उफ़ ये बारिश... वो भी इतनी तेज़...
ये सर्द हवाएँऔर उस पर पानी की फुहार
न जाने क्यों है इतनी गर्जन
शायद हमसे कुछ कहना चाहता है ये मौसम
ये मौसम,
बढाताहै मेरी तन्हाई
कातिल उसकी याद, फ़िर खंजर ये जुदाई
पिघलना चाहती हूँ उसकी बांहों में
पढ़ना चाहती हूँ अपनी चाहत को उसकी आँखों में...
क्या होगा वो भी यूँ ही मेरे इंतज़ार में
"हम मिलेंगे कभी" इसी ऐतबार में...
न जाने कैसा होगा वो, कहाँ होगा?
कैसी होंगी उसकी आँखें, उसकी बाँहें?
ये सपना सच होगा या रहेगा सिर्फ धोखा
न जाने कब एक होंगी हमारी जुदा रांहें...
aapka sapna jaroor sach hoga acchi kavita hai
ReplyDeletetanhai me barish madhur aur antaranga smrition ko bahut kuredti hai aapke sapne sach ho lekin intejar ki bhi ek alag anand aur alag anubhuti hai.
ReplyDeleteकुछ शीतल सी ताजगी का अहसास करा गई आपकी रचना।
ReplyDelete@Kuldeep ji, Snjeev ji, Sanjay ji... बहुत-बहुत धन्यवाद...
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