पिछले दिनों में सबकुछ अल-अलग सा समझ आ रहा है... पता नहीं क्यों, पर कभी-कभी अपनी ही सोच अजीब-सी लगती है... doubt होता है की क्या वाकई मैं ही ऐसा सोच रही हूँ? और यदि हाँ, तो क्यों?
और जो सोच रही हूँ वो सही भी है या नहीं...
खैर...
पिछले दिनों में लन्दन में हो रहे दंगों की खबर ज़ोरों पर है... हालात इतने बिगड़े हुए हैं कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को अपनी छुट्टियां cancel करके वापस आना पड़ा...
यहाँ गलती पुलिस से भी हुई, जब उस बेचारे निर्दोष को गोली मार दी...
चलिए आज नहीं तो कल उनकी हालत सुधर जायेगी... पर मेरी चिंता कुछ और है... कहा जाये तो चिंता का विषय इस बार मैं खुद ही हूँ...
हुआ यूं कि कल जब मैं ये सारी खबरें देख रही थी तो अचानक मेरे मुंह से निकला, "हाँ आज बात खुद पर आई तो दर्द हो रहा है"
मम्मी ने डांट भी दिया कि ऐसा नहीं बोलते...
पर तब मन में कुछ पंक्तियाँ उठीं जो लिखे बिना और यहाँ बाँटें बिना रहा नहीं जा रहा...
जानती हूँ गलत है, ऐसे ख्याल मन में आने ही नहीं चाहिए... और कहते हैं कि गलत बातों को जितना जल्दी और जितने अधिक टुकड़ों में बाँट के अपने से दूर करदो, कर देना चाहिए...
--------------------
आज खुद पे पड़ी
तो दुख न!
सोचो, जब हमें लगा था
तब हमें भी तो दुख होगा न?
तुम्हारे घर में आग लगी,
तो सभी दौड़ पड़े बुझाने के लिए...
fire-brigade बुलाई,
पुलिस बिठाई,
तैनाती करवाई,
कुछ को हवालात कि हवा खिलाई...
बात ऐसी बिगड़ी थी,
कि,
प्रधानमंत्री तक की छुट्टी कैंसल करवाई...
अब समझ आया
कि लगता है तो कितना दुखता है...
चलो बात कुछ पुरानी करें,
याद वो कहानी करें...
कुछ जुल्म-ओ-सितम जो
तुम्हारे पूर्वजों ने
हमारे पूर्वजों पर ढाए थे
जब तुम व्यापार करने का बहाना ले
हमारे देश में आये थे...
फ़िर-फ़िर धीरे-धीरे
तुमने अपना जाल फैलाया
हमें अपना गुलाम बनाया...
तरह-तरह कि कहानी बनाई
अजब लूट थी, जो तुमने मचाई...
तुम्हारे यहाँ कि आग
से तो सिर्फ कुछ नुकसान हुआ होगा
तुम्हारे ही दंगाइयों ने कुछ buildings को फूंका होगा
तुमने पानी छिड़क
सारी आग बुझा भी दी होगी
पर उस आग का क्या
जो तुमने यहाँ दिलों में लगाई
भाई-भाई की दुश्मनी कराई
कितना लहू बहाया हमने,
आज भी बहा रहे हैं
तुम्हारी लगाई आग
आज तक बुझा रहे हैं...
याद करो वो 100 साल
जब हम थे बेहाल
और तुम खुशहाल...
फ़िर कुछ सरफिरों का दिमाग चकराया
तुम्हें खदेड़ा, मार भगाया...
कुछ हिंसा के पुजारी
तो कुछ अहिंसा के दीवाने थे
सबका मकसद एक,
सिर्फ अलग-अलग बहाने थे...
कुछ के नाम पटल पे हैं
पर कुछ से तो हम अभी भी अन्जाने हैं...
तुमने जो किया वो गलत था,
जो funda अपनाया
पता है, उसका अंजाम
हम आज तक भुगत रहे हैं...
याद है वो, "divide and rule policy"
तुम्हारा rule तो ख़त्म हो गया
पर तुम्हारी कुछ policies अभी भी हमारे बीच हैं...
और,
हम आज भी DIVIDE हैं...
पिछले दिनों में लन्दन में हो रहे दंगों की खबर ज़ोरों पर है... हालात इतने बिगड़े हुए हैं कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को अपनी छुट्टियां cancel करके वापस आना पड़ा...
कल अचानक बर्मिंगम में दंगाइयों ने आग लगा दी... बहुत नुकसान हुआ है... हिंसा ऐसी फ़ैली है कि इसने लीड्स, ब्रिस्टल और नॉटिंगम को भी अपनी चपेट में ले लिया... पुलिस ने इसी सिलसिले में 400 लोगों को गिरफ्तार भी किया...
ये सारी खबरें सुनकर बुरा लग रहा था... ये दंगाई कहीं भी हों, किसी भी कोने में हों... हमेशा कुछ-न-कुछ उटपटांग करते ही रहते हैं... यहाँ गलती पुलिस से भी हुई, जब उस बेचारे निर्दोष को गोली मार दी...
चलिए आज नहीं तो कल उनकी हालत सुधर जायेगी... पर मेरी चिंता कुछ और है... कहा जाये तो चिंता का विषय इस बार मैं खुद ही हूँ...
हुआ यूं कि कल जब मैं ये सारी खबरें देख रही थी तो अचानक मेरे मुंह से निकला, "हाँ आज बात खुद पर आई तो दर्द हो रहा है"
मम्मी ने डांट भी दिया कि ऐसा नहीं बोलते...
पर तब मन में कुछ पंक्तियाँ उठीं जो लिखे बिना और यहाँ बाँटें बिना रहा नहीं जा रहा...
जानती हूँ गलत है, ऐसे ख्याल मन में आने ही नहीं चाहिए... और कहते हैं कि गलत बातों को जितना जल्दी और जितने अधिक टुकड़ों में बाँट के अपने से दूर करदो, कर देना चाहिए...
--------------------
आज खुद पे पड़ी
तो दुख न!
सोचो, जब हमें लगा था
तब हमें भी तो दुख होगा न?
तुम्हारे घर में आग लगी,
तो सभी दौड़ पड़े बुझाने के लिए...
fire-brigade बुलाई,
पुलिस बिठाई,
तैनाती करवाई,
कुछ को हवालात कि हवा खिलाई...
बात ऐसी बिगड़ी थी,
कि,
प्रधानमंत्री तक की छुट्टी कैंसल करवाई...
अब समझ आया
कि लगता है तो कितना दुखता है...
चलो बात कुछ पुरानी करें,
याद वो कहानी करें...
कुछ जुल्म-ओ-सितम जो
तुम्हारे पूर्वजों ने
हमारे पूर्वजों पर ढाए थे
जब तुम व्यापार करने का बहाना ले
हमारे देश में आये थे...
फ़िर-फ़िर धीरे-धीरे
तुमने अपना जाल फैलाया
हमें अपना गुलाम बनाया...
तरह-तरह कि कहानी बनाई
अजब लूट थी, जो तुमने मचाई...
तुम्हारे यहाँ कि आग
से तो सिर्फ कुछ नुकसान हुआ होगा
तुम्हारे ही दंगाइयों ने कुछ buildings को फूंका होगा
तुमने पानी छिड़क
सारी आग बुझा भी दी होगी
पर उस आग का क्या
जो तुमने यहाँ दिलों में लगाई
भाई-भाई की दुश्मनी कराई
कितना लहू बहाया हमने,
आज भी बहा रहे हैं
तुम्हारी लगाई आग
आज तक बुझा रहे हैं...
याद करो वो 100 साल
जब हम थे बेहाल
और तुम खुशहाल...
फ़िर कुछ सरफिरों का दिमाग चकराया
तुम्हें खदेड़ा, मार भगाया...
कुछ हिंसा के पुजारी
तो कुछ अहिंसा के दीवाने थे
सबका मकसद एक,
सिर्फ अलग-अलग बहाने थे...
कुछ के नाम पटल पे हैं
पर कुछ से तो हम अभी भी अन्जाने हैं...
तुमने जो किया वो गलत था,
जो funda अपनाया
पता है, उसका अंजाम
हम आज तक भुगत रहे हैं...
याद है वो, "divide and rule policy"
तुम्हारा rule तो ख़त्म हो गया
पर तुम्हारी कुछ policies अभी भी हमारे बीच हैं...
और,
हम आज भी DIVIDE हैं...
इतनी कम उम्र मैं इतनी गहरी फ़िक्र काबिल ए तारीफ है. सच है कि उनका Rule चला गया लेकिन हम आज भी divide उनकी बनाई पोलिसी के कारण ही हैं. हमें आज उस ग़ुलामी के कानून से खुद को आज़ाद करना होगा.
ReplyDeleteलेकिन बेटा ऐसा नहीं कहते कि जब खुद को लगता है तभी दुखता है. :)
लेकिन हम इंसानों कि सच्चाई भी यही है क्या किया जाए.
वाह कितना सटीक लिखा है पूजा जी…………दाद कबूल कीजिये।
ReplyDeleteपूजा, आपने बहुत ही गहराई से प्रत्येक शब्द को यहां प्रस्तुत किया है इस बेहतरीन लेखन के लिये बधाई ...।
ReplyDeleteSo very sad ....beautifully written..
ReplyDelete..though its d sad naked truth..
..keep it up..
अत्यंत मार्मिक ढंग से एक ज्वलंत विषय को रखा है आपने...
ReplyDeleteप्रभावशाली लेखन है आपका....लिखती रहें...शुभकामनाएं.
सचमुच .. जिनके अपने लोग इस तरह की घटन में पीड़ित नहीं होते तब तक उसके दर्द को समझना मुश्किल होता है... संवेदनशील मुद्दे को आपने उठाया है...
ReplyDeleteबहुत सटीक।
ReplyDeleteसादर
वर्तमान की सच्चाई निहित है आपकी इस रचना में....
ReplyDeleteआपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
जब खुद पर पड़ती है तभी पता चलता है ... बहुत अच्छी और संवेदनशील रचना
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 11 - 08 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDeleteनयी पुरानी हल चल में आज- समंदर इतना खारा क्यों है -
प्रशंसनीय प्रस्तुति
ReplyDeletehaan sahi kaha hamare dard ko dard na samjha ur jab khud pe padi to sari duniya ko dhikha rahe hai
ReplyDeletebaht aacha likha hai
aise hi likhte raha kariye
काश ये और दुनिया का भी दर्द समझ लें।
ReplyDeleteकाश हम लोग दूसरे का दर्द महसूस करना सीख सकें .....
ReplyDeleteमगर अहम्, अपनी शान और और लगातार जीत के गर्व में इन्हें खुद पर आती मुसीबतों का अहसास ही नहीं होता और यह कटु सत्य है कि तकलीफ देने वालों को तकलीफ जरूर होगी मगर उस समय शायद यह अभागे खुल कर रो भी न पायें और इन शक्तिशालियों के आंसू पोंछने शायद ही कोई नज़दीक आये !
शुभकामनायें पूजा !
हिंसा कहीं भी हो , किसी भी तरह की हो .....आखिर लीलती तो मानव को ही है ना .....इसलिए हो सके तो यह दुनिया में कहीं भी नहीं होनी चाहिए .....!
ReplyDeletepretty emotional stuff...behtareen dhang se ukera hai aapne!!
ReplyDeletebahut achchha lga aapke blog par aana... aapke vichar aur rachna dono sundar..
ReplyDeleteहम मानें या ना मानें...भूरे अंग्रेजों से तो गोरे अँगरेज़ अच्छे थे...इंडिया और भारत के बीच की खाई देख कर...लगता है... कम से कम एक देश में एक ही रूल होना चाहिए...ये भूरे अपने स्वार्थ में अंधे हो कर जो ना कराएं वो कम है...
ReplyDeleteकमाल का लिखती हैं आप। एकदम अलग सोच के साथ। इस पोस्ट ने काफ़ी प्रभावित किया।
ReplyDeleteपूजा..आपने कभी बताया नहीं..पर लगता रहा कि शब्दों के रंग आपको भी लुभाते हैं...आप के भी मन में कविता बीज रूप में मौजूद है...और आज आप ने सबूत दे दिया...!! बहुत ही ख़ूबसूरती से आपने इस संजीदा विषय को उठाया है....ढेर सारी बधाई...!! आज सचमच अच्छा लगा.......! अब आश्वस्त हूँ मैं...इस शहर के लिए..विंध्यांचल के लिए...भारत के लिए...और सम्पूर्ण साहित्य जगत के लिए...!! बधाई !!
ReplyDeleteदर्द अकारण नहीं है मगर ...
ReplyDeleteतब भी बेबस ही सताया गया था दबंग के हाथों, इस दंगे में भी वही हुई और दंगे से पहले, पुलिस के हाथों? एक इंसान ही नहीं, इंसानियत की जान भी ले ली गयी थी ...
kya jhankrit kiya hai... bas yahi kahna hai, jinhe naaj hai hind per wo kahan hain
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कह दी आपने।
ReplyDelete------
ऑटिज्म और वातावरण!
ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें!
Wah...
ReplyDeletekitna kuchh kah diya apne..!
aur solah ane sach.....!!
वाह कितना सटीक लिखा है पूजा जी
ReplyDeleteगलत बातें टुकड़ों में बंट गई...देखो हम सब ने सराहा है आपके इस लेख को :)
ReplyDeleteबहुत सोचते हो आप और बहुत अच्छा भी लिखते हो ....और आंटी जी को कमेंट्स जरुर पढाना आगे से डाट नहीं लगेगी. :)
बहुत सटीक प्रस्तुति, सोचने पर विवश करती रचना
ReplyDeleteकितना लहू बहाया हमने
ReplyDeleteआज भी बहा रहे हैं..
तुम्हारी लगाई आग,
आज तक बुझा रहे हैं..
लाजवाब! क्या खूब लिखा है.. सुरमई तरीके से आपने आज से ४०० साल तक कहानी कह डाली... बहुत सुन्दर
हुत-बहुत शुक्रिया भी आपका, आपने मेरे ब्लॉग पर आकर मेरा उत्साहवर्धन किया.. उम्मीद है आप आती रहेंगी..
निसंदेह जब दुखी जन के लिए दुःख गहराता है तो ऐसी ही सुन्दर रचना निकलती है..'
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें!
बुनियादी बातों की ओर आपने सभी का ध्यान खींचा है।
ReplyDeleteसामयिक विषय, बेहतर चिंतन और उससे भी अच्छी आपकी प्रस्तुति
शुभकामनाएं
कटु सत्य को दर्शाती बहुत सटीक और सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteसही थप्पड़ मारा है ... अब खुद पे पड़ी तो समझ आया ...
ReplyDeleteअब भी जागेंगे लगता नहीं ...
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें.
ReplyDeletePujniya vichar aur ekdam saafgoi. Yahi chante to unke galon ko chahiye. aise vichar hi to seedhe vichar hain. Yahan bhi aayen www.nukkadh.com
ReplyDeleteस्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ।
ReplyDeleteकल 17/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
नमस्कार....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें
मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में पलकें बिछाए........
आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"
इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
1- MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
2- BINDAAS_BAATEN: रक्तदान ...... नीलकमल वैष्णव
3- http://neelkamal5545.blogspot.com
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें.
ReplyDeleteएकदम से वह बात कह दी आपने जिसे सोचने में भी एक बार सोचना पड़ता है..
ReplyDeletekab ham sudhrenge.??
ReplyDeletebahut bada prashn hai ye aam janta ke liye!
आपकी बातों पर मुझे एक पुराना गाना याद आ रहा है
ReplyDelete'होंठों पे सच्चाई रहती है
जहाँ दिल में सफाई रहती है,
हम उस देश के वासी हैं,
जिस देश में गंगा बहती है
कुछ लोग जो ज्यादा जानते हैं,
इंसान को कम पहचानते हैं,
ये पूरब है पूरब वाले
हर जान कि कीमत जानते हैं.'
आज देखिये अन्नाजी के अनशन के साथ ही सारा देश
उठ खड़ा हुआ है.सरकार भी झुकती नजर आ रही है.
आपका लेखन बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है.
अच्छा लगता है आपको पढ़ना.
आभार.
सटीक!
ReplyDeleteसुन्दए सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteइतिहास सबक सिखाता है और लोग इतिहास से सबक नहीं लेते -सुन्दर अभिव्यक्ति ,प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteघटनाक्रम को तार्किक रूप से प्रस्तुत किया है आपने. ताज्जुब तो यह जानकर भी होगा कि एक रिपोर्ट में वहाँ दंगे रोकने में विफलता का कारण पुलिस को ऐसा अनुभव न होना था, क्योंकि 'गोरे' तो ऐसी हरकत कर ही नहीं सकते !
ReplyDeleteआप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया...
ReplyDeleteबस यूँहीं प्रोत्साहन करते रहें... और मैं कोशिश करती रहूँगीं...
@मासूम अंकल... जी पता है कि ऐसा नहीं कहते... और यहीं तो आप लोग सुधरेंगें मुझे...
जी हमें उनकी अदृश्य जंजीरों से भी खुद को आज़ाद करना होगा...
@वंदना जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... बस यूँहीं दाद की खाद डालते रहिये...
@सदा जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... बस आप लोग साथ दें, मै कोशिश करती रहूँगीं...
@भैया... thank you so much ... बस इसी तरह हौसला बढ़ाते रहिये...
@अरुण जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... शायद यही मनुष्य प्रकृति है, उसे सिर्फ खुद का दर्द समझ आता है...
@यशवंत जी... शुक्रिया... बहुत-बहुत...
@शरद जी..बहुत-बहुत धन्यवाद... बस आपकी शुभकामनाएं मिलती रहें तो कलम को चलने में आसानी होती है...
@संगीता जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... इस प्रोतसाहन और इस आम को ख़ास बनाने के लिए भी...
ReplyDelete@राकेश जी... धन्यवाद
@संजीव... thank you so much... बस यूँही साथ बनाए रहिये... हम लिखते जायेंगें...
@प्रवीण जी... यही तो दर्द है... खुद का दर्द दर्द है और दूसरों का दिखावा...
@सतीश अंकल... बहुत-बहुत धन्यवाद अंकल... बस यही तो समझ में आएगा अब उन्हें, कि दूसरों को आंसू देना जितना आसान है खुद के आंसू पोछने के लिए अपना बनाना उतना ही मुश्किल... आपके प्रोत्साहन की हमेशा आवश्यकता रहेगी...
@केवल जी... जी सही है, नुक्सान तो हमारा ही है, परन्तु कुछ बातें हैं जो हमें हमारा गुज़रा वक़्त याद दिला देतीं हैं... बहुत-बहुत शुक्रिया... ऐसे ही समझातें रहें तो हो सकता है कि एक दिन आप लोग जैसा कुछ mature लिख पाऊँ...
@Robin... after such a long time... thank you so much... keep in touch...
@सुमन जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... आते रहें एवं यूँहीं प्रोताषित करतें रहें... बहुत जरूरत है...
@वाणभट्ट जी... जी, सही कहा आपने... पर मुझे लगता है कि ये हमारी समझ है कि भारत एवं इंडिया एक ही हैं... पर जहाँ कहीं भी हम अभी भी बंधें है वहां से हमें ही खुद को आज़ाद करना होगा... यूँही सोच शेयर करते रहें... मुझे अपनी गलतियां सुधरने में मदद मिलती है... :)
@मनोज जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... बस आप लोगों के प्रोसाहन की विशेष आवश्यकता है...
@सत्येन्द्र अंकल... बहुत०बहुत धन्यवाद इतने सारे प्रोत्साहन भरे शब्दों के लिए... बस कोशिश ही कर सकती हूँ और वही कर रही हूँ... आप लोगों का मार्गदर्शन मिलता रहे, बस यही कामना है...
ReplyDelete@स्मार्ट इन्डियन... यही तो दर्द का कारण था, है और रहेगा... तब हम दर्द सह रहे थे तब उन्हें पता नहीं चला... अब जब उनपे पडी तब समझ में आया... बहुत-बहुत धन्यवाद आने एवं अपने विचारों को शेयर करने के लिए...
@बड़ी माँ... बहुत-बहुत धन्यवाद बड़ी माँ... बस मैंने तो कोशिश ही की थी अपनी बातों को एक रूप देने की... आप लोगों का प्रोत्साहन एवं आशीर्वाद रहा तो एक दिन सारी बातें साफ़-साफ़ कहने में समर्थ हो जाऊंगीं...
@रजनीश जी... बहुत-बहुत धन्यवाद...
@रवि... बहुत-बहुत धन्यवाद... मैंने तो बस एक छोटी-सी कोशिश की थी....
@विद्या... बहुत-बहुत शुक्रिया...
@अक्षय... बहुत-बहुत धन्यवाद... जरूर... पढ़ा दिए... पर उनका अभी भी यही कहना है कि ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए...
@एस.एन.शुक्ल जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... ये मेरी छोटी-सी सोच का ही नतीजा है... आप लोग प्रोत्साहित करते रहें तो मैं और मेरी सोच दोनों बड़े हो जायेंगें...
@अनिल जी... बहुत-बहुत शुक्रिया... जी उस कहानी को कितना भी समेटा जाये कोई-न कोई हिस्सा छूट ही जायेगा... और मैं एवं मेरी कोशिशें बहुत छोटी हैं अभी उनके आगे... ये तो मन में एक टीस चुभी तो लिख दी...
@कविता जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... कोशिश ही की है... आप लोगों का प्रोत्साहन मिला बहुत अच्छा लगा...
@महेंद्र जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... बस दर्द हुआ सो उकेर दिया उसे शब्दों में....
@कैलाश अंकल... बहुत-बहुत धन्यवाद अंकल... बस यूँहीं आशीर्वाद देते रहें...
@दिगंबर जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... पता नहीं, अब भी नहीं जागे तो कुछ नहीं हो सकता...
@बाउजी... बहुत-बहुत धन्यवाद... आपको भी...
@अविनाश अंकल... बहुत०बहुत धन्यवाद इन प्रोत्साहित शब्दों के लिए... जी जरूर
ReplyDelete@यशवंत जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... इसे शामिल करने के लिए और मेरा उत्साह-वर्धन करने के लिए... आपको भी शुभकामनाये, थोड़ी लेट हैं परन्तु स्वतंत्र हैं...
@नीलकमल जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... उताषित करने एवं फोलोअर बनने के लिए... परन्तु मैं थोड़ी सी बच्ची हूँ अभी इस मामले में तो क्षमा चाहूँगीं...
@सवाई जी एवं बाऊजी... आप दोनों को बहुत-बहुत धन्यवाद... एवं मेरी ओर से भी बधाइयाँ स्वीकारें...
@मनीष जी... बहुत-बहुत शुक्रिया...
@भैया जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... न जाने कब???
@राकेश जी... बहुत-बहुत-बहुत सारा धन्यवाद... इस गीत को यहाँ कमेन्ट के रूप में जोड़ कर आपने मुझे समानित कर दिया... मैंने बस एक कोशिस की थी... यूँही आशीर्वाद देते रहें... बच्चों क एलिए जरूरी है...
@वाणी जी... बहुत-बहुत शुक्रिया...
@महेश्वरी जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... सिर्फ एक कोशिश थी...
@अरविन्द जी... बहुत-बहुत धन्यवाद... जी इतिहास से सबक ले हम आगे बढ़ें तभी हम सही दिशा चुन पायेंगें... यूँहीं मार्गदर्शन करते रहें...
@अभिषेक जी... बहुत-बहुत शुक्रिया... सिर्फ कोशिश की है... जी सही है, ताज्जुब ही होता है ये सब जानकर...
jabardast, straight & sateek lekhan. badhayi.
ReplyDelete