याद है, बचपन में... चाहे गर्मी की छुट्टियों में या नाना के घर में कोई अवसर... बस पहुँच गए हम अपने ननिहाल... दिन-भर भाई-बहनों के साथ मस्ती, इधर दौड़ना उधर भागना, मौसी लोगों से ढेर सारी बातें करना, सब अपने-अपने स्कूल की, शहर की दोस्तों की बातें एक-दूसरे को बताना, नाना-मामा लोगों का वो मेहमाननवाजी करना, नानी का पूछना कि "क्या कहोगे? क्या बना दें?"... किसी भी माँ को ये टेंशन नहीं होता था कि उनका बच्चा कहाँ है, किसके साथ है, खाना खाया, नहीं खाया... बस पूरा का पूरा दिन कैसे कट जाता था, समझ ही नहीं आता था... और फ़िर आती थी रात, दिन-भर की दोस्ती रात में किसी के काम नहीं आती थी क्योंकि रात में तो नानी के बगल में कौन सोएगा, इस बात पर तो कोई भी बच्चा समझौता करने को तैयार ही नहीं होता था... सबको बस उनके बगल में ही सोना होता था, और हो भी क्यों न, एक नानी का वो ममत्व से भरा आँचल और उनकी वो कहानियाँ... बनी बात है कि जो बाजू में सोयेगा वो नानी के ज्यादा करीब रहेगा और उसे कहानी सबसे अच्छे से सुनाई देगी... यदि सच कहूँ नानी के बाजू में लेटकर कहानी सुनने का मज़ा कुछ और ही होता है... आज भी उस अहसास को भूला नहीं है ये मन...
वो कहानियाँ, जिनमे कभी एक रजा होता, उसकी तीन-चार रानियाँ होतीं, पर किसी को भी औलाद नहीं थी, फ़िर कोई संत-ग्यानी यज्ञ करते हैं और रजा को दक्षिण के जंगलों में जाना होता और वहां लगे किसी आम के पेड़ से 12 आमों का गुच्छा एक ही निशाने में तोडना होता और रानियों को लाकर देना होता, और उनमें से छोटी रानी वो आम मक्खन के घड़े में दाल देती और उसका बेटा उसी घड़े में जन्म लेता, बड़ा होता....................... या फ़िर एक राजकुमारी होती, जो रोती तो आंसू कि जगह मोती गिरते और हंसती तो फूल झड़ते, उसे एक दुष्ट जादूगर रजा अपने साथ ले जाता, फ़िर उसी रजा के महल के दासों में से एक दास, जिसे उस राजकुमारी पर दया आती और धीरे-धीरे वो उससे प्यार करने लगता,और उसे बचाता............... या फ़िर एक रजा के चार बेटे रहते, सबकी शादी हो जाती सिवाय छोटे राजकुमार के, वो जिससे शादी करना चाहते उसके महल तक पहुँचने का रास्ता जानने के लिए एक ऋषि-मुनि की सेवा करता और जब व्याह कर उसे घर ले जाने लगता तो बीच में एक भिखारिन उस राजकुमारी को कुँए में धकेल देती, और फ़िर वो राजकुमारी उस कुँए में कमल का फूल बनकर खिलती पर उसे कोई तोड़ नहीं पता, फ़िर वो कमल का फूल लोगों को कुछ संकेत देता, कोई पहेली बोलता जिसका जवाब वो राजकुमार होता और वो जैसे ही कमल का फूल तोड़ने के लिए आता, कमल का फूल अपने-आप कुँए से निकक उसके पाँव में आ जाता, फ़िर वो राजकुमार उसे घर ले जाता और फ़िर वो कमल का फूल कुछ कहता जिसे भिखारिन समझ जाती और उसे तोड़कर बागीचे में फेंक आती और वो कमल का फूल चने की भाजी बनाकर उग जाता............... या फ़िर कोई मूर्ख इंसान अपने ससुराल जा रहा होता तो उसकी माँ समझाती कि बेटा नाक की सिधाई में जाना और जहाँ रात हो वहीँ सो जाना, वो आदमी अपने ससुराल के पिछवाड़े तो पहुँच जाता है पर माँ ने कहा था इसीलिए वहीँ सो जाता है और ससुराल की सारी बातें सुन लेता है, दूसरे दिन ससुराल जाकर बिलकुल जानकार बन जाता है और पूरे शहर में "जानकार पांड़े" के नाम से मशहूर हो जाता है, फ़िर उससे मिलने लोग आने लगते हैं, भाग्य कुछ ऐसा साथ भी देता है कि उन्हें सब पहले से पता होता है, फ़िर रानी कि कोई चीज़ चोरी हो जाती है और रजा जानकार को बुलातें हैं, और इस बार जानकार को कुछ पता नहीं होता.................... और भी न जाने कितनी कहानियाँ... बच्चे तो बच्चे, बड़े भैया-दीदी भी आकर बैठ जाया करते थे इन कहानियों को सुनने, और कई बार तो कुछ लोग सुनते-सुनते सो जाते और दूसरे दिन किसी और से पूछते, और यदि धोखे से वो बच्चा सो जाता जिसकी बारी नानी के पास सोने की होती तब तो पूरी-पूरी सौदेबाजी होती थी, कि नानी के पास सोने दोगे तो बताएँगे... आज सोचो तो हंसी आती है, कि क्या-क्या नहीं किया नानी के पास सोने के लिए... और हाँ, यदि कभी ऐसा मौका आया कि सिर्फ हम लोग नानी के घर गए हैं तब तो शेर होते थे, और दूसरों को फ़ोन या मिलने पर बताते थे कि नानी ने कौन सी नयी कहानी सुनाई... पर कभी-कभी हम भी पहाड़ के नीचे आ जाते थे...
पर सच, कितना अच्छा लगता था, नानी सुनती जाती और हम सुनते रहते और उसे अपने ही रंगों से सजाते रहते... रजा कैसा दिखता होगा, रानिओ के कपडे जेवर, उसका बड़ा सा महल, राकुमारी कैसी होगी जिसके आँखों से मोती गिरते होंगे, बोलता हाउ कमल कैसा होगा, कढ़ाही पर फुदकती बोलती चने की भाजी कैसी दिखती होगी... हर किसी की अपनी सोच, अपने रंग और अपना आकार... कभी-कभी तो हम एक-दूसरे को चिढाने के लिए दुष्ट रजा के नाम से बुलाते और यहाँ तक कि "जानकार पांड़े" तो आजतक सबकी जुबां में हैं... वो सब भी तो एक तरह का एनीमेशन ही होता था... कभी कोई कमल बोलता नहीं, पर उन कहानियों में बोलता था... ये भी एक तरह का एनीमेशन ही हुआ... आजकल की फ़िल्में, अधिकतर, एनिमेटेड ही तो होती हैं... और पसंद भी वही की जातीं हैं... जहाँ शेर इंग्लिश बोलता है, आदमी हवा में उड़ते हैं... हनुमान, रिटर्न ऑफ़ हनुमान, अर्जुन, नीमो, हम हैं लाजवाब, बैटमैन, स्पाइडरमैन, अवतार, कोई मिल गया... न जाने कितनी ससरी फिल्में... कुछ पूरी एनिमेटेड और कुछ में इस तकनीक का इस्तेमाल...
आख़िर, एनीमेशन है क्या? एक तरह का प्रकाशीय भ्रम जो 2-D या 3-D आकृतियों से तैयार किया जाता है, और उसे चलचित्र के रूप में बड़ी स्क्रीन में दिखाया जाता है... वो सब कल्पना से परिपूर्ण होता है और सत्य से दूर-दूर तक वास्ता नहीं रखता... परतु यह तकनीक बहुत ही खर्चीली हैं, बहुत लागत आती है... उदहारण के तौर पर, अभी-अभी सुनने में आया कि शाहरुख़ खान अपने घर की छत पर खड़े होकर चिल्ला रहे थे, कि यदि उनकी "Ra.One" फिल्म नहीं चली तो वो सडकों पर आ जायेंगे, वैसे इस फिल्म में तकनीकी तौर पर एनिमेशन्स का इस्तेमाल किया गया है... इस बात में सच्चाई कितनी है पता नहीं पर सुनने को तो यही मिला... सही भी है, पहले 2-D, 3-D इमेजेस बनाना, फ़िर उन्हें एक क्रम से धीरे-धीरे ढालना... वक़्त और पैसा दोनों ही बहुत मात्र में लग जाता है... पर नानी की कहानियों कि लागत कुछ भी नहीं होती थी, और-तो-और उसमें मिलता ही था... नानी की वो ममता जो सिर्फ हमारे हिस्से की होती थी... आख़िर उन्हें भी तो "मूल से ज्यादा सूद प्यारा होता था"...
good...
ReplyDeletethank you Neelima jee
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