दिवाली आई... छुट्टियाँ लिए, सब अपने घरों की और चलते हुए...
कई रंगों के साथ, रंगोली के साथ... दीयों की जगमगाहट, designer candles की रौशनी के साथ... घर की साफ़-सफाई और सजावट में माता लक्ष्मी के आगमन के साथ, पूजा-पाठ और प्रसाद के साथ, पटाखों की गूँज के साथ... और न जाने कितनी wishes और blessings ... फिर हर बार की तरह ढेर सारी खिलखिलाहट, हंसी, पुरानी यादों को ताज़ा करते किस्से... पारीबा का आराम, सारा शहर बंद, सब एक-दुसरे से मिलने में व्यस्त, कोई किसी के यहाँ की मिठाई की बात करता तो कोई किसी के यहाँ मिठाई न जाने पर थोडा-सा नाराज़ दिखा और कोई उस मिठाई को भेजवाने के इंतजाम में लग गया...
भाई-दूज भी आ गया, सुबह से बस नाना जी के घर जाने की तैय्यारी, कौन कितने बजे जायेगा, कौन किसको लेता आएगा... फिर वो पोनी खोसना, रोग-दोग, पूजा, ऐरी-बैरी की छाती कूटना, भाई को टीका करना, मुंह मीठा करना और हर कुंवारे बड़े भाई को धमकी देना की "अगले साल अकेले टीका नहीं करेंगे :) " फिर सबका खाना, फिर वही हंसी-ठिठोली,
वही मस्ती मजाक,
वही कोई पुरानी याद,
वही किसी एक की टांग
फिर दुसरे को फसाना
खुद फंस जाने पर
कोई बहाना बनाना,
या फिर अपनी उसी बात पर
खुद भी ठहाके लगाना...
कितना अच्छा लगता है
ये रिश्तों का खज़ाना...
अरे वाह!!! ये तो बैठे-बैठे कुछ और ही हो गया...
शायद यही होती है रिश्तों की मिठास, उनका अपनापन और प्यार... जो न तो कभी ख़त्म होता है, बल्कि बढ़ता ही जाता है... और ऐसे मौकों पे बिना परिवार-रिश्तेदार कैसे रह लेते हैं लोग...
मुझे तो हमेशा से ही ताज्जुब होता है, जब भी ऐसा कुछ सुनती हूँ, "यार! हमें तो अकेले/अलग रहना ही अच्छा लगता है" "अरे यार! ये परिवारवाले भी न, अच्छा सर-दर्द हैं"...
कई रंगों के साथ, रंगोली के साथ... दीयों की जगमगाहट, designer candles की रौशनी के साथ... घर की साफ़-सफाई और सजावट में माता लक्ष्मी के आगमन के साथ, पूजा-पाठ और प्रसाद के साथ, पटाखों की गूँज के साथ... और न जाने कितनी wishes और blessings ... फिर हर बार की तरह ढेर सारी खिलखिलाहट, हंसी, पुरानी यादों को ताज़ा करते किस्से... पारीबा का आराम, सारा शहर बंद, सब एक-दुसरे से मिलने में व्यस्त, कोई किसी के यहाँ की मिठाई की बात करता तो कोई किसी के यहाँ मिठाई न जाने पर थोडा-सा नाराज़ दिखा और कोई उस मिठाई को भेजवाने के इंतजाम में लग गया...
भाई-दूज भी आ गया, सुबह से बस नाना जी के घर जाने की तैय्यारी, कौन कितने बजे जायेगा, कौन किसको लेता आएगा... फिर वो पोनी खोसना, रोग-दोग, पूजा, ऐरी-बैरी की छाती कूटना, भाई को टीका करना, मुंह मीठा करना और हर कुंवारे बड़े भाई को धमकी देना की "अगले साल अकेले टीका नहीं करेंगे :) " फिर सबका खाना, फिर वही हंसी-ठिठोली,
वही मस्ती मजाक,
वही कोई पुरानी याद,
वही किसी एक की टांग
फिर दुसरे को फसाना
खुद फंस जाने पर
कोई बहाना बनाना,
या फिर अपनी उसी बात पर
खुद भी ठहाके लगाना...
कितना अच्छा लगता है
ये रिश्तों का खज़ाना...
अरे वाह!!! ये तो बैठे-बैठे कुछ और ही हो गया...
शायद यही होती है रिश्तों की मिठास, उनका अपनापन और प्यार... जो न तो कभी ख़त्म होता है, बल्कि बढ़ता ही जाता है... और ऐसे मौकों पे बिना परिवार-रिश्तेदार कैसे रह लेते हैं लोग...
मुझे तो हमेशा से ही ताज्जुब होता है, जब भी ऐसा कुछ सुनती हूँ, "यार! हमें तो अकेले/अलग रहना ही अच्छा लगता है" "अरे यार! ये परिवारवाले भी न, अच्छा सर-दर्द हैं"...
ऐसा क्यूं है???
वैसे भी अब सब अलग ही रहने लगे हैं, कोई यहाँ जा रहा है पढ़ाई करने, तो किसी को उसकी नौकरी घर से दूर ले जा रही है... किसी लड़की की शादी हो गई {जो जॉब न करती हो}, उसे अपने पति के साथ जाना पड़ता है... तो क्या, यदि हम एक-दो या कुछ दिनों के लिए एकदुसरे से मिलते हैं, साथ बैठते हैं, खाते-पीते हैं, घुमते-फिरते हैं... तो हम हंस नहीं सकते, उन पलों में भी शिकाहय्तें करना ज़रूरी होता है क्या? मीन-मेख निकलना, किसी की गलतियां निकलना, खुद को अच्छा बताने के लिए सामनेवाले को नीचा दिखाना... आखिर क्यों???
वैसे भी अब सब अलग ही रहने लगे हैं, कोई यहाँ जा रहा है पढ़ाई करने, तो किसी को उसकी नौकरी घर से दूर ले जा रही है... किसी लड़की की शादी हो गई {जो जॉब न करती हो}, उसे अपने पति के साथ जाना पड़ता है... तो क्या, यदि हम एक-दो या कुछ दिनों के लिए एकदुसरे से मिलते हैं, साथ बैठते हैं, खाते-पीते हैं, घुमते-फिरते हैं... तो हम हंस नहीं सकते, उन पलों में भी शिकाहय्तें करना ज़रूरी होता है क्या? मीन-मेख निकलना, किसी की गलतियां निकलना, खुद को अच्छा बताने के लिए सामनेवाले को नीचा दिखाना... आखिर क्यों???
क्या ऐसा नहीं हो सकता की यदि हम सिर्फ कुछ पलों के लिए इकट्ठा हों तो बस मुस्कुराएं, हँसे और अच्छी-अच्छी यादें लेकर लौटें... जब भी किसी त्यौहार को याद करें तो अनायास ही एक प्यारी-सी मुस्कान हमारे चेहरे पर आ जाये... बजाय इसके की हमारा दिल दुखे की उसने हमें ऐसा कहा, या हमने उसे ऐसा कहा... कितनी छोटी-सी बात है... और हम जानते-समझते भी हैं... हमें याद भी रहती है... पर न जाने क्यों ऐन वक़्त पे हम इन्हें भूल जाते हैं...
तो क्यों न अब सिर्फ मुस्कुराहटें फैलाएं...
सारी दुनिया को अपना बनायें...
कोई किसी से बेगाना न हो
किसी का किसी से बैर न हो
सब आपस में एक हो जाएँ...
जानती हूँ की ऐसी बातें कहना जितना आसान है, करना और फिर उन्हीं में अडिग रहना उतन ही मुश्किल... पर कुछ मुश्किल करके भी देखते हैं... कभी-न-कभी तो वो भी आसान होगा... :)
तो क्यों न अब सिर्फ मुस्कुराहटें फैलाएं...
सारी दुनिया को अपना बनायें...
कोई किसी से बेगाना न हो
किसी का किसी से बैर न हो
सब आपस में एक हो जाएँ...
जानती हूँ की ऐसी बातें कहना जितना आसान है, करना और फिर उन्हीं में अडिग रहना उतन ही मुश्किल... पर कुछ मुश्किल करके भी देखते हैं... कभी-न-कभी तो वो भी आसान होगा... :)
बिल्कुल सच ...बहुत बढि़या ।
ReplyDeleteमुश्किलों को आसान बनाने की सोचना सबके बूते की बात नहीं .... और जो ये सोचते हैं वे हर हाल में मुस्कुराते तो ज़रूर ही हैं
ReplyDeleteमुस्कान आधी मुश्किल आसान कर देती है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विचार.. वाकई एक मुस्कान जिंदगी कर देती है आसान.. बहुत उम्दा आलेख... आप मेरे ब्लॉग पर आये और एक क्षणिका भी प्रस्तुत की... इसके लिए विशेष आभार. अपने ब्लॉग पर आपकी उपास्थिति की प्रतीक्षा रहेगी.
ReplyDeleteबहुत सही बात कही है आपने।
ReplyDeleteसादर
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति , आभार .
ReplyDeleteसबके चेहरे की मुस्कराहट बनी रहे
ReplyDeleteसुन्दर एहसास...........रिश्तो की अद्भुत अभिवयक्ति.......
ReplyDeleteआपके लिखने का अंदाज निराला लगा
ReplyDeleteपढकर दिल में सुन्दरसा अहसास जगा.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
विशेष अनुग्रह है आपसे.
@ कहना आसान है पर करना मुश्किल है
ReplyDeleteअधिक मुश्किल नहीं बशर्ते हम इसकी आवश्यकता एवं अपने कर्त्तव्य को को भली भांति समझ लें !
शुभकामनायें !
बेहतरीन पोस्ट....
ReplyDeleteBahut sundar,sanjeeda post!
ReplyDeleteसत्याभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति....
सादर...
चेहरे पर मुस्कान दूसरों को भी खुशियाँ देती है ..अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteबिलकुल भी मुश्किल नहीं चाहो तो देख लो .....
ReplyDeletehttp://www.facebook.com/media/set/?set=a.2085713345577.2101226.1327465291&type=1
इस बार की दिवाली है ये ...:-)
त्यौहार तो होते ही इसलिए हैं ... फिर अकेले रहना कहन तक जायज है ... मिलजुल के रहना चाहिए ... अच्छा सन्देश है ...
ReplyDeleteसन्देश देती हुई सुंदर रचना ......
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट सही सन्देश...
ReplyDeleteजिंदगी को बड़ी सहजता से जीने का आपका मंत्र जरूर कामयाब और कारगर होगा सभी के लिये, बहुत ही सुंदर पोस्ट.
ReplyDeleteबधाई.
तो क्यों न अब सिर्फ मुस्कुराहटें फैलाएं...
ReplyDeleteसारी दुनिया को अपना बनायें...
कोई किसी से बेगाना न हो
किसी का किसी से बैर न हो
सब आपस में एक हो जाएँ...
sach aisi hi duniya ki chahat hai..