पिछले कुछ दिन बड़े अजीब बीते...
बहुत सारे परदे उठे,
बहुतों की सच्चाई सामने आई...
पहले तो यकीन नहीं हुआ,
कि ये वाकई सच है...
दिमाग ने मान भी लिया...
पर दिल को समझाना जरा मुश्किल था...
धीर-धीरे वो भी समझ गया
लगा जैसे किसी जोर का तमाचा मार
नींद से जगा दिया दिया हो मुझे...
और एक सुन्दर-सा ख्वाब
जो देख रही थी मैं
उसे तोड़ दिया हो
चकनाचूर कर दिया...
तिमिर से निकाल मुझे
अचानक
दोपहर कि चिचालती धुप में ला खड़ा किया हो...
आँखे भी मिलमिला गयीं थीं...
पर धीर-धीरे उन्होंने भी
साचा के उजाले को,
उसकी तपन को अपना लिया...
सबसे बड़े आश्चर्य की बात
न जाने कहाँ से मुझमें
ये सहनशक्ति आ गयी
कि मैं उन चेहरों को
देख मज़े ले रही थी
मुस्कुरा रही थी
मुझे खुद नहीं पता कि
मेरा comfort-zone
अचानक इतना बड़ा कैसे हो गया...
पर...
जो हुआ
बहुत खूब हुआ
अच्छा हुआ...
मुझे इस यथार्थ को जाने का संयोग प्राप्त हुआ...
उन सभी चेहरों को
उन मुखौटों को शुक्रिया...
अच्छा हुआ न तभी तो कहते है जब जागो तभी सवेरा
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ReplyDeleteएक बेहतरीन कविता के साथ पुन: आगमन पर आपका हार्दिक स्वागत है.
ReplyDeletethank you so much Bhaai...
ReplyDeleteबातों का सच अपने से कहीं अधिक तथ्य लेकर आता है।
ReplyDeleteAre wah! Kya khoob likha hai! Sach ko apna lenekee bhee himmat chahiye!
ReplyDeleteपूजा जी
ReplyDeleteसदर प्रणाम ....
आपकी कविता में यथार्थ पूरी तरह अभिव्यक्त हुआ है .....सच कहूँ तो आपकी कविता गजब ढा रही है ...शुभकामनायें
अच्छा हुआ जो मुखौटों के पीछे छिपा असली चेहरा आपने देख लिया.आज कल ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो एक के ऊपर एक न जाने कितने मुखोटों के पीछे असली चेहरा छिपाए रहते हैं.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा ये कविता पढ़ कर.
सादर
दिमाग ने मान लिया ...दिल को समझाना मुश्किल ....एक तर्क से प्यार करता है तो दूसरा संवेदना से ....तो अंतर तो होगा ही ....बहुत बढ़िया ...शुक्रिया
ReplyDeleteसच से रु-ब-रु हो कर ऐसा ही लगता है
ReplyDelete@प्रवीण जी, क्षम जी, केवल जी, यशवंत जी, संगीता जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete@प्रवीण जी... जी सही है...
@क्षमा जी... जी, पर हिमात अपने आप आ ही जाती है...
@केवल जी... नमस्कार...
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया...
जी अंतर तो होता ही है... पर अंतर ख़त्म भी हो जाते है...
@यशवंत जी... जी सही है
जहाँ देखिये ऐसे लोग मिल जाते हैं...
@संगीता जी... जी...
पूजा जी !
ReplyDeleteकिसी शायर ने क्या खूब कहा है की ---
हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी ,
जिसको भी देखना हो सौ बार देखिये ...
सुंदर अभ्व्यक्ति ......आभार .
शुरू में होती है तकलीफ
ReplyDeleteअन्दर झनाक से कुछ टूटा है
पर भ्रम के परदे का हटना
एक सुकून भी देता है ...
'bazaron se kai mukhaute khareed lane ke din hain,
ReplyDeleteasli chehra kabhi na kholen kuchh na kahen to achha hai.
mukaute ke andar jhank liya to sachchaai samne aa gayee.
yatharth ki sundar abhivyakti.
सच ऐसा ही होता है मगर साहस से अमन करने वाले कभी नहीं हारते
ReplyDeleteसच का तमाचा
ReplyDeleteआह ! जेहन में बैठ जाता है
पर आँखें खोल जाता है ...
काबिलेतारीफ रचना
Hippocrates par karara prahar hai yah kavita... sundar kavita..
ReplyDeleteबहुत सुन्दरता से व्यक्त एक - एक शब्द ....बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteतुम्हारी क़लम तुम्हारे निडर और साहसी होने का प्रमाण है.तुम्हारी साफ़गोई और साहस के कारण मैं पहले एक बार अपने कमेन्ट में कह चुका हूँ कि जीवन में कोई तुम्हें धोखा नहीं दे सकता. बस तुम अपनी इस सोंच और इस जज़्बे को बरकरार रखना पूजा बेटा. जीवन में चाहे जितने उतार-चढ़ाव आयें,अपनी वर्तमान सोंच से कोई समझौता न करना.सफलता तुम्हारे क़दमों में होगी.
ReplyDeleteतुम्हारी सोंच और तुम्हारी क़लम में बहुत दम है.
पूजा जी एकबार फिर एक सुंदर रचना.जब मन में किसी चीज या व्यक्ति का सकारात्मक पहलू बसा हो और उदघाटित होनेवाला सच उसके सर्वथा विपरीत हो तो ठीक वैसा ही होता है जैसा आपने प्रथम पैरा में लिखा है.दिमाग तो मान लेता हैं क्योंकि reasoning के सहारे अपने-आप को समझा लेता है,पर मन का कोई क्या करे जो टूटने के कगार पर पहुँच जाता है.बेहद खूबसूरती से मन की परतों को खोलती रचना के लिए बधाई.
ReplyDeletepoojaji behad sundar abhivyakti...hardik vadhayi!!!
ReplyDeletesundar rachna............
ReplyDelete@भाकुनी जी, बड़ी माँ, सुरेन्द्र जी, वंदना जी, सुमन जी, अरुण जी, सदा जी, कुंवर जी, राजिव जी, अंकुर जी... आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete@भाकुनी जी... शेर के बहुत-बहुत धन्यवाद...
@बड़ी माँ... पंक्तियों के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...
aise hi mukhauto ke peeche chhupa hua hai sabka chehara...ye kab hatega koi nahi jaanta lekin ek din hatega jaroor ye vishvaas hai....
ReplyDelete"Dil ko samjhana mushkil tha...."
ReplyDeletewah kya baat kahi pooja ji.
बहुत अच्छी रचना
ReplyDeletemai chaahataa bhi yahee thaa wo bewafaa nikale,
ReplyDeleteuse samajhane kaa koi to silsilaa nikale.
bebaak rachnaa. badhaee.
@रोहित जी, विक्रम, विक्की जी, वीणा जी, उन्कवि जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDelete@उन्कवि जी... शुक्रिया... जी चाहत तो ऐसी ही थी...
Merry Christmas
ReplyDeletehope this christmas will bring happiness for you and your family.
Lyrics Mantra
आज के युग की सच्चाई का बखूबी वर्णन किया है आपने इस कविता में...शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसच्चाई को वयां करती हुई रचना , बधाई
ReplyDeleteजबाब नहीं निसंदेह ।
ReplyDeleteयह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
धन्यवाद ।
@Harman, महेंद्र जी, सुनील जी, राजीव जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteबहुत अच्छा कविता है ।
ReplyDeleteधन्यवाद ।
"समस हिंदी" ब्लॉग की तरफ से सभी मित्रो और पाठको को
ReplyDelete"मेर्री क्रिसमस" की बहुत बहुत शुभकामनाये !
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( ‘o’ ) ,***
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Roses 4 u…
MERRY CHRISTMAS to U…
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
Bahut Khubsurat Abhivyakti.
ReplyDeleteकितने मुखौटों को हटते हुए देख पाओगी. यथार्थ का जानना अच्छी बात है. मगर उसे सोचकर परेशां होने से अच्छा है कि जब जो जैसा नज़र आये उसे उस समय की सच्चाई मान लेनी चाहिये. वरना सच झूठ के मायने तो बदलते रहते है. तुम्हारी लिखावट तुम्हारे अंतर्मन को बखूबी दिखला देता है. एक तरह से कहते है कि लिख लेने से बातें उतनी कचोटती नहीं है. बहुत अच्छा लिखा है तुमने.
ReplyDelete@smshindi, muskan, वंदना... बहुत-बहुत शुक्रिया...
ReplyDelete@वंदना जी... ह्म्म्म, शायद इसीलिए अब झुंझलाहट नहीं है, गुस्सा नहीं है... कहते हैं न कि जो होता है अच्छे के लिए होता है... बस हो गया... thank you again...
कड़वाहट से अधिक दुख देती है
ReplyDeleteअकुलाहट
अनजाने भय की आहट
इससे जो बच पायें
तो देवता न बन जायें