कोशिशों को पूरा होते देखने कि ख्वाइश थी शायद...

उन्नीदीं आँखों में जागते सपने संजोने की कोशिश थी शायद,
पंखे को चलता देख, थक कर सो जाने की कोशिश थी शायद,
मेरी करवटों से शायद ये बिस्तर भी थककर चूर हो गया...
बार-बार यूँ घड़ी वक़्त देखना...
आज पूर्व से किरणों को जल्दी बुलाने की कोशिश थी शायद...

टी.व़ी. के चैनल्स यूँ बदलने की वजह,
कोई आवाज़ सुनने की ख्वाइश थी शायद
कागज़ पर यूँ कलम चलने की वजह,
दिल की हर बात लिख देने की ख्वाइश थी शायद
कुछ खास ही होगा
जिसने मेरी नींद को यूँ मुझसे दूर कर दिया
ऐसे ही ढेर सवालों को लिखते-लिखते
ज़वाब खोज लेने की ख्वाइश थी शायद...

7 comments:

  1. एक अकेलापन और ख्वाहिश ... बहुत सहज , बहुत बढ़िया

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  2. Unknown and unheard anxieties haunt us and loneliness only make things worse.

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  3. @rashmi ji, Sanjeev ji and Vicky... thank you so much...

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  4. @sanu n aditya ji... thank you so much...

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