्रश्न
ReplyDeleteझकझोरता है ....
लेकिन एक बात तय है,,,
इंसानियत
हमेशा हमेशा ज़िंदा रहेगी ....
देखन में छोटी लगे, वार करे गंभीर.
ReplyDeleteबहुत बढिया प्रस्तुति...
मेरी नई पोस्ट "भ्रष्टाचार पर सशक्त प्रहार" पर आपके सार्थक विचारों की प्रतिक्षा रहेगी.
www.najariya.blogspot.com (नजरिया)
कम शब्दों में प्रभावकारी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबात छोटी किंतु असरदार होनी चाहिए और वो असर है आपकी रचना में ...बहुत सुंदर...
ReplyDeletehttp://veenakesur.blogspot.com/
पूजा अन्यथा न लें। पर आपकी यह पोस्ट बहुत मासूमियत भरी है। ऐसी पोस्ट से बचने का प्रयत्न करें। शुभकामनाएं।
ReplyDelete2/10
ReplyDeleteसुन्दर विचार
रचना बेहद हल्की है
कटाक्ष करती हुई कविता, और अमरेन्द्र जी ने बनारस से केदारनाथ जी की याद दिला दी. सच में उनको पढ़ना एक अलग सा अनुभव देता है.
ReplyDeleteghaaw kiya gambheer
ReplyDeleteजय हो
ReplyDelete@अमरजीत जी, राजीव जी, मुकेश जी, भारती जी, सत्यम जी, अक्षिता, दानिश जी, शुशील जी, मनोज जी, वीणा जी, राजेश जी, उस्ताद जी, वंदना जी, बड़ी माँ, काजल जी...आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया...
ReplyDelete@अमरजीत जी... पंक्तियों के लिए शुक्रिया...
@मुकेश जी... indians मैनें IM के लिए लिखा है, न कि भारतवासियों के लिए... धन्यवाद...
@राजेश जी... मेरी गलतियाँ मुझे आप लोग नहीं बतायेंगें तो कौन बताएगा???
बहुत-बहुत धन्यवाद...
हम तो बनारस वासी होकर अभिशप्त स्तब्ध हैं -बहुत आभार !
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