जी... सही है... जो कुछ मैंने पिछले दो-तीन दिनों में पढ़ा, उससे तो यही लगता है की उनके परिवार में किसी को cancer जैसी घातक बीमारी का सामना नहीं करना पड़ा... और इसिये शायद वो इसका दर्द नहीं जानते...
वैसे तो मुझे लगता है कि, ये बीमारी कभी किसी को न हो... दुश्मन को भी नहीं... क्योंकि मैंने इस बीमारी को बहुत करीब से देखा है और अपने दिल के बहुत करीब तीन जन खोये हैं... बब्बा{दादा जी}, नानी और बड़की अम्मा...
बहुत ही दर्द होता है जब आपका कोई अपना आपको छोड़ के चला जाता है... और खासतौर पर जब वो आपकी ज़िंदगी में बहुत ख़ास स्थान रखते हों... दादा-दादी या नाना-नानी का साथ, आशीर्वाद, प्यार-दुलार छोट जाए न, तो सिर्फ यादें और आंसूं रह जाते हैं... I love you all so much... miss you too... :(
खैर... आप लोग सोच रहे होंगें कि आज अचानक ये बातें कहाँ से आ गईं... इतनी पोस्ट्स में मैंने कभी ये बातें नहीं कहीं, और आज अचानक...
जी, अचानक...
जी, अचानक...
हुआ यूं कि, दो दिन नेट-कनेक्शन ख़राब होने के कारन मैं ऑनलाइन नहीं आ पाई, और जब कल आई तो gmail , facebook etc एक्सेस किया... ढेर सारे मेल्स और ढेर सारे notifications ,... सब देख रही थी... तभी नज़र गई सोनिया गांधी जी के ऑपरेशन की खबर की details के बारे में... खासतौर पर "Times of India और economic -times की रिपोर्टिंग पर, क्योंकि ऑपरेशन के लिए बाहर जाने की खबर तो T.V. पर मिल गई थी... जहाँ उन्होंने बताया था कि सोनिया गांधी जी को New York`s Memorial Sloan-Kettering Cancer Center, में एडमिट किया गया है, और एक बहुत ही अच्छे oncologist उनका इलाज करेंगें... इन सब का मतलब तो यही निकला कि उनके cancer -treatment दिया जा रहा है... पहली नज़र में तो यही समझ में आता है... और उसके नीचे ढेर सारे likes और कमेंट्स... न रहें होंगें तब भी करीबन 175 -200 तो पक्के थे... ख़ुशी हुई कि चलो कम-से कम हम अभी भी लोगों की केयर करना जानते हैं... मन हुआ कि पढ़ा जाए कि कैसी शुभकामनाएं दीं हैं लोगों ने, कभी-कभी ऐसे ही कमेंट्स में लोग कुछ बहुत अच्छी बातें सिखा देते हैं... और कमेंट्स पे क्लिक किया... और जो पढ़ा, वाह जी वाह... बहुत खूब... वाकई बहुत कुछ सीख लिया...
कमेंट्स देनेवालों में कुछ महानुभावों ने सोनिया जी के बाहर जाने के कयास लगे थे कि pregnant हैं, उन्हें AIDS हो गया है, कुछ ने शोक जताया था कि वो मर क्यों नहीं जातीं... हाँ कुछ लोगों ने जरूर कहा था "all the luck" "get well soon" पर ऐसे लोगों की संख्या सिर्फ चार या छः थी... बाकी तो सभी एक ही राग गा रहे थे... यहाँ तक कि लडकियां भी... और इनमें से कई लडकियां राहुल गांधी जी पे फ़िदा भी थीं, क्योंकि वो वहां उनके handsome होने के गुणगान कर रहीं थीं...
वाह... मानना पड़ेगा हमें... कितने महान हैं हम सब...
सच मानिये, मैंने सारे कमेंट्स पढ़े, और पढ़ते-पढ़ते रोई भी... हमारे यहाँ किसी को कैंसर होने की खबर भी आती है तो सभी के मुंह से एक ही बात निकलती है "भगवान ये बीमारी दुश्मन को भी न दे"... शायद इसीलिए, क्योंकि हमनें अपने खोये हैं... और न सिर्फ इसी बीमारी के लिए बल्कि कहीं की कोई भी बुरी खबर सुनते हैं तो यही कहते हैं... और माना कि उन्होनें किसी अपने को नहीं खोया,{ भगवान करे कि सभी के अपने सभी के पास रहें पर समय-चक्र का कुछ नहीं किया जा सकता परन्तु कोई इस तरह न जाए} पर क्या किसी के दर्द को समझने के लिए उस दर्द से गुजरना जरूरी है? या संवेदना, भावना नाम की चीज़ें हमारे अन्दर से ख़त्म हो गईं हैं? या हम अन्दूरनी तौर से पाषाण युग में पहुँच गए हैं?
सच... बहुत ही ज्यादा ख़राब लगा...
कुछ ही दिनों में हम अपना स्वतंत्रता-दिवस मानाने वाले हैं... यानी एक और साल आज़ादी के नाम...
वाकई हम कुछ ज्यादा ही आज़ाद हो गए हैं... किसी को कुछ भी बोलने की आज़ादी ही नहीं, बल्कि बुरा, गन्दा, ख़राब और घटिया बोलने में हम पीछे नहीं हटते...
पर क्या हमारे अन्दर से आत्मीयता ख़त्म हो चुकी है?
मन तो हो रहा था कि उन सब को सामने बिठा कर चिल्लाऊं और पूछूं कि क्या यही हमारे संस्कार हैं या यही तालीम मिली है हमें? इन्हीं सब लिए हमें गर्व होता है कि हम भारतीय हैं?
अच्छा चलिए एक बात मान भी लें कि सोनिया जी हमारे भारत की नहीं हैं, मेहमान है, विदेशी महिला हैं... और भी ऐसे ही मिलते-जुलते तथ्य... तो फिर "अथिति देवी भवः" भूल गए या आजकल हम भगवान को भी उल्टा-सीधा बोलने में भी नहीं चूकते... और यदि इस बात को किनारे भी कर दिया जाए, तब तो जिन विदेशी महिलाओं के साथ बलात्कार या ठगी की घटनाओं को अंजाम देने वालों को हमें राष्ट्रीय पुरस्कार देना चाहिए, ब्रवेरी अवार्ड से सम्मानित करना चाहिए, उनके सम्मान में उनके जन्मदिवसों में छुट्टियां घोषित होनी चाहिए...
क्या हो गया है हमें???
ये कहाँ आ गएँ है हम???
या शायद मेरे घरवालों की गलती है जिन्होंने हमें नए और मोडर्न ज़माने का नहीं बनाया... समय के साथ चलना तो सिखाया परन्तु यूं बे-ग़ैरत होना नहीं सिखाया... हमें उन्होंने हमेशा यही सिखाया कि "बेटा, जो तुमसे बड़ा है वो बड़ा है, उसे सम्मान देना ही तुम्हारा कर्तव्य है" कितने पुराने विचारों के हैं ये लोग... और हमें भी वही बना दिया... पर हम खुश हैं क्योंकि आज हमें खुद से नज़रें चुरानी पड़ती, और न ही कभी हमारे घरवालों को हमारी वजह से सर झुकाना पड़ता है... हम पुराने विचारों के ही सही, और दूसरों की तरह कूल" न सही पर सर उठा कर जीते हैं और खुश हैं...
हो सकता है कि आप लोगों में कई लोग मुझसे सहमत न हों... कोई बात नहीं... वो आपके अपने विचार हैं... आप अपनी असहमती बतलाने के लिए आज़ाद हैं... हो सकता है कि मैं कहीं गलत हूँ, सुधार की जरूरत हो तो जरूर बताएं...
बिलकुल सही बात कही आपने। देखिये राजनीतिक मत भिन्नता एक अलग चीज़ है लेकिन सब से ऊपर मानवता है;इससे बड़ी कोई चीज़ नहीं है।
ReplyDeleteआपके एक एक शब्द से पूर्णतः सहमत हूँ।
सादर
मैंने अभी देखा आपके इस समय तक 111 फॉलोअर्स हो चुके हैं। इस शतक की बहुत बहुत बधाई!
ReplyDeleteआप यूं ही लिखती रखिए नयी शिखरों को छूती रहिये।
सादर
तुम्हारी यह पोस्ट और उसके तेवर देखकर अच्छा लगा । कम से कम मैं तो तुम्हारी कही गई बातों से सहमत हूं।
ReplyDeleteye aazaadi nahi patan hai....vaichaarik aur chaaritrik patan......may god bless these sick guys...:)
ReplyDeleteआपकी संवेदनाओं के साथ सहमत हूँ ...
ReplyDeleteलेकिन आज राजनीति में जो हो रहा है तो किसी बात पर भी विश्वास करने का मन नहीं होता .. उनकी बीमारी की खबर क्यों छुपाई गयी ..आनन फानन में क्यों विदेश गयीं ? जब की दो चार दिन पहले ही बंगलादेश के दौरे पर थीं .. कारण कुछ भी रहा हो पर जैसे कमेंट्स आपने बताये वो निश्चय ही शूद्र मानसिकता के प्रतीक हैं ..
यदि हम अच्छा नहीं सोच सकते तो चुप तो रह सकते हैं ..
आपके एक एक शब्द से पूर्णतः सहमत हूँ।
ReplyDeleteआपके ह्रदय की संवेदनशीलता प्रशंसा के लायक है.
ReplyDeleteSahi kahtee ho....aise pashan rhidayee log kaise ho jate hain log?
ReplyDeleteभावनाओं में लिखी गई एक संवेदनशील पोस्ट...संवेदनशील हृदय को प्रकट करती पोस्ट।
ReplyDeleteसर्थक चिंतन, विचारोत्तेजक पोस्ट।
ReplyDeleteमैंने कुछ ही साल पहले पिता को इस बीमारी से तिल-तिल मरते हुए देखा है। आपकी संवेदना समझ सकता हूं। वो भी किसी की मां हैं, इंसान हैं ... ऐसे विचार और शब्द निंदनीय हैं।
aap sabhee ka bahut-bahut shukriya... aap yoon hi sarhate rahiye aur mai aap sabhee kee umeedon mei khara utarne kee koshish kartee rahungee...
ReplyDelete@Yashwant ji... thank you so much... maanavta to gum si ho gayi hai... aur bas aap logo ka pyaar hai jo mujhe yaha tak le aaya...
@Rajesh Uncle ji... thank you so much... :)
@Sangeeta Aunty ji... thank you so much... ji ye baat mere bhee dimaag mein aayi aur maine kuch apno ke beech ye uthai bhee, tab un logon ka kahna tha ki, operation ki date mei hi wo gai hain... aage-peechhe nahi... aur kuch log to unke is step kee tareef bhee karte paaye gaye ki operation ke pahle tak kaam kiya... isi tarah maargdarshan karte rahen...
बहुत प्यारे लेख के लिए आभार पूजा !
ReplyDeleteबदकिस्मती से देश में मानवता का महत्व कम होता जा रहा है ! यह घटना, मिसाल है इन लोगों के पतन की, जो किसी की तकलीफ में हँसते ही नहीं बल्कि दूसरे के अनिष्ट की कामना करते हैं !
शुभकामनायें !
पूजा कि सोंच पे मुझे गर्व है सर उठा के जीने का यह अंदाज़ कि हकीकत मैं सच्ची इज्ज्ज़त है.
ReplyDeleteपूजा कि सोंच पे मुझे गर्व है सर उठा के जीने का यह अंदाज़ ही हकीकत मैं सच्ची इज्ज्ज़त है.
ReplyDeleteपूजा आप की संवेदनशीलता क़ाबिल ए तारीफ़ है ,,शर्म आती है ऐसी मानसिकता पर कि जो दूसरों के दुख को महसूस न कर सके ,,
ReplyDeleteये तो भारतीय संस्कृति का सरासर अपमान है
जहां तक आज़ादी की बात है इस के अर्थ हम क्या समझेंगे हमें तो आज़ादी थाल में सजा कर मिल गई ,,जिन्होंने आज़ादी दिलाई दुख तो उन्होंने झेले अपनों के बिछड़ने का दुख उन्होंने बर्दाश्त किया ,, आज वे जहां भी होंगे शायद पछता रहे होंगे
ख़ुदा करे आप हमेशा ऐसी ही संवेदनशील बनी रहें
विचारणीय बिन्दु है। सोचता हूँ कि हम इतने सम्वेदनाहीन कैसे हो सकते हैं?
ReplyDeleteविचारणीय पोस्ट , संवेदनहीनता हमारे अंदर किस हद तक है इसका उदाहारण ....
ReplyDeleteपूजा,एक ही बात कहूँगा.यह संवेदनहीनता कि पराकाष्ठा है.जैसे-जैसे सुविधा और सम्पन्नता बढ़ी है,वैसे-वैसे जीवन मूल्यों में विपन्नता आई है . इसके लिए हमारी नई पीढ़ी से अधिक हमारी पुरानी पीढ़ी जिम्मेदार है.आज जिन्हें दिशा देनी है वही दिशाहीन है.हाँ संवेदनशील लोगों को अब संस्कार के बीजों के संरक्षण पर अधिक ध्यान देना होगा.आपकी चिंता बहुत जायज है और हमसब इस चिंता में आपके साथ है.आजादी तो बस मात्र औपचारिकता बनकर रह गई है.मैं आपकी भावनाओं की कद्र करता हूँ.
ReplyDeleteभगवान यह बीमारी किसी न मिले।
ReplyDeleteपूजा तुम्हारी संवेदनशीलता और भावनाएं काबिले तारीफ़ है. अच्छा लगा आलेख. शुभकामनायें.
ReplyDeleteहमे तो अभी तक ये नही पता चला था कि बिमारी क्या है उन्हे और आज आपकी पोस्ट से पता चला…………हमारी संस्कृति तो यही कहती है कि दुश्मन के दुख को भी अपना समझना चाहिये । आपकी बात अक्षरक्ष: सही है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपके पास दोस्तो का ख़ज़ाना है,
पर ये दोस्त आपका पुराना है,
इस दोस्त को भुला ना देना कभी,
क्यू की ये दोस्त आपकी दोस्ती का दीवाना है
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/▌*˛˚ღ •˚HAPPY FRIENDSHIP DAY MY FRENDS ˚ ✰* ★
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!!मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये!!
फ्रेंडशिप डे स्पेशल पोस्ट पर आपका स्वागत है!
मित्रता एक वरदान
शुभकामनायें
पूजा जी ! मै आप के विचारों से पूर्णत: सहमत हूँ..अगर हम किसी के लिये अच्छा नहीं सोच सकते तो बूरा भी सोचने का कोई हक नहीं बनता..आप की पोस्ट विचारनीय है...शुभकामनायें...
ReplyDeletevery true....beautifully written...
ReplyDeleteHappy friendship day 2 u Pooja
संवेदनशीलता और भावनाएं ..... अच्छा लगा आलेख...आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है...
ReplyDeleteबहुत सुंदर व संवेदनशील लिखा है आपने,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
जो लोग जीवन और मानव की कद्र नहीं करते उनसे क्या अपेक्षा की जा सकती है ...आपकी पोस्ट तो प्रकाशित होते ही पढ़ ली थी ...लेकिन टिप्पणी करने से पहले सोचा क्या सच में मानव इतना गिर चूका है अपने विचारों से .....???? यह प्रश्न मुझे सालता रहा ... आपके विचों से अक्षरशः सहमत ....!
ReplyDeletepooja ji mene aap ka pura blog pdha mujhe kafi accha lga, u r a good writer. we r starting a new online article based magazine from oct 2011, if u intrested to join us contact on 09720514346
ReplyDeleteaur send a mail on bimal.raturi@uttara-live.com
thanks and regards
Bimal Raturi
Editor
Uttara live
bahut hi sundar
ReplyDeleteआपके तर्कों में दम है...
ReplyDeleteपूजा ..सबसे पहले तो आपको इस बेहतरीन लेखन के लिये बधाई ... सच तो यही है कि आज इंसान ही इंसान का दुश्मन बन बैठा है ..यहां भी बस यही कारण है मैं आपकी बातों से पूर्णत: सहमत हूं ..उनके लिये यही शुभकामनाएं हैं कि वो शीघ्र ही स्वस्थ्य हों नि:सन्देह यह बहुत ही तकलीफ देय है ..आभार ।
ReplyDeleteमेरे ब्लाग पर आने के लिए धन्यवाद...आपकी टिप्पणी दिल को छू गई... इस सार्थक एवं प्रेरक आलेख के लिए आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
इस सारे घटनाक्रम पर "इकलौता" पढ़ने लायक लेख!
ReplyDeleteदुख तो उस समय होता है जब "किसी की बीमारी" का मजाक बनाने वाले अपने आप को "राष्ट्र भक्त","हिन्दूत्व के झंडाबरदार" घोषित करते है।
baht sahi likha hai aaj logo ko sirf dusaro ki kamiya h dikhati hai
ReplyDeleteatithi devo bhav ham to sayad bhul hi gaye hai
apki ye rachna sayad logo ko jagane me safal ho jaye
यकीनन 'इकलौता' पढ़ने लायक लेख...काश इस लेख की भावनाओं को लोग समझें और अमल करने की कोशिश करें..
ReplyDeleteपूजा जी,
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पर आयीं,मुझे बहुत खुशी मिली.
आपकी भावनाएँ,संवेदनाएँ काबिले तारीफ़ हैं,
आदरणीय संगीताजी के विचार से भी सोचने की आवश्यकता है.
राजनीति में क्या होता है, कुछ कहा नहीं जा सकता.
फिर भी ऐसे में चुप रहना ही बेहतर है.
क्यूंकि सोनिया जी की पार्टी काग्रेस चुप है,और जैसा की
अक्सर होता है सोनिया जी की बीमारी से सहानभूति
बटोरना का कोई कार्य भी नहीं हो रहा है.न ही उनके
बारे में कोई बात की जा रही है.मैं तो यही प्रार्थना करूँगा कि
वे जल्द ही स्वस्थ हो अपने देश लौटें.किसी भी अभद्रता के विरुद्ध हूँ मैं.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
आपके सुविचार मुझे प्रेरणा देते हैं.