खुद को लगता है, तभी दुखता है...

पिछले दिनों में सबकुछ अल-अलग सा समझ आ रहा है... पता नहीं क्यों, पर कभी-कभी अपनी ही सोच अजीब-सी लगती है... doubt होता है की क्या वाकई मैं ही ऐसा सोच रही हूँ? और यदि हाँ, तो क्यों?
और जो सोच रही हूँ वो सही भी है या नहीं...
खैर...
पिछले दिनों में लन्दन में हो रहे दंगों की खबर ज़ोरों पर है... हालात इतने बिगड़े हुए हैं कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को अपनी छुट्टियां cancel करके वापस आना पड़ा...
कल अचानक बर्मिंगम में दंगाइयों ने आग लगा दी... बहुत नुकसान हुआ है... हिंसा ऐसी फ़ैली है कि इसने लीड्स, ब्रिस्टल और नॉटिंगम को भी अपनी चपेट में ले लिया... पुलिस ने इसी सिलसिले में 400 लोगों को गिरफ्तार भी किया...
ये सारी खबरें सुनकर बुरा लग रहा था... ये दंगाई कहीं भी हों, किसी भी कोने में हों... हमेशा कुछ-न-कुछ उटपटांग करते ही रहते हैं...
यहाँ गलती पुलिस से भी हुई, जब उस बेचारे निर्दोष को गोली मार दी...
चलिए आज नहीं तो कल उनकी हालत सुधर जायेगी... पर मेरी चिंता कुछ और है... कहा जाये तो चिंता का विषय इस बार मैं खुद ही हूँ...
हुआ यूं कि कल जब मैं ये सारी खबरें देख रही थी तो अचानक मेरे मुंह से निकला, "हाँ आज बात खुद पर आई तो दर्द हो रहा है"
मम्मी ने डांट भी दिया कि ऐसा नहीं बोलते...
पर तब मन में कुछ पंक्तियाँ उठीं जो लिखे बिना और यहाँ बाँटें बिना रहा नहीं जा रहा...
जानती हूँ गलत है, ऐसे ख्याल मन में आने ही नहीं चाहिए... और कहते हैं कि गलत बातों को जितना जल्दी और जितने अधिक टुकड़ों में बाँट के अपने से दूर करदो, कर देना चाहिए...
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आज खुद पे पड़ी
तो दुख न!
सोचो, जब हमें लगा था
तब हमें भी तो दुख होगा न?

तुम्हारे घर में आग लगी,
तो सभी दौड़ पड़े बुझाने के लिए...
fire-brigade बुलाई,
पुलिस बिठाई,
तैनाती करवाई,
कुछ को हवालात कि हवा खिलाई...
बात ऐसी बिगड़ी थी,
कि,
प्रधानमंत्री तक की छुट्टी कैंसल करवाई...
अब समझ आया
कि लगता है तो कितना दुखता है...

चलो बात कुछ पुरानी करें,
याद वो कहानी करें...
कुछ जुल्म-ओ-सितम जो
तुम्हारे पूर्वजों ने
हमारे पूर्वजों पर ढाए थे
जब तुम व्यापार करने का बहाना ले
हमारे देश में आये थे...
फ़िर-फ़िर धीरे-धीरे
तुमने अपना जाल फैलाया
हमें अपना गुलाम बनाया...
तरह-तरह कि कहानी बनाई
अजब लूट थी, जो तुमने मचाई...

तुम्हारे यहाँ कि आग
से तो सिर्फ कुछ नुकसान हुआ होगा
तुम्हारे ही दंगाइयों ने कुछ buildings को फूंका होगा
तुमने पानी छिड़क
सारी आग बुझा भी दी होगी
पर उस आग का क्या
जो तुमने यहाँ दिलों में लगाई
भाई-भाई की दुश्मनी कराई
कितना लहू बहाया हमने,
आज भी बहा रहे हैं
तुम्हारी लगाई आग
आज तक बुझा रहे हैं...

याद करो वो 100 साल
जब हम थे बेहाल
और तुम खुशहाल...

फ़िर कुछ सरफिरों का दिमाग चकराया
तुम्हें खदेड़ा, मार भगाया...
कुछ हिंसा  के पुजारी
तो कुछ अहिंसा के दीवाने थे
सबका मकसद एक,
सिर्फ अलग-अलग बहाने थे...
कुछ के नाम पटल पे हैं
पर कुछ से तो हम अभी भी अन्जाने हैं...

तुमने जो किया वो गलत था,
जो funda अपनाया
पता है, उसका अंजाम
हम आज तक भुगत रहे हैं...
याद है वो, "divide and rule policy"
तुम्हारा rule तो ख़त्म हो गया
पर तुम्हारी कुछ policies अभी भी हमारे बीच हैं...
और,
हम आज भी DIVIDE हैं...

शायद उनके परिवार में किसी को Cancer नहीं हुआ...

जी... सही है... जो कुछ मैंने पिछले दो-तीन दिनों में पढ़ा, उससे तो यही लगता है की उनके परिवार में किसी को cancer जैसी घातक बीमारी का सामना नहीं करना पड़ा... और इसिये शायद वो इसका दर्द नहीं जानते...
वैसे तो मुझे लगता है कि, ये बीमारी कभी किसी को न हो... दुश्मन को भी नहीं... क्योंकि मैंने इस बीमारी को बहुत करीब से देखा है और अपने दिल के बहुत करीब तीन जन खोये हैं... बब्बा{दादा जी}, नानी और बड़की अम्मा... 

बहुत ही दर्द होता है जब आपका कोई अपना आपको छोड़ के चला जाता है... और खासतौर पर जब वो आपकी ज़िंदगी में बहुत ख़ास स्थान रखते हों... दादा-दादी या नाना-नानी का साथ, आशीर्वाद, प्यार-दुलार छोट जाए न, तो सिर्फ यादें और आंसूं रह जाते हैं... I love you all so much... miss you too...  :(
खैर... आप लोग सोच रहे होंगें कि आज अचानक ये बातें कहाँ से आ गईं... इतनी पोस्ट्स में मैंने कभी ये बातें नहीं कहीं, और आज अचानक...
जी, अचानक...
हुआ यूं कि, दो दिन नेट-कनेक्शन ख़राब होने के कारन मैं ऑनलाइन नहीं आ पाई, और जब कल आई तो gmail , facebook etc एक्सेस किया... ढेर सारे मेल्स और ढेर सारे notifications ,...  सब देख रही थी... तभी नज़र गई सोनिया गांधी जी के ऑपरेशन की खबर की details के बारे में... खासतौर पर "Times of India  और economic -times की रिपोर्टिंग पर, क्योंकि ऑपरेशन के लिए बाहर जाने की खबर तो T.V. पर मिल गई थी... जहाँ उन्होंने बताया था कि सोनिया गांधी जी को New York`s Memorial Sloan-Kettering Cancer Center, में एडमिट किया गया है, और एक बहुत ही अच्छे oncologist उनका इलाज करेंगें... इन सब का मतलब तो यही निकला कि उनके cancer -treatment दिया जा रहा है... पहली नज़र में तो यही समझ में आता है... और उसके नीचे ढेर सारे likes और कमेंट्स... न रहें होंगें तब भी करीबन 175 -200  तो पक्के थे... ख़ुशी हुई कि चलो कम-से कम हम अभी भी लोगों की केयर करना जानते हैं... मन हुआ कि पढ़ा जाए कि कैसी शुभकामनाएं दीं हैं लोगों ने, कभी-कभी ऐसे ही कमेंट्स में लोग कुछ बहुत अच्छी बातें सिखा देते हैं... और कमेंट्स पे क्लिक किया... और जो पढ़ा, वाह जी वाह... बहुत खूब... वाकई बहुत कुछ सीख लिया...
कमेंट्स देनेवालों में कुछ महानुभावों ने सोनिया जी के बाहर जाने के कयास लगे थे कि pregnant हैं, उन्हें AIDS हो गया है, कुछ ने शोक जताया था कि वो मर क्यों नहीं जातीं... हाँ कुछ लोगों ने जरूर कहा था "all the luck" "get well soon" पर ऐसे लोगों की संख्या सिर्फ चार या छः थी... बाकी तो सभी एक ही राग गा रहे थे... यहाँ तक कि लडकियां भी... और इनमें से कई लडकियां राहुल गांधी जी पे फ़िदा भी थीं, क्योंकि वो वहां उनके handsome होने के गुणगान कर रहीं थीं...
वाह... मानना पड़ेगा हमें... कितने महान हैं हम सब...
सच मानिये, मैंने सारे कमेंट्स पढ़े, और पढ़ते-पढ़ते रोई भी... हमारे यहाँ किसी को कैंसर होने की खबर भी आती है तो सभी के मुंह से एक ही बात निकलती है "भगवान ये बीमारी दुश्मन को भी न दे"... शायद इसीलिए, क्योंकि हमनें अपने खोये हैं... और न सिर्फ इसी बीमारी के लिए बल्कि कहीं की कोई भी बुरी खबर सुनते हैं तो यही कहते हैं... और माना कि उन्होनें किसी अपने को नहीं खोया,{ भगवान करे कि सभी के अपने सभी के पास रहें पर समय-चक्र का कुछ नहीं किया जा सकता परन्तु कोई इस तरह न जाए} पर क्या किसी के दर्द को समझने के लिए उस दर्द से गुजरना जरूरी है? या संवेदना, भावना नाम की चीज़ें हमारे अन्दर से ख़त्म हो गईं हैं? या हम अन्दूरनी तौर से पाषाण युग में पहुँच गए हैं?
सच... बहुत ही ज्यादा ख़राब लगा...
कुछ ही दिनों में हम अपना स्वतंत्रता-दिवस मानाने वाले हैं... यानी एक और साल आज़ादी के नाम...
वाकई हम कुछ ज्यादा ही आज़ाद हो गए हैं... किसी को कुछ भी बोलने की आज़ादी ही नहीं, बल्कि बुरा, गन्दा, ख़राब और घटिया बोलने में हम पीछे नहीं हटते... 
पर क्या हमारे अन्दर से आत्मीयता ख़त्म हो चुकी है? 
मन तो हो रहा था कि उन सब को सामने बिठा कर चिल्लाऊं और पूछूं कि क्या यही हमारे संस्कार हैं या यही तालीम मिली है हमें? इन्हीं सब लिए हमें गर्व होता है कि हम भारतीय हैं?
अच्छा चलिए एक बात मान भी लें कि सोनिया जी हमारे भारत की नहीं हैं, मेहमान है, विदेशी महिला हैं... और भी ऐसे ही मिलते-जुलते तथ्य... तो फिर "अथिति देवी भवः" भूल गए या आजकल हम भगवान को भी उल्टा-सीधा बोलने में भी नहीं चूकते... और यदि इस बात को किनारे भी कर दिया जाए, तब तो जिन विदेशी महिलाओं के साथ बलात्कार या ठगी की घटनाओं को अंजाम देने वालों को हमें राष्ट्रीय पुरस्कार देना चाहिए, ब्रवेरी अवार्ड से सम्मानित करना चाहिए, उनके सम्मान में उनके जन्मदिवसों में छुट्टियां घोषित होनी चाहिए...

क्या हो गया है हमें???
ये कहाँ आ गएँ है हम???
या शायद मेरे घरवालों की गलती है जिन्होंने हमें नए और मोडर्न ज़माने का नहीं बनाया... समय के साथ चलना तो सिखाया परन्तु यूं बे-ग़ैरत होना नहीं सिखाया... हमें उन्होंने हमेशा यही सिखाया कि "बेटा, जो तुमसे बड़ा है वो बड़ा है, उसे सम्मान देना ही तुम्हारा कर्तव्य है" कितने पुराने विचारों के हैं ये लोग... और हमें भी वही बना दिया... पर हम खुश हैं क्योंकि आज हमें खुद से नज़रें चुरानी पड़ती, और न ही कभी हमारे घरवालों को हमारी वजह से सर झुकाना पड़ता है... हम पुराने विचारों के ही सही, और दूसरों की तरह कूल" न सही पर सर उठा कर जीते हैं और खुश हैं...

हो सकता है कि आप लोगों में कई लोग मुझसे सहमत न हों... कोई बात नहीं... वो आपके अपने विचार हैं... आप अपनी असहमती बतलाने के लिए आज़ाद हैं... हो सकता है कि मैं कहीं गलत हूँ, सुधार की जरूरत हो तो जरूर बताएं...