अगले बरस भेज भैया को बाबुल
सावन में लीजो बुलाय रे...
लौतेम्गी जब मेरे बचपन की सखियाँ,
दीजो संदेसा बजाय रे...
फिल्म:- बंदिनी {1963}
गायिका:- आशा भोंसले
संगीत निर्देशक:- एस. डी. बर्मन
{गीत सुननें के लिए गीत के बोलों को क्लिक करें}
मेरे लिए तो सावन भी आएगा, पापा बुलवा भी संदेस भी भेजवा देंगे और बुलवा भी लेंगे, पर मै अपने बचपन की सखियाँ कहाँ से लाऊँगी? क्योंकी वो सब तो कहीं खो गयीं हैं। मेरे पापा की सरकारी नौकरी है, और इसीलिए हम एक जगह से दूसरी जगह और तबादलों का सिलसिला यूँही चलता रहता है। पर आज यह गाना सुनकर अचानक सारी सहेलियों के चहरे आँखों के सामने आ गए, सबके नाम यूँही याद करने लगी। बड़ी अजीब-सी बात है कि कईयों के नाम भी नहीं याद। न जाने वो कैसी होंगी? उन्हें मै याद भी होऊँगी या नहीं?
खैर... हाँ पर इस तबादले के सिलसिलों में एक चीज़ अच्छी है कि आपको दोस्त बहुत सारे और बहुत प्रकार के मिलते हैं। ये भी अपना अलग ही महत्त्वपूर्ण अनुभव है। परन्तु, आज के इस तकनीकी युग में इतना तो है कि किसी को भी खोजना इतना मुश्किल नहीं है, जैसे:- ऑरकुट या फेसबुक के ज़रिये आप बहुत सारे ओगों को खोज भी सकते हैं और नए लोगों से जुड़ भी सकते हैं, पर क्या है न, कि सभी लोग नहीं मिलते... और जो नहीं मिलते उनके मिलने की सिर्फ आस लगाई जा सकती है।
तो मै भी इसी आस में हूँ कि हो सकता है आज नहीं तो कल मै भी अपने बचपन के मीतों से मिलूंगी... बस जब तक नहीं मिल रही हूँ तब तक यहीं से उनकी खुशीयों की कामना कर सकती हूँ...
गीत और गीत के बहाने आपका यादों का यह अंदाज बहुत अच्छा लगा। बात आपकी सही है कि इस तकनीकी युग में कुछ तो इस तरह खोजे ही जा सकते हैं। मैंने भी अपने ब्लाग पर छह दोस्तों को याद किया। पर अभी तक एक भी नहीं मिला।
ReplyDeleteआपकी सखियां आपको जरूर मिलें,यही कामना है।
Pooja ji....I wish you all the best. May God Fulfill all your wishes.
ReplyDeleteApko apki sabhi Sakhiyan mil jaaye yahi hain meri duaayen.
@Rajesh ji and Virendra ji... hope and wish the same... thank you so much...
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