मेरी अपनी-सी तमन्ना...

धुंधली-सी रोशनी में
जागी-सी तमन्ना
रात की तन्हाई में
एक हमदम -सी तमन्ना
उमड़ती भावनाओं को किसी मंजिल की तलाश थी शायद...
चारों और पसरे सन्नाटे में
एक सिसकी-सी तमन्ना

सुलझे बालों के बीच
उलझी-सी तमन्ना
सजे-संवरे बिस्तर पर
बिखरी-सी तमन्ना
बहते दर्द को किसी मंजिल की थी शायद...
सूखी तकिया के किसी कोने में
गीली-सी तमन्ना

इस भीड़ के किसी कोने में
वो शांत-सी तमन्ना
कांच के टुकड़ों से भरी पोटली में
नाज़ुक ख्वाब-सी तमन्ना
भटकती आँखों को किसी मंजिल की तलाश थी शायद...
अनजानों के हुजूम में
मेरी अपनी-सी तमन्ना

अनकही बातों में
इशारों-सी तमन्ना
अनछुई चाहतों में
अहसासों-सी तमन्ना
बिखरते मोतियों को किसी मजिल तलाश थी शायद...
कुछ पूरी, कुछ अधूरी कविता में
लफ़्ज़ों-सी तमन्ना...

5 comments:

  1. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

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  2. @sanjay ji... बहुत-बहुत धन्यवाद
    आपको भी स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं...

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  3. में समझ सकता हूँ आपके शब्द और उसमें निहित सन्देश को. में आशा करता हूँ आपके कलम इसे तरह आपकी भावनाओ को शब्दों में तब्दील करने में आपके हमेशा मदद करे और आप इस जग की हर उचाईयों को छुए. भगवान् आप पर खुशियों एंड दुओं की बारिश करे और हमेशा करता रहे.

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  4. Har taraf har jagah beshumar aadmi
    Phir bhi tanhaiyon ka shikar aadmi

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  5. @अंकुर... जी आपके प्रोत्साहन एवं दुअओं के लिए सहृदय धन्यवाद... आशा करती हूँ की आपकी दुआएं हमेशा यूँही साथ रहेंगी..
    @Sanjeev ji... je bas itani si baat na jane q samajh hi nahi pata aadamee...

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