बड़े हमें नहीं समझते, हम छोटों को नहीं समझते...
कोई हमें नहीं समझता, हम किसी और को नहीं समझते...
बड़ी आम बातें हैं, बड़ी आम शिकायतें हैं...
अखिय ये बातें, ये शिकायतें क्यों है???
बड़े हमें क्यों नहीं समझते? क्यों वो हमेशा हमें गलत ही समझते हैं? क्यों उन्हें हमारे तरीकों से दिक्कत है? क्यों वो चाहते हैं कि हम हमेशा वो ही करें जो वो चाहते हैं, वैसे ही करें जैसे वो चाहते हैं? छोटों को हमेशा अपने से बड़ों से यही शिकायत होती है. और बड़े, उनके पास भी एक पुलिंदा होता है अपने से छोटों से शिकायतों का. जैसे छोटे हमेशा अपने ही मन की क्यों करते हैं? क्यों उन्हें लगता है कि हम जो कह रहे हैं वो गलत है? क्यों उन्हें हम, हमारे विचार पुराने ज़माने के लगते हैं? उन्हें क्यों लगता है कि सिर्फ उन्हें सबकुछ आता है? वगैरा-वगैरा… अजीब-अजीब सी शिकायतें, अलग-अलग लोगों से शिकायतें. कहीं माँ-बाप को बच्चों से, कहीं बच्चों को माँ-बाप से और, कभी पति को पत्नी से तो कभी पति को , पत्नी से, कभी सम्बन्धियों से, कहीं रिश्ते से कहीं रिश्तेदारों से, और कभी दोस्तों से कभी दुश्मनों से, कभी नेताओं से कभी पड़ोसियों से… हज़ार शिकायतें, और उनके लाख बहाने।
न जाने कहाँ से आती हैं इतनी शिकायतें? क्यों करते हैं हम शिकायतें? जी, वैसे ये भी एक शिकायत ही है।कोई हमें नहीं समझता, हम किसी और को नहीं समझते...
बड़ी आम बातें हैं, बड़ी आम शिकायतें हैं...
अखिय ये बातें, ये शिकायतें क्यों है???
बड़े हमें क्यों नहीं समझते? क्यों वो हमेशा हमें गलत ही समझते हैं? क्यों उन्हें हमारे तरीकों से दिक्कत है? क्यों वो चाहते हैं कि हम हमेशा वो ही करें जो वो चाहते हैं, वैसे ही करें जैसे वो चाहते हैं? छोटों को हमेशा अपने से बड़ों से यही शिकायत होती है. और बड़े, उनके पास भी एक पुलिंदा होता है अपने से छोटों से शिकायतों का. जैसे छोटे हमेशा अपने ही मन की क्यों करते हैं? क्यों उन्हें लगता है कि हम जो कह रहे हैं वो गलत है? क्यों उन्हें हम, हमारे विचार पुराने ज़माने के लगते हैं? उन्हें क्यों लगता है कि सिर्फ उन्हें सबकुछ आता है? वगैरा-वगैरा… अजीब-अजीब सी शिकायतें, अलग-अलग लोगों से शिकायतें. कहीं माँ-बाप को बच्चों से, कहीं बच्चों को माँ-बाप से और, कभी पति को पत्नी से तो कभी पति को , पत्नी से, कभी सम्बन्धियों से, कहीं रिश्ते से कहीं रिश्तेदारों से, और कभी दोस्तों से कभी दुश्मनों से, कभी नेताओं से कभी पड़ोसियों से… हज़ार शिकायतें, और उनके लाख बहाने।
यदि सोचा जाए तो असल में शिकायतें हमारे ही दिल-ओ-दिमाग की उपज होती हैं। और सबसे ज्यादा तब जब हमें असंतोष होता है। जब भी हमें किसी की कोई बात या काम हमारे हिसाब से सही नहीं होता, या हम उससे संतुष्ट नहीं होते तभी ये शिकायत पैदा होती है या हमारा कोई काम या बात किसी को पसंद नहीं आती तो उन्हें हमसे शिकायत हो जाती है। पर जब हमें किसी से शिकायत हो तो हमें सामने वाला गलत नजऱ आता है, परन्तु जब किसी और को हमसे शिकायत होती है तब भी हम सामनेवाले को ही गलत मानते हैं और खुद को सही… है न अजीब-सी बात। बात ये कि हम हमेशा खुद को सही और दूसरे को गलत। शायद ऐसी ही बातें, सोच और धारणा शिकायतों की जन्मदाता हैं। ये भी तो हो सकता है कि हमें किसी से शिकायत किसी गलत-फहमी की वजह से हो और किसी और को हमसे शिकवा हमारे किसी गलत कदम का नतीजा हो।
कितना अच्छा होता यदि हमें किसी से कोई भी शिकायत नहीं होती। किसी को किसी से कोई भी दिक्कत न होती। क्योंकि जब भी कहीं कोई शिकायत होती है तब एक दर्द होता है। कभी उसे जिससे शिकायत की गई हो तो कभी करनेवाले को. बनी बात है जब हम सुनते हैं कि हमारे किसी अपने को हमारी कोई बात अच्छी नहीं लगी तो हमें तकलीफ होती है, ऐसे ही सामनेवाले को भी लगता होगा। हाँ एक और बात होती है, यदि हमसे हमारी शिकायत हमारे सामने, हमारे मुंह पर कर दी जाए तो ठीक भी है, परन्तु जब भी वो किसी और के सामने और हमारे पीठ पीछे के जाए तो बहुत बड़ी गड़बड़ हो जाती है, क्योंकि कभी-कभी वो शिकायत हम तक किसी और ही रूप में पहुँचती है। पर सबसे अच्छा तो तब होता जब न असंतोष होता और न ही इन शिकायतों का बीज पनपता… न गिला न शिकवा… सब हंसते-हंसाते, खिलखिलाते मजे से जिंदगी गुजारते…
तो आज से किसी से कोई गिला-शिकवा-शिकायत मत रखिये, और यदि होती भी है तो जिससे भी शिकायत है उसी से बात करें और उसे जल्द-से-जल्द समाप्त कर दें…
P.S. ये लेख सुरभ सलोनी में 23 अप्रैल को छपा था.
जब इस दुनिया में लोगों को भगवान् से शिकायत हो जाती है तो इंसान क्या चीज़ हैं. वैसे यह सही है कि शिकायत जिस से हो उसी से बात कि जाये . इधर उधर शिकायतें करने वालों का मकसद शिकायत करना नहीं बल्कि बेईज्ज़त करना हुआ करता है.
ReplyDeleteसही बात कही है आलेख मे।
ReplyDelete---
कल 21/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
Pooja,ye shikayaten to sadiyon se chaltee aa rahee hain!
ReplyDeleteशिकायत तो सभी को किसी न किसी से कभी हो जाना स्वाभाविक है,पर उचित यह है कि उसका तुरंत समाधान कर लिया जाए..सुन्दर आलेख
ReplyDeleteशिकायतें हैं तो उमीदें हैं ..और उम्मीद पर ही दुनिया कायम है :)
ReplyDeleteविषय बहुत अच्छा है.थोडा और शोध और चिंतन माँगता है.
Complaint is generally as we feel others are wrong, we are right.
ReplyDeleteपूजा,ये नैसर्गिक है.सड़क पर ट्रकवाला कारवाले को,कारवाला मोटर-साईकिलवाले को ,मोटर-साईकिलवाला साईकिलवाले को दबाने की कोशिश करता है.ये एक उदहारण है ,लेकिन समाज के हर क्षेत्र में ऐसा ही होता है.इसका समाधान आत्म निरीक्षण में निहित है जो आसान नहीं है.अत्यंत विचारणीय विषय को सामने रखने के लिए बधाई
ReplyDeleteVery nice post,written beautifully...
ReplyDeleteVerey meaningful....Thoughtful.....for everyone...
ReplyDeletebadhai ho....
ReplyDeletejai baba banaras......
शिकायत लगता है रक्त बीज है
ReplyDeleteशिकायतें उनसे होती हैं, जिनसे प्यार होता है
ReplyDeleteशिकायत और उम्मीद, इन दोनों का चक्रव्यूह ही संसार बनाता है.
ReplyDeleteरामराम
विचारणीय विषय है.
ReplyDeleteसारगर्भित लेख के लिये आपको हार्दिक बधाई...
ReplyDeleteSometimes it seems that we would not have much to say to each other if it weren't for complaining. What we don't seem to realize is how lucky we are to have the luxury to complain about such trivia. How many of us make our own life miserable by looking for things to complain about? Perhaps time would be better spent looking for things to rejoice about.
ReplyDeleteसही कहा है आपने। सहमत आपके विचारों से।
ReplyDeleteसार्थक लेख ...शिकायत कह ही दी जाएँ तो बेहतर है ..
ReplyDeleteshikayatein to zindagi ka hissa rahengi pooja ji...:)
ReplyDeletevicharniye vishay.saarthak lekh.
ReplyDeleteजब मैं फुर्सत में होता हूँ , पढ़ता हूँ और तहेदिल से इन भावनाओं का शुक्रगुज़ार होता हूँ ....
ReplyDeleteसार्थक आलेख...
ReplyDeleteसादर...
छोटी सी जिंदगी में क्यों शिकवा करें, आपने बिल्कुल सही कहा। हमारी सारी जिंदगी शिकवे-शिकायते में कटती है और हम परेशान रहते हैं।
ReplyDeleteकुछ लोग इस कार्य में पारंगत होने के कारण अपनी जिंदगी संवार लेते हैं एवं दूसरों को परेशान करने में ही उन्हें जिंदगी का असली मजा आता है । बहुत सुंदर ।मेरे पोस्ट पर आकर मेरा भी मनोबल बढाएं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसार्थक आलेख....
ReplyDeleteआप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteइसी तरह आते-जातें रहें... :)
@मासूम अंकल... जी... यही तो बात मेरे समझ के बाहर है, कि हम ऐसा करते ही क्यों हैं...
बहुत-बहुत धन्यवाद... इसी तरह मार्गदर्शन करते रहें...
@यशवंत जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... आने एवं सम्मिलित करने, दोनों के लिए...
@क्षमा जी... जी, पता है... परन्तु क्यों??? खैर रहें भी सिर्फ खुद या जिससे शिकायत है उस तक... न कि पूरी दुनिया क सामने...
बहुत-बहुत धन्यवाद...
@कैलाश अंकल जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... बस यही कहना चाहती थी...
@शिखा जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... कभी-कभी शिकायतें उम्मीद को ख़त्म कर देती हैं... जी जरूर, पूरी कोशिश करूंगी और दोबारा लिखने की कोशिश करूंगी...
@राजेश जी... thank you so much... that's what the main thing is... n also the same with everyone...
@राजीव अंकल जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... जी, एकदम सही... परन्तु हमारी कुछ ख़राब प्रवित्तियां हैं, जिनसे हमें बचना चाहिए... मेरा यही मानना है... विचारो को बाटने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद... इसी तरह मुझे सुधारते रहें... बहुत जरूरी है...
@इंदु जी, भैया, पूर्विया जी... बहुत-बहुत धयवाद...
@babanpandey jee... जी, सही है परन्तु इसमें कुछ modifications की जरूरत है... बहुत-बहुत धन्यवाद...
@अनवर जी... जी... यही तो... बहुत-बहुत धन्यवाद विचारो को इस तरह बाटने के लिए...
@बड़ी माँ... जी, परन्तु कभी-कभी कुछ शिकायते ऐसी होती हैं या इस तरह से की जातीं है कि प्यार को ही सबसे ज्यादा ठेस पहुंचती है...
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद बड़ी माँ... सदैव यूँही मार्गदर्शन की जरूरत रहेगी...
@ताऊ... बहुत-बहुत धन्यवाद... पर कभी-कभी यही शिकायतें हर उम्मीद को ख़त्म कर देतीं हैं...
@बाऊजी... बहुत-बहुत धन्यवाद बाऊजी...
@शरद जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... जी सिर्फ कोशिश की है...
@संजीव जी... thank you so much... that's what I was saying... but sometimes not saying n not complaining creates many problems... its necessary to tell the person about the feelings u have... thank you so much for sharing such nice thoughts...
@मनोज जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... सहमति के लिए...
@संगीता आंटी जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... जी और बेहतर रिश्तों के लिए बेहतर रास्ते अपनाने चाहिए...
@चिंतन जी... thank you so much... जी सही है, परन्तु बस ये ज़िंदगी को ख़राब न करें...
ReplyDelete@राजेश कुमारी जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
@सुमन सिन्हा जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... शुक्रगुज़ार तो मैं हूँ कि आप लोग मुझे अपना वक़्त देते हैं...
@हबीब जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
@मैं और मेरा परिवेश... बहुत-बहुत धन्यवाद... जी बस इसी परेशाने से तो पीछा छुड़ा कर अपनी ज़िंदगी एन्जॉय करनी है...
@प्रेम सरोवर जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... जी, न जाने कैसे कर लेते हैं कुछ लोग ये सब... जी, जरूर...
@मीनाक्षी जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
सार्थक लेख....
ReplyDeleteआप की पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (१०) के मंच पर शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप हमेशा ही इतनी मेहनत और लगन से अच्छा अच्छा लिखते रहें /और हिंदी की सेवा करते रहें यही कामना है /आपका ब्लोगर्स मीट वीकली (१०)के मंच पर आपका स्वागत है /जरुर पधारें /
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