वो सुबह की एक प्याली चाय....

हमारे देश के ; न कहा जाये तो; लग-भग 80% लोगों के दिन कि शुरुआत एक जैसी ही होती है, चाय से... रोज़ सुबह लग-भग हर घर का हर बड़ा, आँख खुलने के बाद यही चिल्लाता सुने देता है... "अरे, कोई एक कप चाय दे दो..." कहें तो... कहानी कहानी घर की...
हाँ, पर पसंद अलग-अलग हो सकती है लोगों की... जैसे... कोई काली चाय पीता है, तो किसी को ये दीद के साथ पसंद है... किसी-किसी को तो खालिस दूध की चाय ही अच्छी लगती है और किसी-किसी को ग्रीन-टी... किसी को कम शक्कर, किसी को ठीक-थक, किसी को ज्यादा तो किसी बिना शक्कर की चाय चाहिए...किसी को अदरक वाली, किसी को पुदीने वाली, किसी को तुलसी वाली, तो किसी को मस्सले वाली... किसी को हल्की तो किसी को कड़क... ऐसे ही किसी को ये सुबह वाली चाय की प्याली बिस्किट के साथ चाहिए तो किसी को ब्रेड के साथ, तो किसी को सिर्फ चाय की प्याली... किसी को वो कप में चाहिए तो किसी को ग्लास में... अपना-अपना स्वाद, अपना-अपना अंदाज़...
एक मुसीबत और... कुछ लोगों को सुबह उठ कर चाय बनाने में बहुत आलस आता है... मुझे ये बात इसलिए पता है क्योंकि यदि मुझे दिनभर कभी, किसी काम के लिए आलस आता है तो... सुबह उठ कर चाय बनाना... और वो भी अपने लिए... खैर...
और हाँ... कुछ को तो उस प्याली के साथ अखबार जरूर चाहिए, वरना उन्हें उस प्याली में स्वाद समझ नहीं आता...
कहने को तो वो सिर्फ एक प्याली चाय ही होती है, ज्यादा कोई खास नहीं होती, पर सही मायनों में कितनी जरूरी होती है वो... बामुश्किल, ५ मिनट ही तो लगते हैं उस एक प्याली को ख़त्म करते, पर तब भी कितना सारा काम सोच लेते हैं हम उस ५ मिनट में... सारे दिन का लेखा-जोखा... जो जरूरी काम हैं... कहाँ जाना है? किससे मिलना है? किसे फ़ोन करना है? क्या-क्या पेंडिंग काम हैं जो निपटाना है... लगभग पूरे दिन का टाइम-टेबल सेट हो जाता है...
पर कभी-कभी उस प्याली पर गुस्सा भी आता है... जब कोई अच्छा सपना देख रहे हो, या जब रात में देर से सोये हो, या बहुत थक गए हो... या ठंडी-सी सुबह में अच्छी सी नींद... और एक अचानक से एक आवाज़ कान में... "चलो, उठो... चाय पी लो, सुबह हो गयी है" ... "हे! भगवान्... ये चाय का बुलावा भी अभी ही आना था?" ऐसा ही लगता है न... सारे सपने का, अच्छी-सी उस नींद का, उस थकान का... सबका कचरा... और उठो उनींदी-सी आँखों में, बेमन... और हाथ में वही एक प्याली चाय...
यह भी एक विडंबना ही है... जो चीज़ कभी-कभी हमें ओहोट अच्छी लगती है, हमारी ज़रुरत होती है, हमारे दिन की शुरुआत होती है... वही कभी-कभी इतनी ख़राब लगती है की यदि उसे बनाने वाला मिल जाये तो बस, सारा गुस्सा उस पर चीख कर या चिल्ला कर निकल दो... कि... "यदि, तुम्हे बनाना ही था, तो कुछ और बना देते... और चलो बनाया भी तो क्या जरूरी है कि इसे सुहा-सबह ही पिया जाये?"
पर कुछ भी कहिये... होती बड़ी ही काम की और मजेदार है... वो सुबह की एक प्याली चाय...
तो बस मज़े लीजिये उस प्याली के... और उस प्याली वाली चाय के...

9 comments:

  1. चाय को लेकर अच्छी पोस्ट है

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  2. चाय बिना तो सुबह सूना सूना सा लगता है..ज़रूरत बन गई है जी अब तो ये..बढ़िया आलेख

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  3. अरे चाय बिना चैन कहां रे

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  4. सुन्दर आलेख.

    पाँच बजे हैं और अब तो चाय की तलब हो ही आयी.

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  5. Ab to Chay -way hi peeni padegi. acchi post

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  6. बेहतरीन आलेख...

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  7. hmmm.. Gud mrng... Bahut thak gaya hun... Ek cup chai to dena pooja :-)
    Very nice... Good selection of words blended wth strong feelings making it having very good aroma of understandabilty and presented wth cruncy and crispy biscuits like thoughts...in stong u made a gud tea wth biscuits.. Ab to chai banade.. :-)

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  8. @jandunia, vinod ji, versha ji, m verma ji, tarekshwar ji, uadn tashtari, ankur, raveendra ji... bahut-bahut dhanyawaad...

    @ankur... haan haan zaroor, ruko, tumhe acchhe se chai pilaungi...

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